चांद पर चीन के कदम
१४ दिसम्बर २०१३सॉफ्ट लैंडिंग यानी विमान बहुत ही धीमी गति से चांद की सतह पर उतरा है और उसके अंदर उपकरणों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ है. इससे पहले चांद पर कदम रखने वाला यान 1976 में पूर्व सोवियत संघ का था. 1972 में आखिरी बार अमेरिकी स्पेस शटल अपोलो के यात्री चांद पर पहुंचे थे.
चांग ई-3 मिशन के जरिए चीन चांद की सतह पर मौजूद खनिज और धातुओं का पता लगाना चाहता है. चीनी मीडिया के मुताबिक चांग ई-3 की लैंडिंग निर्धारित समय से थोड़ा पहले ही हो गई.
चीन ने 1 दिसंबर की रात को करीब 56.4 मीटर ऊंचे लॉन्ग मार्च 3बी रॉकेट के जरिये चांग ई-3 प्रोब को धरती की कक्षा में प्रक्षेपित किया. चांग ई-3 को शीचांग सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से अंतरिक्ष में भेजा गया था. लॉन्ग मार्च रॉकेट के पेलोड (रोवर को ले जाने वाला वाहन) में लैंडिंग मॉड्यूल और छह पहियों वाला रोबोटिक रोवर जुड़ा है जिसे नाम दिया गया है "यूतू" यानी हरे पत्थर से बना खरगोश. चीन की पौराणिक गाथाओं में चांग ई को चांद की देवी माना जाता है. यूतू इस देवी का पालतू खरगोश है.
चांद पर चांग ई-3 को भेजने के बाद चीन ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए भारत से हाथ मिलाने की इच्छा जताई थी. मंगलयान की अब तक की सफलता के बाद भारत अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों के उस समूह में शामिल हो गया है जिसको मंगल मिशन में सफलता मिली है.
पिछले दिनों भारत ने मंगलयान को अंतरिक्ष में भेजा और अब तक यह सफल रहा है. चीन के लॉन्च के एक दिन पहले ही भारत के मंगलयान ने पृथ्वी की कक्षा सफलतापूर्वक छोड़ी और वह 300 दिन की यात्रा करने के बाद मंगल की कक्षा में दाखिल होगा.
एसएफ/एमजी (एएफपी, डीपीए)