जब सड़कों पर उतरे "शैतान"
"डांसिंग डेविल्स" वेनेजुएला की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का हिस्सा हैं. जानिए क्या है रंग बिरंगी पोशाकें पहने सड़कों पर नाचते हुए इन "शैतानों" की परंपरा के पीछे.
सैकड़ों साल पुरानी परंपरा
हर साल जून की शुरुआत में सैकड़ों लोग रंग बिरंगी पोशाकें पहने नगाड़ों की धुन पर थिरकते हुए वेनेजुएला के शहरों में सड़कों पर उतर आते हैं. ये "डांसिंग डेविल्स" नाम की वेनेजुएला की सर्वोच्च परंपराओं में से एक का हिस्सा है, जिसके तहत स्थानीय लोग कई जानवरों और रहस्यमयी जंतुओं की पोशाकें पहन कर इस सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का जश्न मनाते हैं.
'बुराई पर अच्छाई की जीत' का जश्न
यह परंपरा "कोर्पस क्रिस्टी" नाम के दिन से जुड़ी है. कैथोलिक ईसाइयों का मानना है कि इस दिन ब्रेड और वाइन यीशे मसीह का शरीर बन गए थे. वेनेजुएला में इस दिन पवित्र मास (समारोह) में शामिल होने या यात्रा निकालने की जगह नृत्य किया जाता है. यह नृत्य बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है.
शैतान का पश्चाताप
इसमें हिस्सा लेने वाले सभी श्रद्धालु "कोफ्रादिया" नाम के एक धार्मिक समूह के सदस्य होते हैं. जश्न की शुरुआत चर्च के घंटे की आवाज से होती है. उसके बाद सभी थिरकते हुए चर्च पहुंचते हैं और फिर चर्च के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना करते हैं. शाम को मास का आयोजन होता है और उसमें "शैतान" प्रतीकात्मक रूप से अच्छाई की शक्तियों के आगे समर्पण कर देते हैं.
त्यौहार की शुरुआत
इस त्यौहार की शुरुआत को लेकर कई मान्यताएं हैं. कुछ का मानना है कि इसकी शुरुआत स्पेन में पांचवीं शताब्दी में हुई, जब कैथोलिक चर्च के सदस्य नृत्य का इस्तेमाल वहां के मूल निवासियों को चर्च की तरफ आकर्षित करने के लिए किया करते थे. ऐसा भी कहा जाता है कि वेनेजुएला में चर्च ने इस त्यौहार का इस्तेमाल अफ्रीकी गुलामों को अपने धार्मिक उत्सवों की तरफ आकर्षित करने के लिए किया.
अलग अलग रूप
अलग अलग शहरों के उत्सवों में थोड़ा थोड़ा फर्क है. यारे शहर के कोफ्रादिया लाल रंग की पोशाक पहनते हैं, जिसे पारंपरिक रंग से शैतान का रंग माना जाता है. लेकिन तटवर्ती शहर नाइगुआता में मुखौटे बहुरंगी होते हैं और अक्सर समुद्री जंतुओं के होते हैं. और दूसरे शहरों में नर्तक अक्सर पौराणिक पात्रों पर आधारित पोशाक पहनते हैं.
ना महामारी रोक पाई, ना आर्थिक संकट
अभी तक तो यहां के लोगों को यह त्यौहार मनाने से ना कोरोना वायरस महामारी रोक पाई है और ना आर्थिक संकट. देश में टीकाकरण की रफ्तार भी बहुत धीमी है. इस साल कई नर्तकों ने अपने मुखौटों के नीचे मेडिकल मास्क भी पहने हुए थे और वो एक दूसरे से दूरी भी बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे. पहले तो पर्यटक भी इन नजारों को देखने यहां की सड़कों पर बड़ी संख्या में आते थे, लेकिन इस साल वो गायब थे. - मोनीर घैदी