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"तुम भी जर्मनी हो, अली"

फोल्कर वाग्नर/आईबी१० जनवरी २०१५

पेरिस पर हुआ हमला जर्मन समाज के लिए भी एक कसौटी जैसा है. देश की मुस्लिम आबादी को भी इस पर खरा उतरना होगा. डॉयचे वेले के फोल्कर वाग्नर का कहना है कि उन्हें खुलकर जर्मनी से जुड़ना होगा.

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Aktionstag der deutschen Muslime 19.9.2014 Muslime gegen Hass
तस्वीर: Getty Images/Sean Gallup

पेरिस पर हुआ हमला जर्मन समाज के लिए भी एक कसौटी जैसा है. देश की मुस्लिम आबादी को भी इस पर खरा उतरना होगा. डॉयचे वेले के फोल्कर वाग्नर का कहना है कि उन्हें खुलकर जर्मनी से जुड़ना होगा.

पेरिस का बर्बर हमला बहुत ही गलत समय पर जर्मनी पहुंचा है. ड्रेसडेन से इस्लाम के खिलाफ एक धुंधला सा डर फैलने लगा है, जो दुर्भाग्यवश एक जातिवादी माहौल बना रहा है. सबसे बढ़कर पेगीडा आंदोलन में हिस्सा लेने वाले सीधे सादे लोगों को अब इस्लाम के खिलाफ अपनी तर्कहीन समीक्षा उचित लगने लगी है. बेशक इसका असर हम पर भी पड़ेगा. नेता, नगरपालिका, शिक्षक, पत्रकार, सरकारी अधिकारी या वे लोग जो समाज को देखते हुए शिरकत करना चाहते हैं, उन सब पर असर होगा.

हां यह सच है कि जर्मन राष्ट्र और समाज कुल मिला कर पड़ोसी देश फ्रांस से ज्यादा मजबूत स्थिति में है. फ्रांस की तरह हमारा किसी मुस्लिम देश में उपनिवेश वाला अतीत नहीं है, हमारी अर्थव्यवस्था स्थिर है, बेरोजगारी दर कम है और पेरिस और मारसे के शहरों के विपरीत बर्लिन, फ्रैंकफर्ट और म्यूनिख में समानांतर समाज दिखता है. और जहां फ्रांस पिछले कई सालों से अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहा है, वहीं जर्मनी में हमने उसी दौरान अपनी एक अलग, सकारात्मक छवि बनाई है. कुल मिलाकर फ्रांस सर से पैर तक एक रोग का शिकार है, जबकि जर्मनी को हल्की सी कमजोरी है, जिसका नाम है पेगीडा.

पेगीडा पर लगाम

फ्रांस के नेशनल फ्रंट (एफएन) की अगर पेगीडा से तुलना करें तो सब साफ हो जाता है. विदेशी विरोधी एफएन फ्रांस की 25 फीसदी वोट पाने वाली उग्रदक्षिणपंथी पार्टी है, जिसकी तुलना जर्मनी की पुरानी एसपीडी पार्टी से की जा सकती है, जिसे इतना वोट मिलता है. यह अपने आप में काफी बुरा है. इसके विपरीत सैक्सनी के देशभक्त यूरोपीय बस मौजूदा वक्त की उपज हैं. भगवान का शुक्र है कि वे कोई पार्टी नहीं हैं, यानि समाज में उनकी कोई जगह नहीं है.

फ्रांस, ब्रिटेन या फिर इटली में उग्रदक्षिणपंथी पार्टियां भारी मत ले कर संसद में पहुंच जाती हैं, तब भी वहां के लोग उतना हल्ला नहीं करते, जितना कि जर्मनी में महज एक विदेशी विरोधी संगठन के बन जाने से हो जाता है. वरना इस बात का क्या मतलब है कि पेरिस और लंदन में मीडिया पिछले हफ्तों से छोटे से पेगीदा में इतनी रुचि दिखा रहा है.

जर्मन मुस्लिम और देशभक्ति

लेकिन जर्मनी के 490 लाख मुसलमानों पर भी देश में सांस्कृतिक सहिष्णुता की जिम्मेदारी है. हालांकि बैर्टेल्समन के ताजा सर्वे के अनुसार जर्मन नागरिकता वाले 90 फीसदी मुसलमान लोकतंत्र को सरकार चलाने की अच्छी व्यवस्था मानते हैं, लेकिन जिस देश में वे रहते हैं, काम करते हैं, अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, उसके लिए दूसरी देशभक्ति रोजमर्रे में कम ही दिखती है.

यह सच है कि जर्मनों का विदशियों को स्वीकार करने और समाज में घुलने मिलने देने की तैयारी उस स्तर की नहीं है जैसी उत्तर अमेरिका में आप्रवासन वाले देश के रूप में है. लेकिन दबे हुए इस्लाम विरोध या परायों को अस्वीकार करने की ओर लगातार इशारा भी जर्मनी के मुसलमानों के लिए लंबे समय में मददगार नहीं है.

अपने देश के लिए

पेरिस के हमले पर मुस्लिम संगठनों का सड़कों पर उतरने का आह्वान भरोसा दिलाने वाला संकेत है. पेगीडा की रैलियों के जवाब में एक रैली और एकजुटता का संकेत. जर्मनी और उसकी कानूनी संरचना के साथ जुड़ाव का प्रदर्शन. और यह जॉन एफ कैनेडी की भावनाओं के अनुरूप है जिन्होंने 1961 में राष्ट्रपति का पद संभालते हुए मांग की थी, अमेरिकियों को यह नहीं पूछना चाहिए कि देश उनके लिए क्या कर सकता है, बल्कि यह कि वे देश के लिए क्या कर सकते हैं.