ग्लोबल वार्मिंग ना हो तो भी ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलेगी
३० अगस्त २०२२ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में पिघलती बर्फ की चादर आने वाले सालों में ना सिर्फ दुनिया का नक्शा बदल देगी बल्कि आखिर में उन इलाकों को डुबो देगी जहां आज करोड़ों लोगों का बसेरा है. अब सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि इंसान बढ़ती गर्मी को रोकने के लिये क्या कुछ कर पाता है.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पृथ्वी पर सागरों के उभार का सबसे प्रमुख कारक है. आर्कटिक क्षेत्र में गर्मी धरती के बाकी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रही है.
नेचर क्लाइमेट चेंज में छपी नई रिसर्च रिपोर्ट में ग्लेशियोलॉजिस्ट्स ने बताया है कि भविष्य में जीवाश्म ईंधन का प्रदूषण चाहे जितना रहे आज जितनी गर्मी धरती पर है वह ग्रीन लैंड के बर्फ की चादर के आयतन का 3.3 फीसदी पिघला देगी. इसके नतीजे में सागर का जल स्तर 27.4 सेंटीमीटर तक बढ़ जायेगा.
रिसर्चर इस घटना का सटीक टाइमफ्रेम तो नहीं बता सके हैं लेकिन उनका कहना है कि ज्यादातर हिस्सा इसी शताब्दी में पूरा हो जायेगा. इसका मतलब है कि फिलहाल सागर के जलस्तर बढ़ने का जो मॉडल है वह कहीं पीछे छूट जायेगा.
ये आंकड़े सबसे कम नुकसान के
हैरत में डालने वाले यह नतीजे भी सबसे कम नुकसान वाली स्थिति को बता रहे हैं क्योंकि इनमें भविष्य की गर्मी के असर का हिसाब नहीं जोड़ा गया है. नेशनल जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड के प्रमुख लेखक जेसॉन बॉक्स का कहना है, "ग्रीनलैंड के आसपास की जलवायु गर्म होना जारी ही रखेगा, यह तय है."
2012 में जिस स्तर का पिघलन हुआ था वह अब सालाना घटना बन जायेगी. रिसर्च रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि सागर के जलस्तर का बढ़ना 78 सेंटीमीटर तक जा सकता है. ऐसे में तटों के आसपास के निचले इलाकों का बड़ा हिस्सा डूब जायेगा, साथ ही बाढ़ और आंधियां बढ़ जायेंगी.
जलवायु विज्ञान के बारे में एक प्रमुख रिपोर्ट में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी ने कहा था कि ग्रीनलैंड के बर्फ की चादर के पिघलने से 2100 में सागर का जलस्तर 18 सेंटीमीटर तक बढ़ेगा. बॉक्स उस रिपोर्ट के भी लेखक थे. उनका कहना है कि उनकी टीम ने जो नई रिसर्च की है उससे पता चलता है कि पिछले आंकड़े "काफी कम" थे.
रिसर्च के लिये नये मॉडल
बॉक्स और उनके साथियों ने इस बार कंप्यूटर मॉडल की बजाये दो दशक में लिये गये मापों और निगरानी के आंकड़ों का इस्तेमाल कर यह पता लगाने की कोशिश की कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पहले जो गर्मी झेल चुकी है उसके आधार पर कितना बदलेगी.
बर्फ के चादर के ऊपरी हिस्से को हर साल बर्फबारी से भर जाना होता है. हालांकि 1980 के बाद से ही यह इलाका बर्फ में कमी देख रहा है. जितनी बर्फ हर साल गिरती है उससे कहीं ज्यादा हर साल पिघल जा रही है.
बॉक्स का कहना है कि रिसर्चरों ने जिस सिद्धांत का इस्तेमाल किया उसे आल्प्स के ग्लेशियरों में हुए बदलाव की व्याख्या करने के लिये तैयार किया गया था. यह बताता है कि अगर ग्लेशियर पर ज्यादा बर्फ जमा होगी तो निचले हिस्से का विस्तार होगा. ग्रीनलैंड के मामले में कम हुई बर्फ के कारण निचला हिस्सा सिकुड़ रहा है क्योंकि ग्लेशियर नई परिस्थितियों के हिसाब से खुद को संतुलित करते हैं.
क्या सबकुछ इसी शताब्दी में होगा
आईपीसीसी के एक और विशेषज्ञ गेरहार्ड क्रिनर का कहना है कि जो जानकारी मिली है वो समुद्री जलस्तर के बारे में ज्यादा जटिल मॉडलों से कुल मिलाकर मिली जानकारी से मेल खाती है. हालांकि वो इस पर सवाल जरूर उठाते हैं कि यह सब कुछ क्या इसी शताब्दी में हो जायेगा. क्रिनर का कहना है, "यह काम सचमुच हमें ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पर लंबे समय (कई सदियों में होने वाले असर का आकलन देता है, लेकिन इस शताब्दी में होने वाले कम से कम असर का नहीं."
दुनिया औद्योगिक काल के पहले की तुलना में औसत रूप से 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है. इसके नतीजे में लू और ज्यादा तेज आंधियों का सिलसिला बढ़ गया है. पेरिस जलवायु समझौते के तहत दुनिया के देश गर्मी को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमत हुए है. आइपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में बढ़ती गर्मी का जलवायु पर पड़ने वाले असर के बारे में कहा है कि अगर गर्मी में इजाफे को 2 डिग्री से 2.5 डिग्री तक पर भी सीमित कर लिया जाये तो इसी सदी में 25 मेगासिटीज के निचले इलाके इसकी चपेट में आयेंगे. इन जगहों पर 2010 तक 1.3 अरब लोग रहते थे.
एनआर/आरपी (एएफपी)