जान बचाने के लिए भागें भी कैसे?
म्यांमार में तटीय इलाकों में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की नावें जब्त कर ली गई हैं. भागने के लिए अब रोहिंग्या प्लास्टिक की खतरनाक नावों का सहारा ले रहे हैं.
नावें जब्त
म्यांमार प्रशासन ने रखाइन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय की नावें जब्त कर लीं. अधिकारी चाहते हैं कि रोहिंग्या नावों के सहारे भाग न सकें. प्रशासन का दावा है कि इलाके में उग्रवादी गतिविधियां चल रही हैं, जिन्हें रोकने के लिए ऐसा किया गया है.
पेट पर लात
अधिकारियों द्वारा कई नावें जब्त किये जाने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों को रोजी रोटी के लाले भी पड़े हैं. आम तौर पर मछली पकड़कर परिवार चलाने वाले मायूस हैं. कुछ ने प्लास्टिक और लकड़ी का सहारा लेकर कामचलाऊ नावें बनाई. अब इन्हीं नावों के जरिये मछली पकड़ी जाती है.
नाकाफी कमाई
प्लास्टिक की नावें समुद्र में बहुत दूर तक नहीं जा पातीं. इसीलिए तट के करीब ही मछुआरे थोड़ी बहुत मछली पकड़ लेते हैं और बीच पर ही उन्हें बेच देते हैं.
जान बचाने का जरिया
रोहिंग्या समुदाय के लोगों को लगता है कि नावें ही जान बचाने का सबसे बढ़िया जरिया हैं. हिंसा की आंशका या भनक लगते ही लोग जरूरी साजो सामान लेकर संमदर में निकल पड़ते हैं.
पीछे छूटती जिंदगी
प्लास्टिक की नावों पर बच्चों और महिलाओं को नहीं चढ़ाया जाता. सिर्फ नौजवान इनका इस्तेमाल करते हैं. वे और उनका परिवार जानता है कि हर सफर आखिरी सफर भी हो सकता है.
आलोचना दबाने का तरीका
म्यांमार के अधिकारियों को लगता है कि अगर रोहिंग्या भाग नहीं पाएंगे तो दुनिया को कुछ पता भी नहीं चलेगा. भागकर दूसरे देशों में पहुंचे लोगों के जरिये ही म्यांमार के रोहिंग्या समुदाय की खबरें सामने आती हैं.