तमिलनाडु में डीएमके की जीत तो केरल में वामपंथी मोर्चा जीता
२ मई २०२१तमिलनाडु में प्रांत के प्रमुख नेताओं जयललिता और करुणानिधि की मौत के बाद यह पहला चुनाव था. डीएमके ने एमके स्टालिन के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और प्रांत के सत्ताधारी गठबंधन को हराया. एआईएडीएमके के गठबंधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजेपी पार्टी भी शामिल थी. पार्टी के नेतृत्व वाला मोर्चा, जिसमें कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां और वीसीके शामिल हैं, 234 सदस्यों वाली विधान सभा में 154 सीटों के साथ बढ़त में है. प्रांत में विधान सभा के लिए 6 अप्रैल को मतदान हुआ था.
दूसरी ओर, एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले मोर्चे को 80 सीट मिलने की उम्मीद है. स्टालिन ने कहा, "डीएमके के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू होने वाला है." चुनाव में जीत के साथ, डीएमके कार्यकर्ता पार्टी मुख्यालय में इकट्ठा हुए और पटाखे फोड़कर जीत का जश्न मनाया. कोविड-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल का कोई पालन नहीं किया. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, डीएमके ने 37.2 प्रतिशत मत प्राप्त किए और सहयोगी दलों के साथ यह लगभग 43 प्रतिशत था जबकि एआईडीएमके को 33.5 प्रतिशत मिले. गठबंधन के साथ-साथ यह लगभग 41 प्रतिशत था.
केरल में रचा इतिहास
केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने इन चुनावों में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार का नेतृत्व करते हुए सत्ता बनाए रखकर इतिहास रच दिया. राज्य विधान सभा की 140 सीटों में 91 वाम मोर्चे को मिली है. पिछले 40 सालों में कोई सरकार पहली बार दोबारा चुनी गई है. लेकिन जीत की खुशी में वामपंथी मुख्यमंत्री के दिल में पार्टी के अपने महत्वपूर्ण साथियों और अनुभवी दिग्गजों की कमी खलेगी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक आदर्श नियम बनाया था कि जिनके पास लगातार दो कार्यकाल का अनुभव है, उन्हें इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतारना है. इसलिए पांच अनुभवी मंत्रियों और 28 सिटिमंग विधायकों को टिकट नहीं दिया गया था.
जीतने वाले उम्मीदवारों में राज्यमंत्री कडकम्पल्ली सुरेंद्रन (पर्यटन), एमएम मणि (विद्युत), एसी मोइदीन (स्थानीय स्वशासन), टीपी रामकृष्णन (एक्साइज) और केके शैलजा (स्वास्थ्य) शामिल रहे हैं. उच्च शिक्षा मंत्री केटी जेलेल हालांकि माकपा के नहीं हैं, मगर उन्होंने भी जीत हासिल की है और यह देखा जाना बाकी है कि क्या उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा? इसी तरह एमवी गोविंदन को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है हालांकि वह विजयन के सबसे करीबी सहयोगी माने जाते हैं. सभी की निगाहें विजयन के दामाद मोहम्मद रियाज पर भी हैं जो ब्योपुर से 20,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते हैं. एलडीएफ की दूसरी सबसे बड़ी घटक सीपीआई से भी नवनिवार्चित विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है. पिछली सरकार में सीपीआई से चार मंत्री थे, मगर इस बार उनकी संख्या कितनी रहेगी, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि इस बार उनकी सीटें 19 से घटकर 16 रह गई हैं.
बीजेपी को पुद्दुचेरी का सहारा
राज्य में जगह बनाने की जोरदार कोशिश कर रहे बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली है. पांच साल पहले हुए पिछले चुनावों में उसने एक सीट जीती थी. पर इस बार अपना खाता तक नहीं खोल पाई. हालांकि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने कम से कम तीन निर्वाचन क्षेत्रों में कड़ी लड़ाई लड़ी. 2016 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ राजगोपाल ने तिरुवंतपुरम जिले में नेमोम विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल की थी, जिससे भाजपा को राज्य में पहली बार सीट मिली.
इन चुनावों में मतगणना शुरू होने के साथ ही भाजपा तीन सीटों, नेमोम, पलक्कड़ और त्रिशूर में आगे चल रही थी. नेमोम में, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन ने कुछ राउंड तक बढ़त बना रखा था, मगर पिछली बार राजगोपाल से हारने वाले पूर्व माकपा विधायक वी सिवनकुट्टी ने उन्हें पीछे कर दिया. शिवनकुट्टी ने 5,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की. पलक्कड़ में 'मेट्रोमैन' ई श्रीधरन भी जीत नहीं पाए. शुरुआती बढ़त के बाद वे अंतिम कुछ राउंड में पिछड़ गए और अंतत: उनके कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी और युवा कांग्रेस अध्यक्ष शफी परम्बिल ने 3,840 मतों के अंतर से हरा दिया. राज्यसभा के मनोनीत सदस्य मलयालम सुपरस्टार सुरेश गोपी भी त्रिशूर में हार गए.
पुद्दुचेरी में बीजेपी गठबंधन ने कांग्रेस गठबंधन को हरा दिया है. दक्षिण भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगी बीजेपी को पुद्दुचेरी की जीत से सहारा मिलेगा.
एमजे/आईबी (आईएएनएस)