जर्मनी में गरीब बच्चों के लिए सड़क पर ही स्कूल
१५ अप्रैल २०१२भारत में हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार है, लेकिन हकीकत में अधिकार सभी को मिलता नहीं. पश्चिमी विकसित देशों में हालात बेहतर हैं, लेकिन शिक्षा से महरूम रहने वाले बच्चों की संख्या चौका देने वाली है.
जर्मनी के मानहाइम शहर में गरीब बच्चों के लिए सड़कों पर स्कूल चल रहा है. यहां ना तो क्लासरूम हैं और ना ही स्कूलों में मिलने वाली अन्य सुविधाएं. दरअसल यह मानहाइम यूनिवर्सिटी की एक पहल है. बेघर लोगों के लिए बनाए गए शिविर में यह स्कूल चल रहा है. इस जगह को फ्रीजोन कहा जाता है. यहां बेघर लोग खाना खाने और रात बिताने आते हैं. इसी जगह के बेसमेंट में यह स्कूल चल रहा है. फ्रीजोन चलाने वाली समाज सेविका आंद्रेया शुल्त्ज का कहना है, "हमने सोचा कि कुछ भी हो, हमें कोई तरीका ढूंढना है कि स्कूल हम तक पहुंच जाए, बजाए इसके कि हम स्कूल तक पहुंचने की कोशिश करें."
मिला नया मौका
मार्को इस स्कूल के छात्रों में से एक है. वह यहां हायर सेकेंडरी की परिक्षा की तैयारी कर रहा है. अन्य स्कूली बच्चों की तुलना में यहां फर्क यह है कि मार्को की उम्र 22 साल है और वह पहले भी दो बार परीक्षा दे चुका है, लेकिन पास नहीं हो सका, "मैं हमेशा हाई स्कूल पूरा करना चाहता था और मैंने कई बार कोशिश भी की, लेकिन मुझे एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था क्योंकि मैं अलग अलग लोगों के साथ रह रहा था जिन्होंने मुझे गोद लिया हुआ था और सभी के घर अलग अलग जगह थे." जर्मनी में लोग बेघर बच्चों की मदद करने के लिए उन्हें कुछ इस तरह से गोद ले सकते हैं कि बच्चे कुछ समय के लिए उनके घर में रह सकें. हालांकि इसके फायदे हैं, बेघर बच्चों को घर और परिवार दोनों ही मिल जाते हैं. लेकिन मार्को के मामले में पता चलता है कि यह बच्चों के लिए काफी मुश्किल भी हो सकता है. मार्को का कहना है कि उसकी जिंदगी में इतना तनाव था कि वह पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाता था. लेकिन अब जब उसकी परेशानियां सुलझ रही हैं तब वह एक बार फिर से पढ़ना चाहता है. और ऐसे में फ्रीजोन में चल रहा स्कूल मार्को के लिए काफी मददगार साबित हो रहा है.
स्ट्रीट स्कूल प्रोजेक्ट
इस स्कूल में बच्चे किसी भी वक्त दाखिला ले सकते हैं. उन्हें साल शुरू होने का इंतजार नहीं करना पड़ता. और ना ही इस बात की चिंता करनी होती है कि उनकी क्लास में कुल कितने बच्चे होंगे. क्योंकि यहां हर बच्चे को अलग से पढ़ाया जाता है - ट्यूशन क्लास की तरह. फिलहाल यहां दस बच्चे पढ़ रहे हैं. इन सब के लिए अलग अलग टीचर हैं. क्लास हफ्ते में चार बार शाम पांच से आठ के बीच लगती है. मानहाइम स्ट्रीट स्कूल प्रोजेक्ट पर काम कर रही मानहाइम यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर उटे श्नेबल का कहना है, "ये बच्चे पहले ही स्कूल छोड़ चुके हैं. इन्हें दोबारा उसी ढांचे में धकेलने का कोई मतलब नहीं बनता जिससे ये भाग कर आए हैं." श्नेबल को स्ट्रीट स्कूल का विचार कोलंबिया में इसी तरह चल रहे स्कूल से आया.
पढ़ाई की उम्र नहीं
यहां टीचर के रूप में अधिकतर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स काम करते हैं जो यहां बच्चों को मुफ्त में पढ़ते हैं. बच्चों को इस बात की खुशी है कि उनके टीचर अन्य स्कूली टीचरों जैसे नहीं हैं. यहां पढ़ने वाली डियाने कहती हैं, "यहां टीचर बहुत अच्छे हैं. वे जवान हैं और यह अच्छा है क्योंकि वे हमें समझ सकते हैं. ज्यादा उम्र के लोग अधिकतर हमारी दिक्कतों को समझ ही नहीं पाते और वहीं से सारी समस्या शुरू होती है." 15 साल की डियाने एक ऐसे परिवार से है जहां पढ़ाई को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती. लेकिन वह पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहती है, "मैं महत्वाकांक्षी हूं. मेरा परिवार गरीब है, लेकिन मैं आगे चल के एक अच्छी जिंदगी बिताना चाहती हूं. मैं किसी पर निर्भर नहीं होना चाहती. और इसे हासिल करने के लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा मैं करूंगी. डियाने की अपने जैसे बच्चों को सलाह है कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं,"आप जब चाहें स्कूल पूरा कर सकते हैं."
रिपोर्ट: केट हेयरसाइन / ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे