धर्मों का संगम, निकलेगी शांति की राह?
२१ जून २०१८वहां खड़े थे दोनों, एक तरफ कैथोलिक और दूसरी तरफ मुसलमान. कार्डिनाल ओरलांडो मिंडानाओ द्वीप पर कोताबातो आर्कबिशपरी के प्रमुख हैं. मरियम बारांदिया शांति का काम कर रही हैं और उन्होंने मिंडानाओ में युवा मुसलमानों का एक ग्रुप बनाया है. कार्डिनाल बताते हैं कि ईसाई कट्टरपंथी मुसलमानों के हमलों का सामना कर रहे हैं. हाल में एक कैथोलिक चर्च पर हमला हुआ, एक इवांजेलिक स्कूल को जला दिया गया. लेकिन बारांदिया के इलाके की हालत और खराब है. सेना ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संघर्ष के नाम पर उनके इलाके को तहस नहस कर दिया है.
कार्डिनाल और पीस एक्टिविस्ट विदेश मंत्रालय द्वारा आमंत्रित खास शख्सियतों में शामिल हैं. एशियाई देशों के लगभग 70 धार्मिक प्रतिनिधियों ने तीन दिनों तक 'धार्मिक पंथों की शांति की जिम्मेदारी' नामक सम्मेलन में हिस्सा लिया. सम्मेलन में भाग लेने वालों में कंबोडिया के बौद्ध, जापान के शिंतोइस्ट, भारत के पारसी और हिंदू तथा हिजाब पहने इंडोनेशिया के मुसलमान भी थे. उनके अलावा यहूदी रब्बी, प्रोटेस्टेंट पादरी और कुछ शोधकर्ता भी शामिल थे.
धर्म का काला साया
जर्मनी के विदेश राज्यमंत्री मिषाइल रोथ ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, "एक बड़ा लक्ष्य हमें एकजुट करता है, शांति की स्थापना और शांति की सेवा करना." करीब एक साल पहले सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर तत्कालीन विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल ने कहा था, "मैं किसी धर्म को नहीं जानता जो शांति कायम करने का दावा नहीं करता." उस सम्मेलन में ईसाई, यहूदी और इस्लाम धर्म के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था.
अब निगाहें एशिया की ओर हैं और फिर से जर्मन राजनयिकों का मकसद है कि धर्म के प्रतिनिधियों को एक दूसरे के साथ बातचीत के लिए प्रेरित किया जाए और उन्हें एक दूसरे के साथ जोड़ा जाए. जर्मन विदेश मंत्रालय इसे अपनी दूरगामी जिम्मेदारी समझता है और इसके लिए उसने एक विभाग भी बनाया है. रोथ कहते हैं कि चर्च और दूसरे धार्मिक संगठन शांति के हमारे काम में स्थायी सहयोगी हैं. वे विवादों में धर्म के दुरुपयोग की भी बात करते हैं.
महिलाओं की भूमिका
इस बार के सम्मेलन में पिछली बार के मुकाबले दोगुनी महिलाएं हैं. उनमें से दो ने सम्मेलन के सार्वजनिक हिस्से में मीडिया के सवालों के जवाब भी दिए. सलेहा कमरुद्दीन मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर हैं. वे शांति के काम में महिलाओं और मांओं की भूमिका पर जोर देती हैं. उनका कहना है कि इस्लामी समाजों में महिलाएं नजरअंदाज ताकतें हैं. उनका कहना है कि महिलाओं को अधिक सामाजिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए.
उसके बाद वे इस्लामी कानून शरिया का भी जिक्र करती हैं जो पश्चिम के उदारवादी कानून से मेल नहीं खाता. कमरुद्दीन कहती हैं कि शरिया के मिथक को तोड़ा जाना चाहिए लेकिन उसकी आत्मा को नुकसान पहुंचाए बिना. उसकी सुरक्षात्मक भूमिका भी है. रोथ हस्तक्षेप करते हुए कहते हैं, "हमें साफ संकेत देने की जरूरत है कि कुछ खास कायदे कानून आधुनिक समाज में चलने लायक नहीं हैं, हमें इस पर सहमति की जरूरत है." ऐसा लगता है जैसे दो कानून हो, एक व्यक्तिगत कानून, दूसरा धार्मिक कानून.
शांति के लिए रचनात्मकता जरूरी
श्रीलंका की शांति कार्यकर्ता जिशानी जयवीरा अपने देश में आपसी सहमेल के काम में धैर्य की जरूरत के बारे में बताती हैं. वे बताती हैं कि शांति के लिए बदलाव जरूरी है. उन्होंने सीखा है कि शांति के लिए कितनी रचनात्मकता चाहिए. इस तरह के कदमों के बारे में सम्मेलन में आए प्रतिनिधि बहुत सी बातें बता सकते हैं, लेकिन सम्मेलन का अधिकतर हिस्सा मीडिया के लिए खुला नहीं है. कार्यदलों में मध्यस्थता, धर्म और मीडिया के बीच संबंध और शांति की प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका जैसे विषयों पर चर्चा हो रही है.
जर्मन विदेश मंत्रालय ने इस सम्मेलन के लिए बाहरी मदद भी ली है. सम्मेलन का आयोजन फिनलैंड के विदेश मंत्रालय के साथ किया गया है जो दस अधिकारियों के साथ बर्लिन में मौजूद है. हेलसिंकी की अंडर स्टेट सेक्रेटरी ऐन सिपिलेइनेन अपना अनुभव साझा करती हुई कहती हैं कि राज्य और धर्म को एक दूसरे का विरोधी दिखाने के बदले सहयोग की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए.