धर्म, सत्ता और जमीन की लड़ाई
यूरोप में 400 साल पहले एक स्थानीय विवाद दुनिया के सबसे बड़े युद्ध में बदल गया. 30 साल तक चली यह लड़ाई यूरोप में वर्चस्व के युद्ध में बदल गई.
लूटपाट और हिंसा
युद्ध अकसर उन इलाकों में लड़ा गया जहां खाने पीने को अभी भी कुछ बचा था. किसानों को खाने के छुपे भंडारों का पता बताने के लिए मजबूर किया जाता. स्वीडन के लड़ाके अपने बंदियों को जबरन तथाकथित स्वीडिश ड्रिंक पिलाते जो मूत्र, मल और गंदे पानी का घोल होता था.
कैथोलिक जीत में बाधा
स्वीडन के राजा गुस्ताव 1630 में युद्ध में शामिल हुए. लक्ष्य था जर्मनी के प्रोटेस्टेंट समुदाय की रक्षा और अपने प्रभाव में विस्तार. उन्होंने होली रोमन साम्राज्य के सम्राट के नेतृत्व वाले कैथोलिक कैंप की जीत में बाधा डाली. वे युद्ध में खुद अपनी सेना का नेतृत्व करते थे.
राजा की मौत
तीस वर्षीय युद्ध की सबसे बड़ी लड़ाई 16 नवंबर 1632 को जर्मनी के वर्तमान सेक्सनी अनहाल्ट के लुत्सेन में हुई. कोई जीता तो नहीं, लेकिन भारी नुकसान हुआ. अपनी सेना का नेतृत्व कर रहे स्वीडन के राजा मारे गए. कैथोलिक सेना की यही जीत थी.
मौत के सौदागर
कुछ ऐसे भी थे जिन्हें युद्ध से फायदा हो रहा था. कमांडर जो सेनिकों की भर्ती करते थे, पेशेवर सेना चलाते थे और मौत का सौदा करते थे. इसमें सबसे कामयाब जनरल अलब्रहेष्ट था जो रोमन साम्राज्य के साथ था. उसने सेना के खाने पीने और वेतन के लिए सभी नागरिकों पर लेवी लगा दी थी.
मौत का सज़ा
फांसी और यातना रोजमर्रा की बात हुआ करती थीं. कलाकार जाक कैलो ने अपनी तस्वीर में तीस वर्षीय युद्ध की विभीषिका का चित्रण किया है. लोग पीड़ित भी थे और पीड़ा देने वाले भी. कैलो का सबसे जाना माना काम 'द हैंगिंग' (1632/33) है.
ऐतिहासिक शांति
किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये संभव होगा, लेकिन आखिरकार शांति आई. कौथोलिक शहर म्युंस्टर और प्रोटेस्टेंट शहर ओस्नाब्रुक में पांच साल की बातचीत के बाद सभी दलों में शांति संधि पर दस्तखत किए. वेस्टफेलिया शांति संधि को आज भी प्रेरणा माना जाता है.