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गौरवशाली इतिहास और विवाद को समेटे एएमयू ने पूरे किए सौ साल

समीरात्मज मिश्र
२१ दिसम्बर २०२०

करीब साल भर पहले सीएए विरोधी प्रदर्शन और हंगामे को लेकर चर्चित रहा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मंगलवार को अपना शताब्दी समारोह मना रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस समारोह में मौजूदगी काफी चर्चा में है.

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Aligarh Muslim University in Aligarh, Indien
तस्वीर: imago/Indiapicture

करीब साल भर पहले सीएए विरोधी प्रदर्शन और हंगामे को लेकर चर्चित रहा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मंगलवार को अपना शताब्दी समारोह मना रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस समारोह में मौजूदगी काफी चर्चा में है. हालांकि कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की मौजूदगी ऑनलाइन रहेगी और वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए कार्यक्रम को संबोधित करेंगे.

22 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. पिछले पांच दशक के इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई प्रधानमंत्री एएमयू के किसी कार्यक्रम को संबोधित करेगा. इससे पहले साल 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एएमयू के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह को यादगार बनाने के लिए एक विशेष डाक टिकट भी जारी करेंगे. एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने बताया कि प्रधानमंत्री से शताब्दी समारोह में शामिल होने की स्वीकृति मिलने से यूनिवर्सिटी परिवार कृतज्ञ है. उन्होंने बताया, "इस कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी ऑनलाइन शिरकत करेंगे. प्रधानमंत्री की उपस्थिति से देश और दुनिया में फैले एएमयू समुदाय को एक महत्वपूर्ण संदेश मिलेगा.”

Aligarh Muslim University in Aligarh, Indien
तस्वीर: CC BY-NC-SA 2.0/FullyFunctnlPhil

यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह के लिए जोर-शोर से तैयारियां हो रही हैं. पूरी यूनिवर्सिटी को दुल्हन की तरह सजा दिया गया है. कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर के मुताबिक, इस ऐतिहासिक वर्ष के दौरान विश्वविद्यालय का और अधिक विकास होगा, जिससे छात्रों को निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में नियुक्ति में मदद मिलेगी.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 250 से ज्यादा पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं. सत्रहवीं शताब्दी के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खां ने आधुनिक शिक्षा की जरूरत को महसूस करते हुए साल 1875 में एक स्कूल शुरू किया जो बाद में मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बना.

एक दिसंबर 1920 को यही कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन गया. उसी साल 17 दिसंबर को एएमयू का औपचारिक रुप से एक यूनिवर्सिटी के रुप में उद्घाटन किया गया था. भारत में तमाम राज्यों के अलावा अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, सार्क और कई अन्य देशों के भी छात्र यहां पढ़ने आते हैं.

विश्वविद्यालय के छात्र रहे अहमद अजीम बताते हैं, "अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद यहां के विद्यार्थी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के साथ-साथ दूसरे देशों में भी प्रधानमंत्री की भूमिका तक पहुंचे हैं. देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है. एएमयू से पढ़े हामिद अली देश के उप राष्ट्रपति रहे तो पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1913 में एएमयू से उच्च शिक्षा ग्रहण की थी.”

एएमयू के गौरवशाली इतिहास से देश-दुनिया के तमाम लोगों का नाम जुड़ा है जो हर क्षेत्र से संबंध रखते हैं. पूर्व क्रिकेटर लाला अमरनाथ, कैफी आजमी, राही मासूम रजा, मशहूर गीतकार जावेद अख्तर के साथ ही फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने भी एएमयू से पढ़ाई की. इसके अलावा प्रोफेसर इरफान हबीब, उर्दू कवि असरारुल हक मजाज, शकील बदायूनी, प्रोफेसर शहरयार ने इस विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की है.

Indien Neu Delhi | Narendra Modi: Videokonferenz zu Asaadh Poornima und "Dharma Chakra Day"
प्रधानमंत्री यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में शामिल होंगे.तस्वीर: IANS

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाता उसके गौरवशाली इतिहास के साथ-साथ विवादों से भी रहा है. कभी विश्वविद्यालय का नाम बदलने की कोशिश तो कभी कथित तौर पर नागरिकता कानून के विरोध को लेकर यह विश्वविद्यालय हाल के दिनों में भी काफी चर्चा में रहा.

दो साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगे होने पर काफी विवाद छिड़ गया था. स्थिति यह हो गई कि वैचारिक विवाद हिंसक संघर्ष तक पहुंच गया और कई लोगों को चोटें तक आईं. बाद में किसी तरह से यह विवाद शांत हुआ.

पिछले साल दिसंबर महीने में ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कई दिनों तक अस्थिर रहा. कई दिनों तक विश्वविद्यालय के छात्र नागरिकता कानून और जामिया विश्वविद्यालय में छात्रों की कथित पिटाई के विरोध में आंदोलन करते रहे. इस दौरान कई छात्रों को हिरासत में भी लिया गया और प्रशासन को बल प्रयोग भी करना पड़ा. बाद में विश्वविद्यालय को इसी वजह से बंद भी कर दिया गया था.

एएमयू से जुड़े प्रोफेसर राहत अबरार कहते हैं कि 1920 से 1965 तक विश्वविद्यालय अच्छी तरह से चलता रहा लेकिन 1965 से 1972 के दौरान सरकारों ने कई तरह की पाबंदी लगा दीं. उनके मुताबिक, साल 1961 में अजीज पाशा नाम के एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान ना माना जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया और एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया लेकिन बाद में 1981 में केंद्र सरकार ने फिर से कानून में संशोधन किए और विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया.

दो साल पहले जब एएमयू में जिन्ना की तस्वीर का विवाद चल रहा था उसी समय विश्वविद्यालय के नाम को लेकर भी विवाद शुरू हुआ. छपरौली से बीजेपी विधायक सहेंद्र सिंह रमाला ने एएमयू के नाम पर सवाल खड़ा करते हुए नाम बदलने की मांग की. विधायक सहेंद्र सिंह रमाला ने एएमयू का नाम बदलकर महाराजा महेंद्र प्रताप यूनिवर्सिटी रखे जाने की बात कही थी. हालांकि बाद में राज्य सरकार ने राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर राज्य विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की. विधायक के मुताबिक, राज महेंद्र प्रताप ने अपने पूर्वजों की जमीन को विश्वविद्यालय के लिए दान में दिया था.

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