दलाई लामा की यात्रा पर चीन को दो टूक जवाब
४ अप्रैल २०१७भारत ने निर्वासित जीवन जी रहे तिब्बती अध्यात्मिक नेता दलाई लामा एक बार फिर पूर्वोत्तर भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर हैं. 81 साल के दलाई लामा पहले भी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा कर चुके हैं. तब भी चीन ने ऐसी नाराजगी जतायी थी. भारतीय प्रधानमंत्री के अरुणाचल दौरे पर भी बीजिंग का मायूसी जताना कोई नई बात नहीं हैं.
दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा का विरोध कर रहे चीन को जवाब देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, "भारत के कई राज्यों में उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों और दौरे पर कोई अतिरिक्त रंग नहीं भरना चाहिए." अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए नई दिल्ली ने साफ किया कि चीन को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. भारतीय विदेश राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, "भारत वन-चाइना पॉलिसी का सम्मान करता है. हम चीन से भी ऐसे ही पास्परिक रुख की उम्मीद करते हैं."
चीन दलाई लामा को खतरनाक अलगाववादी मानता है. उनकी अरुणाचल यात्रा का विरोध करते हुए चीन ने कहा कि भारत को "सीमा विवाद को और जटिल बनाने से बचने के लिए इस तरह के कदमों के दूर रहना चाहिए." नई दिल्ली ने इसके जवाब में कहा कि तिब्बती आध्यात्मिक नेता का दौरा धार्मिक है, उसका कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए. चीन को लगता है कि दलाई लामा और अन्य प्रभावशाली हस्तियों की अरुणाचल यात्रा के जरिये भारत पूर्वोत्तर के राज्य में अपना दावा मजबूत कर रहा है. बीजिंग अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके को पूर्वी तिब्बत कहता है और इसी आधार पर उस पर अपना दावा जताता है.
सन 1959 में तिब्बत में चीनी सेना के खिलाफ हुए विद्रोह के दौरान दलाई लामा तवांग के रास्ते ही भागकर भारत आए थे. तब से वह भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं. कई दशकों तक उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर से तिब्बत की निर्वासित सरकार भी चलाई.
4 और 5 अप्रैल को अरुणाचल दौरे में दलाई लामा तवांग के बौद्ध मठ भी जाएंगे. 13 दिन तक पैदल चलने के बाद दलाई लामा सबसे पहले तवांग के मठ ही पहुंचे थे. तवांग मठ में वह उपदेश देंगे.
इस बीच भारत के तवांग को रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना भी बना रहा है. बीजिंग इसका भी विरोध कर रहा है. चीन पूरी दुनिया से वन चाइना पॉलिसी का सम्मान करने को कहता है. इसके तहत ज्यादातर देश तिब्बत को चीन का हिस्सा मानते हैं. वहीं भारत का तर्क साफ है कि अगर चीन वन-चाइना पॉलिसी का सम्मान चाहता है तो उसे दूसरे देशों की संप्रभुता का भी सम्मान करना होगा.
भारत और चीन के बीच करीब 4,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा है. जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद है. सीमा विवाद के चलते दोनों देशों की बीच 1962 में युद्ध भी हो चुका है.
(चीन के पांच सिर दर्द)
ओएसजे/आरपी (पीटीआई)