कैसे जिंदा हुई एक नदी
१९ फ़रवरी २०२१आप क्या देखना चाहेंगे? सीवेज, टूटेफूटे टीवी, मरे हुए कुत्तों और तमाम गंदगी से भरी हुई नदी या एक साफ निर्मल जलधारा के पास परिंदो को आकर्षित करती, पेड़पौधों से लकदक मनोरम हरियाली? जोहानेसबर्ग की जक्सकेई नदी ज्यादातर लोगों को प्रदूषित पानी की एक गाढ़ी लहराती लकीर जैसी ही दिखती रही है. लेकिन दो महिलाओं ने हौसला दिखाया और शहर की सबसे बड़ी नदियों में से एक जक्सकेई को जीवंत करने की मुहिम छेड़ दी.
पर्यावरण संरक्षण से जुडीं रोमी स्टैंडर और आर्टिस्ट हैनेली कोएत्जी को उम्मीद है कि जल प्रदूषण से निपटने के लिए शोध, हरित ढांचे और कला के मिलेजुले मॉडल को देश की अन्य नदियों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. स्थानीय समुदाय के साथ काम करते हुए दोनों महिलाओं ने नदी में पनप आई खरपतवार को हटाने की मुहिम दिसंबर 2020 में शुरू की थी. उनकी योजना है कि नदी की हिफाजत के लिए पानी के नीचे कुदरती फिल्टर बिछाए जाएं. कोएत्जी के साथ मिलकर वॉटर फॉर द फ्यूचर नाम की संस्था की स्थापना करने वाली स्टैंडर कहती हैं, "पानी समाज का प्रतिबिम्ब है और यहां यह जहरीला है.”
कला और विज्ञान का मिलाजुला पर्यावरण मॉडल
रैंड वॉटर नाम की संस्था के मुताबिक खनन, कृषि, शहरीकरण और प्रदूषण से दक्षिण अफ्रीका में साफ पानी के स्रोतों की गुणवत्ता तेजी से घट रही है. नजदीक में ही कॉफी की एक दुकान पर मुड़ेतुड़े नक्शों के गट्ठर और सिटी प्लानिंग के कागजों से घिरी बैठीं स्टैंडर कहती हैं, "लेकिन ये हालत सुधारी जा सकती है और प्रदूषण एक हद तक खत्म किया जा सकता है."
नॉर्वे के इंस्टीट्यूट फॉर नेचर से हासिल सैटेलाइट चित्र में दिखाया गया है कि दक्षिण अफ्रीका में संपन्न इलाके पब्लिक पार्कों से 700 मीटर की दूरी पर हैं और उनमें गरीब इलाकों की अपेक्षा नौ प्रतिशत ज्यादा वनस्पति उगी है और 12 प्रतिशत अधिक पेड़ लगे हैं. स्टैंडर का कहना है, "हम सुरक्षित पानी से भरा हुआ और लोगों से संवाद करने वाली इको-कला वाला एक हरित कॉरीडोर बनाना चाहते हैं." वो नदी को प्रदूषण-मुक्त करने के अभियान में कुछ आर्थिक मदद दे रही एक रेस्तरां चेन नैन्डो के साथ मिलकर कम्युनिटी प्रोजेक्टों पर भी काम कर रही हैं.
दोनों महिलाओं के प्रोजेक्ट की तुलना न्यूयार्क शहर के हाई लाइन पार्क से की जा रही है. वहां मैनहैटन के पश्चिमी छोर से गुजरने वाले एलीवेटड रेल मार्ग पर करीब ढाई किलोमीटर की हरित पट्टी बनाई गई है.
वॉटर फॉर द फ्यूचर जोहानेसबर्ग शहर के भीतरी हिस्से में विक्टोरिया यार्ड्स में स्थित है. जक्सकेई नदी के किनारे स्थित इस जगह पर पहले लॉन्ड्री की फैक्ट्री होती थी लेकिन अब आर्ट स्टूडियो है, सब्जी के सामुदायिक बाग हैं, एक क्लिनिक है, एक क्रेच और भी बहुत कुछ है. इंजीनियरों, रिसर्चरों, वास्तुकारों और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर स्टैंडर और कोएत्जी यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि नदी को आखिर कैसे स्थायी रूप से जीवंत बनाया जा सकता है.
नदी की जीवंतता को बचाने के लिए अनूठे प्रयोग
वैज्ञानिक उपकरण मुहैया कराने वाली कंपनी, कैम्पबैल साइंटिफिक और एसआरके माइनिंग कंसलटेंट्स की ओर से पिछले सितंबर में एक निगरानी स्टेशन और जल प्रवाह और उसकी गुणवत्ता जांचने वाली एक डिवाइस यहां लगाई गई थी. वॉटर फॉर द फ्यूचर संस्था को इनकी मदद से नदी पर दबाव डालने वाले गैरकानूनी सीवेज कनेक्शनों, खराब पड़ चुकी नालियों और तीव्र शहरीकरण के असर को समझने में मदद मिली है.
कोएत्जी कहती हैं, "हमने अभी तक यही देखा कि पानी जहरीले तत्वों से भरा है और यह डरावनी बात है.” उनके मुताबिक पानी की क्वॉलिटी के अगले नतीजे मार्च के आसपास आएंगें. नदी की मुसीबतें बढ़ाने वाली चीजें हैं वो खरपतवार जो उसके किनारों पर पनप उठती है और पानी के साथ बहने लगती है.
