दुनिया भर में जंगलों को बचाने की जगह उनका सफाया हो रहा है
११ अप्रैल २०२४एक समय पृथ्वी की आधी से अधिक जमीन पर घना जंगल हुआ करता था. इंसान लगभग 10,000 वर्षों से इन जंगलों को काट रहे हैं, लेकिन बीती एक शताब्दी से जंगलों की कटाई में नाटकीय रूप से तेजी आई है.
1900 से अब तक संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की सारी जमीन के आकार के बराबर के जंगल गायब हो गए हैं. यह मात्रा उतनी ही है जितनी कि पिछले 9000 साल में काटे गए जंगल. ऑनलाइन साइंस प्लेटफार्म और वर्ल्ड इन डाटा के मुताबिक जंगलों का यह नुकसान निरंतर बढ़ता जा रहा है.
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) की तरफ से जारी न्यू ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच स्टडी के अनुसार, 2023 में पृथ्वी पर हर सप्ताह सिंगापुर के क्षेत्र के बराबर के जंगल गायब होते गए. इसका मतलब है कि साल भर में कुल 37 लाख हेक्टेयर जमीन से जंगल गायब हो गए. हालांकि जंगलों के कटने की यह दर 2022 की तुलना में थोड़ी सी कम रही है.
रबर की खेती के लिए अंधाधुंध काटे जा रहे हैं जंगल
अकसर खेती की जमीन हासिल करने के लिए जंगलों को काटा जाता है. बीते कुछ दशकों में यह ज्यादातर बीफ, सोया और पाम आयल या टिंबर के लिए किया जाता है. जलवायु परिवर्तन के कारण भड़कती आग में भी जंगल तबाह हो रहे हैं. बीते वर्ष कनाडा में लगी आग ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया था.
अगर जंगल इसी तरह से सिकुड़ते रहे तो यह ग्रह इंसानों के रहने लायक नहीं बचेगा. ज्यादातर देशों ने 2030 तक जंगलों को कटाई पर रोक लगाने की शपथ ली है, लेकिन कोई भी देश उस स्तर के प्रयासों के आसपास नहीं दिख रहा है जो इसे हासिल करने के लिए चाहिए.
डब्ल्यूआरआई में ग्लोबल फॉरेस्ट वाच निदेशक मिकाइला वाइस ने एक बयान में कहा, "दुनिया ने दो कदम आगे बढ़ाये, लेकिन बीते वर्ष के जंगलों के नुकसान की ओर देखा जाए तो वह दो कदम पीछे भी गई है."
मैरीलैंड विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक सर्वे के अनुसार, कोलंबिया और ब्राजील जैसे देशों को उष्णकटिबंधीय जंगलों की कटाई की दर घटाने में सफलता मिली है, लेकिन बोलीविया, लाओस, निकारागुआ जैसे देशों में बढ़ी दर ने फायदे की स्थिति को बराबर कर दिया.
क्यों जरूरी हैं जंगल?
स्वस्थ जंगल ऑक्सीजन बना कर कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करते हैं. इससे धरती पर पलने वाले जीवों को सांस लेने के लिए पर्याप्त हवा मिलती है. जंगल पीने के पानी को भी प्राकृतिक रूप से फिल्टर करके भूजल के रूप में इकट्ठा करते हैं. पेड़ों की जड़ें बारिश के पानी के जमीन के अंदर जाने से पहले ही जरूरी पोषक तत्वों और प्रदूषकों को अवशोषित कर लेती हैं ताकि पीने लायक साफ पानी भूजल के रूप में बचा रहे.
यही जड़ें भूस्खलन के समय मिट्टी को भी मजबूती से बांधे रखती हैं और भारी बारिश के बावजूद पानी सोख लेती हैं. मैंग्रोव जंगलों की बात की जाए तो वे ढाल बनकर चक्रवाती तूफान से तटीय इलाकों को बचाने का काम करते हैं.
जंगल इस बात में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं कि हमें खाने के लिए पर्याप्त खाना मिल जाए. वे फल देते हैं जिसे इंसान खाते हैं या फिर खेती के लिए परागण और जल आपूर्ति को सुनिश्चित करते हैं.
लगभग 30 करोड़ लोग जंगलों में रहते हैं और करीब 1.6 अरब लोगों की आजीविका का सहारा भी जंगल हैं. जंगल उन्हें लकड़ी, ईंधन, भोजन और रहने की जगह या आसरा देते हैं.
इंसानों के साथ-साथ धरती पर जैव विविधता में वनों का 80% से भी अधिक योगदान होता है. करीब 80% उभयचर और 75% पक्षी इन पर आश्रित हैं. उष्णकटिबंधीय वर्षावन ज्यादा जीवों का बोझ उठाने में ज्यादा सक्षम होते हैं. पृथ्वी पर मौजूद आधे से ज्यादा कशेरुकी जीव जंगलों से ही पलते हैं.
