क्या कोशिकाओं का विकास अंतरिक्ष में ज्यादा अच्छा होगा
१९ जुलाई २०२२लॉस एंजेलिस के चेदार्स सिनाई मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिक ऐसी मूल कोशिकाओं को बड़ी मात्रा में पैदा करने के नये तरीके ढूंढ रहे हैं जो शरीर में दूसरी तरह की कोशिकाओं को जन्म दे सकती हैं. इनका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में हो सकता है. ये कोशिकाएं इसी सप्ताहांत में एक सप्लाई शिप के जरिये अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर पहुंचीं.
ध्रुव सरीन का कहना है, "मुझे नहीं लगता कि निजी तौर पर अंतरिक्ष में जाने का जो भी खर्च है वो मैं उठा सकता हूं लेकिन कम से कम मेरा कुछ हिस्सा कोशिकाओं के रूप में अंतरिक्ष में जा सकती हैं." मूल कोशिकाओं को अंतरिक्ष भेजने की कड़ी में यह प्रयोग बिल्कुल नया है.
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इसकी तरह कुछ और प्रयोगों का उद्देश्य बड़ी मात्रा में कोशिकाओं को पैदा करने की राह में इलाकाई मुश्किलों को दूर करना है. कुछ प्रयोग यह जानने के लिए भी हो रहे हैं कि अंतरिक्ष यात्रा का शरीर की कोशिकाओं पर क्या असर होता है. जबकि कुछ प्रयोग कैंसर जैसी बीमारियों को समझने में हमारी मदद करेंगे.
पहले भी अंतरिक्ष में भेजी गईं कोशिकाएं
चेदार्स सिनाई रिजेनरेटिव मेडिसिन इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक क्लाइव स्वेंडसेन का कहना है, "इस तरह से सीमाओं के पार जा जाने से ज्ञान, विज्ञान और सीखने का अवसर मिलता है." इससे पहले अमेरिका, चीन और इटली के छह प्रयोगों में अलग अलग तरह की मूल कोशिकाएं भेजी जा चुकी हैं.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. जोसेफ वू के नेतृत्व में इंसान के हृदय के कोशिका स्तर के कामकाज पर माइक्रोग्रैविटी का असर जानने के लिए किया जा रहा प्रयोग भी शामिल है. वू ने पिछले साल अंतरिक्ष में मूल कोशिकाओं पर किये जा रहे रिसर्च के कई कार्यक्रमों में मदद की है. हालांकि जमीन पर इस रिसर्च का ज्यादातर हिस्सा अभी इस्तेमाल से दूर ही है.
फिलहाल तो मूल कोशिका आधारित जिन उत्पादों को भोजन और दवा विभाग ने मंजूरी दी है वह नाभिरज्जु के खून से रक्त बनाने वाली मूल कोशिकाएं हैं. इनका इस्तेमाल लिम्फोमा के कुछ मामलों में खून से जुड़ी बीमारियों के इलाज में होता है. फिलहाल ऐसी किसी थेरेपी को मंजूरी नहीं मिली जिसमें मूल कोशिकाओं को अंतरिक्ष में भेज कर या फिर वहां से धरती पर मंगा इलाज में इस्तेमाल किया जाता हो.
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हालांकि धब्बे मिटाने वाले, पारकिंसंस के रोग और दिल का दौरा पड़ने से हृदय को होने वाले नुकसान के इलाज में मूल कोशिकाओं के इस्तेमाल के कुछ उपचार का क्लिनिकल ट्रायल जरूर हो रहा है. इसके अलावा टाइप 1 डायबिटिज के इलाज में भी मूल कोशिका की मदद लेने के लिए रिसर्च चल रहा है. वैज्ञानिकों को मूल कोशिकाओं में अपार संभवनाएं दिख रह हैं.
गुरुत्वाकर्षण की दुविधा
मूल कोशिकाओं की मदद से इलाज के वादों में एक समस्या गुरुत्वाकर्षण की है. धरती का गुरुत्वाकर्षण बड़ी मात्रा में कोशिकाएं विकसित करने में बाधा है और इसके बिना भविष्य के इलाज मुमकिन नहीं हैं क्योंकि एक मरीज के इलाज में एक अरब से ज्यादा कोशिकाओं की जरूरत होती है. सेंट लुई के वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में बायो मेडिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ जेफरी मिलमैन कहते हैं, "मौजूदा तकनीकों के साथ अगर एफडीए इन सब थेरेपियों की मंजूरी तुरंत दे भी दे तो हमें जिस चीज की जरूरत होगी उसे बनाने की क्षमता नहीं है."
मिलमैन ने बताया कि बड़े बायोरिएक्टरों में कोशिकाओं को लगातार तेजी से हिलाना होता है नहीं तो वे टैंक की तली में बैठ जाएंगे या फिर आपस में चिपक कर झुंड बना लेंगे. इस तनाव की वजह से ज्यादातर कोशिकाएं मर जाती हैं. स्वेंडसेन का कहना है, "शून्य गुरुत्वाकर्षण में उन पर कोई बल नहीं लगता इसलिए वो अलग तरीके से विकसित हो सकती हैं."
चेदार्स सिनाई की टीम ने कुछ खास तरह की मूल कोशिकाएं भेजी हैं जिन्हें इंड्यूस्ड प्लूरीपोटेंट मूल कोशिका कहा जाता है. बहुत से वैज्ञानिक इन्हें हर तरह के निजी कोशिका आधारित इलाजों के लिए बेहतरीन शुरुआती मटीरियल मानते हैं. इन कोशिकाओं में मरीजों का डीएनए भी जा सकता है और चंचलता इन्हें भ्रूण कोशिकाओं जैसा बनाती है, सिर्फ इन्हें ही वयस्कों की त्वचा या फिर रक्त कोशिकाओं के लिए रिप्रोग्राम किया जा सकता है.
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नासा के फंड से चल रहे इस प्रयोग के लिए जूते के डिब्बे के आकार वाले कंटेनरों में कोशिकाओं से भरे बैग हैं. उनमें पंप और वह सॉल्यूशन भी मौजूद है जो उन्हें चार हफ्ते तक जिंदा रखेगा. वैज्ञानिकों ने अपने खुद के श्वेत रक्त कोशिकाओं से निकले मूल कोशिकाओं का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसके लिए उन्हें सहमति हासिल करने में दिक्कत नहीं हुई.
ये लोग पृथ्वी पर भी कोशिकाओं के एक बॉक्स के साथ प्रयोग करेंगे ताकि तुलना की जा सके. पांच हफ्तों बाद उन्हें अंतरिक्ष से वापस लौटी कोशिकाएं मिल जाएंगी. यह प्रयोग नासा के फंड से कुछ और रिसर्चों की राह बना सकता है. अगर ये लोग अंतरिक्ष में अरबों कोशिकाएं बनाने में सफल हो गए तो स्वेंडसेन का कहना है, "इसका बहुत बड़ा असर होगा."
एनआर/एए (एपी)