दक्षिणी ध्रुव पर नया जीवन
८ मार्च २०१३रूस की रशियन इंफॉर्मेशन एजेंसी आरआईए का दावा है कि इस जगह पर उन्होंने पिछले एक दशक तक खुदाई की और बीच बीच में वे रुक भी गए. इस दौरान उन्होंने एक जमी हुई झील से पानी का नमूना लिया है. उनका दावा है कि पिछले एक करोड़ 40 लाख साल से किसी ने इसे छुआ तक नहीं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि वोस्टोक लेक में 3700 मीटर गहरी बर्फ में छिपे राज के आधार पर हिमयुग से पहले पृथ्वी कैसी थी, इसे समझा जा सकता है. इससे दूसरे ग्रहों पर जीवन को भी समझा जा सकता है.
सेंट पीटर्सबर्ग न्यूक्लियर फीजिक्स इंस्टीट्यूट के सेर्गेई बुलात ने कहा, "इसमें से दूषित करने वाले पदार्थों को हटाने के बाद बैक्टीरिया का एक डीएनए मिला है, जो हमारे मौजूदा डाटाबेस के किसी भी जीव के डीएनए से मेल नहीं खाता."
उन्होंने कहा, "अगर यह बैक्टीरिया मंगल पर मिलता, तो हम बिना किसी शुबहा के कहते कि वहां जीवन है. लेकिन यह डीएनए धरती पर मिला है." उनके मुताबिक यह बिलकुल अलग तरह के जीवन को दर्शाता है.
रूस की ही तरह अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिक भी इस बात की खोज कर रहे हैं कि क्या धरती पर पहले कहीं जीवन था. अमेरिका के एक दल का दावा है कि उन्होंने ग्लेशियर के नीचे के विल्हन्स झील से कुछ नमूने लिए हैं, जिनमें उन्हें जीवित कोशिका मिली है. हालांकि उनका कहना है कि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले उन्हें और रिसर्च की जरूरत है. ब्रिटेन ने एल्सवर्थ झील में खुदाई का काम पिछले साल दिसंबर में रोक दिया था क्योंकि यह संभव नहीं हो पा रहा था.
अगर बर्फीले इलाके में जीवन के नमूने मिलते हैं तो इस बात को समझने में आसानी होगी कि क्या मंगल या वृहस्पति के उपग्रह यूरोपा पर भी जीवन संभव हो पाएगा, जहां जीने की परिस्थितियां बेहद जटिल हैं.
रूसी खोजी दल ने जिस जगह पर खुदाई की, वहां खुदाई के उपकरण के एक छोर पर पानी जम गया था और उसकी जांच में ही उन्हें नई बात का पता चला. ये झील उन झीलों के समूह का हिस्सा है, जो बर्फ की सतह के नीचे है और जिसकी वजह से धरती के तापमान को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलती है.
रूसी एजेंसी आरआईए ने बुलात के हवाले से कहा कि अपनी खोज की पुष्टि के लिए वैज्ञानिक कुछ और नमूनों की जांच कर रहे हैं. इस बात की शंका थी कि ड्रिलिंग यानी खुदाई के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरण में कई दूसरे केमिकलों का भी इस्तेमाल हुआ था और कहीं यह बैक्टीरिया उनमें चिपका तो नहीं रह गया. लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि इस बात की संभावना नगण्य है.
बुलात का कहना है, "जब हमने डीएनए की पहचान करने की कोशिश की, तो यह किसी भी जाति से नहीं मिल पाया." उनका कहना है कि अगर ऐसा ही नमूना दोबारा मिल गया, तो हम दावे के साथ कह सकेंगे कि पृथ्वी पर नया जीवन मिला है.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)