एक सेल्फी ने कैसे बदली जिंदगी
क्या आपको भी लग चुकी है सेल्फी की लत? या आप हंसते हैं उन युवाओं और किशोरों पर जो कैमरे में खुद ही अपनी तस्वीरें उतारते रहते हैं? देखिए कैसे अनास मोदामनी नाम के इस सीरियाई शख्स का पूरा जीवन ही एक सेल्फी ने बदल कर रख दिया.
मैर्केल से मुलाकात
बर्लिन श्पांडाऊ के रिफ्यूजी कैंप में रहते हुए अनास मोदामनी ने सुना कि जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल वहां एक दौरे पर आने वाली हैं और वे कुछ शरणार्थियों से बात भी करेंगी. सोशल मीडिया के शौकीन इस 19 साल के सीरियाई युवा ने इसी मौके पर चांसलर के साथ एक सेल्फी ले ली.
यूरोप तक का सफर
सीरियाई राजधानी दमिश्क में अपने घर के बमबारी में धवस्त हो जाने के कारण उसे अपने माता-पिता और भाई बहनों के साथ एक दूसरे शहर गारिया भागना पड़ा. वहीं से मोदामनी यूरोप के लिए निकला और सोचा कि बाद में अपने परिवार को भी यूरोप लाएगा. लेबनान के रास्ते तुर्की से होते हुए वह ग्रीस पहुंचा.
खतरनाक यात्रा
अपने इस लंबे सफर में कई बार अनास मरते मरते बचा. तुर्की से ग्रीस पहुंचने के लिए वह भी हजारों लोगों की तरह रबर की बनी छोटी नावों में सवार हुआ. नाव जरूरत से ज्यादा भरी हुई थी और रास्ते में ही डूब भी गई. वह किसी तरह जिंदा बचा.
पांच हफ्ते पैदल
ग्रीस से मेसेडोनिया तक का सफर अनास ने पैदल ही तय किया. वहां से होते हुए हंगरी और ऑस्ट्रिया तक पहुंचा. सितंबर 2015 में वह अपने सफर के अंतिम पड़ाव जर्मनी पहुंचने में सफल रहा. म्यूनिख छोड़कर वो बर्लिन गया और तबसे वहीं रह रहा है.
शरण मिलने का इंतजार
बर्लिन में अनास ने एक रिफ्यूजी सेंटर के बाहर कई दिन बिताए. अनास बताता है कि वह काफी मुश्किल वक्त था और ठंड भी खूब पड़ रही थी. आखिरकार उसे बर्लिन के श्पांडाउ में एक शरणार्थी गृह भेजा गया. वहां अपने सफर की दुश्वारियों को बयान करने के लिए चांसलर मैर्केल के साथ ली गई सेल्फी ने उसे बेहतरीन मौका दिया.
मिला दत्तक परिवार
अनास कहता है कि चांसलर मैर्केल के साथ ली सेल्फी ने उसकी जिंदगी बदल दी. मीडिया में उसके फोटो छपे तो वहीं से उस जर्मन परिवार को उसके बारे में पता लगा जिनके साथ वो पिछले कुछ महीने से रह रहा है. वे उसे अपने परिवार के एक सदस्य के रूप में रखते हैं.
घर की यादें
मीऊ परिवार के साथ रहने वाले अनास का जीवन पहले से काफी बेहतर है. वो जर्मन भाषा सीख रहा है और कई नए दोस्त बने हैं. सीरिया में हाई स्कूल तक पढ़ने के बाद अब वह आगे की पढ़ाई करना चाहता है. लेकिन उसे अभी सबसे ज्यादा आधिकारिक रूप से शरण मिलने का इंतजार है. तभी परिवार को भी जर्मनी लाना संभव हो सकेगा.
शरणार्थियों के बारे में गलत धारणा
अनास को उम्मीद है कि वह जर्मनी में एक अच्छा और सुरक्षित जीवन जी सकेगा. लेकिन शरणार्थियों के खिलाफ बढ़ती भावनाओं को लेकर काफी चिंतित भी है. उसे डर है कि कहीं इसी वजह से उसे शरण ही ना मिले और फिर अपने परिवार को जर्मनी बुलाने का सपना ही ना टूट जाए.