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समाज

जब ट्रेन ही रास्ता भूल जाए

२७ मई २०२०

विशेष ट्रेनों की व्यवस्था को लेकर काफी आलोचना सामने आ रही है. क्या वाकई ट्रेनें अपने रास्ते से भटक यात्रियों को ले कर कहीं और पहुंच रही हैं?

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Indien Patna Coronavirus Gastarbeiter
तस्वीर: DW/M. Kumar

पूरे देश में तालाबंदी के बीच भारतीय रेल द्वारा चलाई जा रही विशेष ट्रेनों की व्यवस्था को लेकर काफी आलोचना सामने आ रही है. पहले इस तरह की खबरें आ रही थीं कि ट्रेनें अपने गंतव्य स्टेशन पर निर्धारित समय से काफी देर से पहुंच रही हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि कुछ ट्रेनें शायद अपना रास्ता ही भूल गईं और किसी दूसरे राज्य में किसी और स्टेशन पर पहुंच गईं.

21 मई को मुंबई के वसई रोड स्टेशन से चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन को ही ले लीजिए. इस ट्रेन को 25 घंटों की यात्रा तय कर के उत्तर प्रदेश के गोरखपुर पहुंचना था, लेकिन इसे गोरखपुर पहुंचने में लगभग 60 घंटे लग गए. कारण.. ट्रेन ने सीधा रास्ता नहीं लिया और पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र से उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश तक पहुंचने के लिए वो पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और यहां तक कि झारखंड भी चली गई.

ट्रेन के यात्रियों ने मीडिया को बताया कि जब ट्रेन चालक से पूछा गया कि ट्रेन गोरखपुर की जगह 750 किलोमीटर दूर ओडिशा के राउरकेला कैसे पहुंच गई, तो उसने कहा कि वो बस सिग्नलों का पालन कर रहा था. बताया जा रहा है कि ऐसा सिर्फ इसी ट्रेन के साथ नहीं हुआ बल्कि कई और ट्रेनों के साथ हुआ. सोशल मीडिया पर भी रेलवे का खूब मजाक उड़ाया गया.

विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार की जमकर आलोचना की.

लेकिन आखिर ये हुआ कैसे? क्या वाकई ट्रेन चालक रास्ता भटक गया था या उसे गलत सिग्नल दिए गए थे? रेलवे ने अपनी सफाई में कहा है कि ट्रेनें रास्ता नहीं भटकी थीं, उन्हें डायवर्ट कर दिया गया था. 

नहीं दी यात्रियों को सूचना

रेलवे का कहना है कि चूंकि 80 प्रतिशत श्रमिक स्पेशल ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार जा रही हैं, उस मार्ग पर रेलवे ट्रैफिक बहुत ज्यादा हो गया है जिसकी वजह से ट्रेनों को धीरे-धीरे चलाना पड़ रहा था और वो अपने गंतव्य कई घंटे देर से पहुंच रही थीं. इस समस्या को देखते हुए "रूट रैशनलाइजेशन" की नीति के तहत कई ट्रेनों को दूसरे मार्ग पर मोड़ दिया गया. रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ऐसा करने से पहले यह हिसाब भी लगा लिया गया कि ट्रेन अगर लंबे रूट की तरफ भी मोड़ दी जाए तो भी उसे गंतव्य पहुंचने में उतना समय नहीं लगेगा जितना ट्रेन को ट्रैफिक में फंस कर लग जाएगा.

हालांकि 25 घंटों की तय यात्रा 60 घंटों में तय करने में किस तरह से समय की बचत हुई ये समझ पाना मुश्किल है. लेकिन इस से भी बड़ा सवाल यह है कि ट्रेन का मार्ग बदलने से पहले यात्रियों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई. रेलवे ने अभी तक इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया है.

इसके अलावा एक समस्या राजनीतिक द्वेष की भी है. ट्रेनों को लेकर इस समय रेल मंत्री पीयूष गोयल की कम से कम दो राज्य सरकारों से बयानबाजी चल रह रही है. महाराष्ट्र सरकार ने रेल मंत्रालय पर आरोप लगाया था कि राज्य ने श्रमिकों को उनके घर वापस भेजने के लिए 80 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें मांगी थीं लेकिन उसे मिलीं सिर्फ 40. जवाब में गोयल ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने जितनी ट्रेनें मांगीं उतनी उनके मंत्रालय ने उपलब्ध कराईं, लेकिन उन ट्रेनों को खाली लौटना पड़ा क्योंकि राज्य सरकार यात्री नहीं ला पाई.

इसके अलावा केरल सरकार ने आरोप लगाया है कि रेलवे बिना उन्हें इत्तला किए दूसरे राज्यों से उनके राज्य में ट्रेनें भेज रहा है.

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