अंतरराष्ट्रीय वन संरक्षण के लिए विख्यात गैर सरकारी संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय वर्षा वन जब काटे जाते हैं तो वह हर दिन लगभग 100 प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम मंडराने लगता है. इंसानों के अस्तित्व के लिए जैव विविधता बुनियादी जरूरत है.
जलवायु परिवर्तन और जंगल कैसे जुड़े हैं?
वनों की कटाई को रोका जाना मुमकिन है. 2023 में ब्राजील में 36% तक प्राथमिक वनों की कटाई कम हुई, वहीं पिछले वर्ष की तुलना में कोलंबिया में वनों को नुकसान 49% तक कम हुआ. हालांकि यह सब राजनीतिक कारणों की वजह से हो सका.
वनों के मोर्चे पर कोलंबिया में बनी लाभ की इस स्थिति के पीछे देश में शांति प्रक्रिया की अहम भूमिका रही. इसमें अलग अलग हथियारबंद गुटों के बीच बातचीत हुई और उनमें वन संरक्षण को प्राथमिकता दी गई.
ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने तो वनों के संरक्षण को अपना एक नीतिगत लक्ष्य बनाया है. इसके लिए उन्होंने आवश्यक कानूनी सख्ती करने के साथ ही उन नीतियों को रद्द कर दिया जो वनों को क्षति पहुंचाने वाली थीं. साथ ही मूलनिवासियों के इलाकों को मान्यता भी दी है. उनकी ये नीतियां उनके पूर्ववर्ती जैर बोलसोनारो के एकदम उलट हैं, जिनकी नीतियों में आर्थिक विकास के लिए वनों को खत्म किया जा रहा था.
डब्ल्यूआरआई में वैश्विक वन निदेशक रॉड टेलर का कहना है, "राजनीतिक इच्छाशक्ति के दम पर देश वनों की कटाई की दर को घटा सकते हैं, लेकिन हम जानते हैं कि सियासी हवा बदलने के साथ इस मोर्चे पर प्रगति की धारा पलट भी सकती है.”
इस प्रकार के संभावित रुझान की काट के लिए टेलर का सुझाव है, "वैश्विक अर्थव्यवस्था को खेत, खदान या फिर नई सड़कें बनाने के लिए वनों की कटाई से हासिल होने वाले तात्कालिक फायदों की तुलना में जंगलों की कीमत बढ़ाने की जरूरत है.”
जर्मनी और ब्रिटेन के कारण सबसे ज्यादा उजड़े जंगल
वनों को कैसे संरक्षित किया जा सकता है?
वनों के संरक्षण के कुछ तौर-तरीकों में वैसी वैश्विक पहल भी शामिल हैं, जो वनों का इस आधार पर आकलन करती हैं कि वे कितनी कार्बन संरक्षित कर सकते हैं. वन क्षेत्रों के संरक्षण में लगे स्थानीय निवासियों और जमीन मालिकों को उनके इन प्रयासों के लिए प्रत्यक्ष भुगतान जैसे नए प्रकार के प्रयास भी किए जा रहे हैं.
सप्लाई चेन पर ध्यान दे कर भी जंगलों की कटाई से निपटा जा सकता है. मिसाल के तौर पर, यूरोपीय संघ के डिफोरेस्टेशन रेग्यूलेशन का उदाहरण सामने है. इसमें कंपनियों पर यह दबाव है कि वे मवेशी, कोकोआ, कॉफी, पाम आयल, रबर, सोया और लकड़ी के आयात के मामले में ध्यान रखें कि कहीं वे ऐसे किसी स्थान से तो नहीं आ रहे, जहां उनके लिए जंगल को हाल में ही काटा गया हो.
वनों में निवास करने वाले मूल निवासियों के समुदायों को प्रोत्साहन के माध्यम से भी वनों की कटाई को रोकने में मदद मिल सकती है. विश्व बैंक के अनुसार, बचे हुए करीब 36 प्रतिशत वन मूल-निवासियों की भूमि पर हैं और वे जैव-विविधता के संरक्षण में उपयोगी हैं.
जिस जगह वन की कटाई की गई, वहां दोबारा जंगल लगाना पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उठाए कदमों का हिस्सा है. कई देश तो वहां भी जंगल लगाने की राह पर चल रहे हैं जहां पहले वन नहीं था.
वन विशेषज्ञ टेलर का कहना है, "सभी उष्णकटिबंधीय देशों में वनों की कटाई में स्थाई कमी लाने के लिए साहसिक वैश्विक तंत्र और अनूठी स्थानीय पहल दोनों आवश्यक हैं.”