जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव पर मतभेद
२५ अप्रैल २०१५निर्भया बलात्कार मामले ने भारत में कई तरह के बदलावों की पहल की है. पहले सड़कों पर युवाओं का खुल कर प्रदर्शन करना, फिर सोशल मीडिया में अपनी आवाज उठाना और उसके बाद संसद में कानूनों पर चर्चा होना इस मामले के तहत हुआ है. निर्भया मामले में आरोपियों में से एक नाबालिग था. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत नाबालिग को तीन साल से ज्यादा की सजा नहीं हो सकती. ऐसे में यह बहस छिड़ी कि जघन्य अपराध कर बलात्कारी को केवल तीन साल में ही रिहा कैसे किया जा सकता है. लंबे समय से चली आ रही इस बहस को अब अंजाम तक पहुंचा दिया गया है. केंद्र सरकार ने जघन्य अपराध के मामले में 16 से 18 साल की उम्र वालों को वयस्क के ही रूप में देखने का फैसला किया है. इस बिल को बुधवार को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गयी.
जहां महिला संगठनों ने इसका स्वागत किया है वहीं किशोरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाएं इस फैसले का बहिष्कार भी कर रही हैं. पीपल्स युनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज की कविता श्रीवास्तव ने समाचार एजेंसी डीपीए से बात करते हुए कहा, "आप अपनी ही अदालतों के जरिए अपने ही बच्चों को अपराधी करार नहीं करवा सकते." उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का काम केवल सजा देने का नहीं, बल्कि लोगों को सुधारने का भी है. निर्भया मामले पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "हम एक मामले के कारण निष्पक्ष दृष्टिकोण कैसे खो सकते हैं?" इसी तरह बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली दिल्ली स्थित संस्था 'हक' की भारती अली ने भी कहा, "बच्चे सुधरते हैं, उन्हें मौका देना जरूरी है. बच्चों के साथ इस तरह से भेदभाव करना संविधान के खिलाफ है."
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के किशोरों को इसलिए कम सजा दी जाती है क्योंकि कानून के मुताबिक वे नहीं जानते कि वे जो अपराध कर रहे हैं, उसका क्या नतीजा होने वाला है. निर्भया मामले के बाद भी ऐसे कुछ मामले आए हैं जहां बलात्कारी की उम्र 18 से कम रही हो. इसके अलावा सरकार हत्या और डकैती के भी कई मामलों में किशोर 16 से 18 साल के होते हैं. नए कानून के अनुसार मनोवैज्ञानिक इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि अपराध करते वक्त अपराधी की मनःस्थिति क्या थी और उसे वयस्क की ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए या नहीं.
ईशा भाटिया (डीपीए, एएफपी)