चर्च चलाने का अवसर मांगती जर्मनी की कैथोलिक महिलाएं
४ मार्च २०२०जर्मनी में कैथोलिक बिशपों ने मिलकर अपना नया नेता चुना है. सुधारवादी छवि वाले लिम्बुर्ग के बिशप गेऑर्ग बेइट्सिंग को गोपनीय मतदान के जरिए चुना गया. कैथोलिक चर्च इस समय तमाम विवादों से जूझ रहा है जिनसे उबरने के लिए कई सुधार किए जाने की मांगें उठी हैं. इनमें महिलाओं को चर्च के नेतृत्व वाले पद सौंपने के अलावा चर्च तंत्र में यौन दुर्व्यवहार के पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग भी शामिल है.
मंगलवार को जर्मन शहर माइंत्स में हुई जर्मन बिशप्स कॉन्फ्रेंस में चुने गए 58-वर्षीय बेइट्सिंग के सामने अगले छह सालों में ऐसी कई समस्याओं को निबटाने की जिम्मेदारी है. जर्मन कैथोलिक चर्च फिलहाल दो खेमों में बंटा दिख रहा है, कन्जर्वेटिव और रिफॉर्मर. सवाल कई हैं जैसे कि क्या केवल कुंवारा रहने वालों को ही चर्च का प्रीस्ट बनाया जा सकता है और क्या चर्च में महिलाओं को बड़े पद नहीं मिलने चाहिए. ऐसे कई बड़े सवालों को लेकर चर्च के दोनों खेमों में भारी मतभेद हैं.
नए मुखिया बेइट्सिंग का कहना है, "मैं बाकी लोगों की राय का सम्मान करता हूं- चाहे वह बिशप की शक्तियों और प्रदर्शन से जुड़ी हो या फिर आम लोगों, महिलाओं और पुरुषों की सोच और उनकी प्रतिभागिता से जुड़ी." जर्मन गिरजे का प्रमुख देश के 27 कैथोलिक सूबों का प्रतिनिधित्व करता है. जर्मनी में अगर कोई सुधार किया जाता है तो उसे वैटिकन चर्च का भी समर्थन हासिल करना होगा.
विश्व में कैथोलिक गिरजे के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने हाल ही में अमेजन में शादीशुदा पुरुषों को प्रीस्ट चुने जाने की मांग को अस्वीकार कर दिया था. जर्मन गिरजे के जो विवादास्पद प्रमुख राइनहार्ड मार्क्स 66 की उम्र में पद से रिटायर हुए हैं, वह भी उदार सोच वाले माने जाते थे. 2006 में पद संभालने वाले मार्क्स से भी पहले जर्मन गिरजे के प्रमुख रहे बिशप को "ब्लिंग ब्लिंग बिशप" का उपनाम मिला हुआ था. तमाम सुख सुविधाओं वाली अपनी खर्चीली जीवनशैली और कुप्रबंधन के चलते उन्हें पद छोड़ना पड़ा था.
माइंत्स में नए चर्च प्रमुख के चुनाव से ठीक पहले चर्च के प्रबंधन और नेतृत्व में महिलाओं को महती भूमिका दिए जाने की मांग करते हुए जर्मनी की करीब 130,000 कैथोलिक महिलाओं की ओर से उनके हस्ताक्षर वाला मांगपत्र बिशप्स कॉन्फ्रेंस को सौंपा गया. महिलाओं की इन मांगों ने अब एक आंदोलन का रूप ले लिया है जिसे "मारिया 2.0" ("मैरी 2.0") कहा जा रहा है.
कैथोलिक वीमेन्स कम्युनिटी की संघीय अध्यक्ष मेश्टिल्ड हाइल का कहना है कि मार्क्स के बाद आने वाले नेता के लिए जरूरी होगा कि वह "ऐसी आधुनिक दुनिया की तरफ ले चले जहां वैसी ही बराबरी हो जैसी यूरोपीय समाज और विश्व के कई अन्य देशों में है." उन्होंने कहा कि अगर ऐसे सुधार नहीं होते हैं तो यह हमारे लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि प्रदर्शनकर्ता असल में "बंटवारा नहीं चाहते बल्कि असल में वे लोग ही हैं जो कैथोलिक गिरजे का मूल आधार हैं."
चर्चों में नेतृत्व वाले पद मिलने के प्रश्न पर जर्मनी के सबसे बड़े कैथोलिक महिला संगठन की नेता हाइल का उत्तर है कि "इस बारे में हमने जरा भी प्रगति नहीं की है." स्थानीय स्तर पर सभाएं आयोजित करती आईं तमाम महिलाओं को इससे आगे नहीं बढ़ाया जाता. अब तक परंपरागत रूप से कैथोलिक चर्च में प्रीस्ट या बिशप का पद केवल पुरुषों के लिए ही आरक्षित रखा गया है. बिशप बनने से पहले किसी व्यक्ति को किसी मिनिस्ट्री में पद दिया जाता है, जिसे ऑर्डेन्मेंट कहते हैं. महिलाओं को अब तक ऑर्डेन तक नहीं किया जाता है, प्रीस्ट या बिशप बनना तो और दूर की बात है.
आरपी/एनआर (एएफपी, डीपीए)
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