शहर प्रशासन से जुड़े अधिकारियों ने टिप्पणी नहीं की लेकिन देश के पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कैसे ये जंगली पौधे पानी के कुदरती प्रवाह को हर साल डेढ़ सौ से ढाई सौ करोड़ घन मीटर कम कर देते हैं. वॉटर फॉर द फ्यूचर संस्था विशेषज्ञों से सलाह ले रही है कि इन जंगली हमलावर पौधों का क्या इस्तेमाल हो सकता है.
विक्टोरिया यार्ड्स पर पत्थरों से बनी नहर के किनारे मजदूर धूप में पसीना बहाते हुए नदी को घेरती खरपतवार को उखाड़ने में व्यस्त हैं. 48 साल के मजदूर सिलवेस्टर कुमवेन्डा के मुताबिक, "मेरे लिए संसद की बहस से ज्यादा जरूरी यह काम है. अगर हम अपने पर्यावरण के घाव भर सकें तभी हमारी नई पीढ़ी जानेगी कि कुदरत कैसी दिखती है और यह कितनी बेशकीमती बात होगी.” कुमवेंडा इलाके के उन 30 निवासियों में से एक है जिन्हें इस पुनर्वास प्रोजेक्ट में काम मिला है.
वॉटर फॉर द फ्यूचर संस्था नदी किनारे लकड़ी का एक छोटा सा फेंस भी बनाना चाहती है, इसी तरह जंगली घास को बायोमास में तब्दील करने की योजना भी है - बिजली या ताप पैदा करने वाले ईंधन के कुदरती छर्रे.
पेड़ों को पानी और बैठने वालों को आराम यानी इको-ट्री-सीट
वॉटर फॉर द फ्यूचर ने शहर की सड़कों की देखरेख करने वाली कंपनी जोहानेसबर्ग रोड्स एजेंसी के साथ मिलकर एक इको-ट्री-सीट भी बनाई है. इसके तहत फुटपाथों में पेड़ों के इर्दगिर्द गोलाकार ढांचे बनाए गए हैं. उससे पेड़ की जड़ों पर बारिश का पानी जमा हो जाता है और उस पर लोग बैठ भी सकते हैं. कोएत्जी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "कुदरत का आनंद लेने के लिए लोगों को पहाड़ चढ़ने की जरूरत नहीं है.”
कोएत्जी और उनकी संस्था वॉटर फॉर द फ्यूचर, इको-ट्री-सीट जैसी बहुत सी नई नई चीजों के बारे में सोच रही है, जिनसे पानी का प्रवाह और निकासी सही बनी रहे. कोएत्जी ने वैली आफ्टर केयर सेंटर में विक्टोरिया यार्ड्स के बच्चों से पर्यावरण पर उनके अहसास जानने के लिए चित्र बनाने को भी कहा. एक चित्र में रोता हुआ बादल दिखाया गया था. ये चित्र पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए एक मोजेक छवि के रूप में अब पूरे इलाके में देखा जा सकता है. कोएत्जी बताती हैं, "इरादा यह था कि बच्चों को बताए बिना उन्हें कैसे पेड़ो को पानी देने के लिए कहें. और यह पेड़ इतने अच्छे ढंग से बढ़ रहा है कि बच्चे भी उत्साहित हैं और उसे लेकर अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं.”
स्थानीय भागीदारी पर जोर
स्टैंडर का ध्यान स्थानीय लोगों की भागीदारी बनाए रखने पर है. वे कहती हैं, "इलाके की सूरत बदलते हुए हमें बहुत सावधानी भी बरतनी होगी.” स्टैंडर उन भूस्वामियों से भी मिल रही हैं जिनकी संपत्तियां नदी किनारे हैं. इलाके के पुनरुद्धार के लिए उनकी पारंपरिक सोच को भी कुछ आलोचक नौसिखिया बताते हैं लेकिन कोएत्जी का कहना है कि अलग ढंग से सोचना महत्त्वपूर्ण है. वे कहती हैं, "यह सिर्फ हमारी बात नहीं है. अपनी सीन नदी पर रोक लगाने के एक सदी बाद अब फ्रांस के लोग उसमें नहाना चाहते हैं, कोपेनहागेन के जल-योद्धा एक नहर में कुदरती तालाब बनाना चाहते हैं. तो हमें लोगों को यकीन दिलाना पड़ेगा कि ऐसी अनोखी चीजों को अंजाम दे पाना संभव है.”
नदी के नजदीक ही रहने वाली स्टैंडर अपने पिकअप ट्रक में घूमनेफिरने का मजा लेती हैं, नदी किनारे रहने वाले लोगों के साथ गप लड़ाती हैं और गाहेबगाहे पनप उठने वाली खरपतवार का आकलन करती रहती हैं. वे कहती हैं, "नदियों को सीमेंट से पाट कर उन्हें दफ्न कर देने के बजाय हमें उन्हें फिर से जिंदा रहने देना होगा. जरा सोचिए, यह कितना सुंदर होगा”.
एसजे/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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