जहां पैदा होती है अंगूर की बेटी
२६ सितम्बर २०१०जर्मनी में 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वाइन बनाने के लिए अंगूर की खेती होती है. ये खेत 13 वाइन क्षेत्रों में बंटे हैं जहां की वाइन वैसे ही मशहूर है जैसे दार्जिलिंग, असम और नीलगिरी की चाय. इन्हीं में शामिल है भूतपूर्व राजधानी बॉन के निकट स्थित रोमांटिक आर घाटी भी.
सितंबर और अक्तूबर महीने में अंगूर की फसल कटने लगती है. आर और मोजेल के इलाके को खेती के लिए मुश्किल माना जाता है क्योंकि खेल ढलान पर हैं और उन पर चढ़ना आसान नहीं होता. क्वॉलिटी वाइन के लिए अंगूर को हाथों से काटा जाता है.
इस साल अगस्त में इतनी बारिश हुई कि अंगूर की खेती के खराब होने का खतरा था. लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में पड़ी गर्मी ने स्थिति बेहतर कर दी है. फसल बुरी तरह खराब होने का आशंका समाप्त हो गई है. पहाड़ी ढलानों पर खेत होने के कारण कटे हुए अंगूरों को पहले एक जगह इकट्ठा किया जाता है.
फसल अच्छी हो तो किसानों की बांछें खिल जाती हैं. करीब डेढ़ वर्गमीटर पर एक अंगूर का पेड़ होता है और रसदार अंगूर होने से हर पेड़ से एक से डेढ़ लीटर वाइन बनती है. किसानों की आमदनी का जरिया वाइन की बिक्री के अलावा खेती के समय आने वाले पर्यटकों के रहने और खाने पीने से हुई आय है.
फिर उन्हें ट्रैक्टर के पीछे लगी ट्रॉली में रखकर गांव लाया जाता है. आर और मोजेल के इलाके में बहुत से छोटे छोटे किसान हैं जो अंगूर की खेती करते हैं और खुद अपनी वाइन बनाते हैं. इस इलाके में वाइन उत्पादन को आसान और सस्ता बनाने के लिए सहकारिताएं भी हैं.
खेतों से लाए गए अंगूरों को बिजली की मशीनों में निचोड़ा जाता है, फिर उसके रस को अंधेरे तहखाने में रखकर नियंत्रित किण्वन होने दिया जाता है. इस प्रक्रिया के अंत में वाइन बनती है.
गन्ना उपजाने वाले गांवों में गुड़ बनाने वाले कारीगर जिस तरह गन्ने को पुरानी मशीनों में पेड़ते हैं उसी तरह अंगूरों के पेड़ने की मशीनें भी होती थीं. बिजली की मशीनें आने के बाद उनका उपयोग रुक गया है और उन्हें वाइन बनाने वाले किसान अपने घरों के सामने यादगार के तौर पर रखने लगे हैं.
वाइन को लकड़ी के ड्रमों में रखकर पहाड़ों के नीचे बने प्राकृतिक रूप से ठंडे तहखाने में रखा जाता है. कहते हैं वाइन भी सांस लेती है. लकड़ी के ड्रम में रखने से उसका स्वाद संवरता जाता है.
बेचने के लिए वाइन को आधुनिक तरीके से बोतलों में भरा जाता है. पहले वाइन की बोतलों को बंद करने के लिए कॉर्क का इस्तेमाल होता था, लेकिन प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कॉर्क की कमी होने के कारण बोतलों को धातु के ठक्कनों से भी बंद किया जाने लगा है.
अंगूर की खेती का समय जर्मनी में पर्यटन का समय भी होता है. धान कटने के बाद जिस तरह नया चूरा बनता है उसी तरह अंगूर की फसल के बाद नई वाइन बनती है जिसे फेडरवाइसे या फेडररोटे के नाम से जाना जाता है. कम अल्कोहल वाली यह वाइन और अंगूर की वादियां पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है.
अंगूर की खेती के दिनों में इलाके के किसी न किसी गांव में हर सप्ताह महोत्सवों का आयोजन किया जाता है. वाइन सुंदरी चुनी जाती है और मेला लगाया जाता है ताकि पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके.
वाइन इलाकों के कुछ पुराने तहखानों को इस बीच रेस्तरां बना दिया गया है जहां लोग इलाके की वाइन चख सकते हैं, चखने के बाद अच्छी लगे तो खरीद सकते हैं और खाना पीना भी कर सकते हैं.
वाइन के इलाकों में अंगूर की खेती और वाइन बनाने की लंबी परंपरा है, लेकिन जर्मनी में समृद्धि आने से पहले 19वीं सदी तक वाइन किसान बहुत अमीर नहीं हुआ करते थे. अमीरी आने के बाद मध्ययुगीन गांवों को सजा संवार दिया गया है.
लेख: महेश झा
संपादन: वी कुमार