1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ईरान के चुनाव में लोग वोट देंगे या नहीं

२८ फ़रवरी २०२४

ईरान में 1 मार्च को संसदीय चुनाव हो रहे हैं. हालांकि इस बार चुनाव में कौन जीतेगा, इससे बड़ा सवाल यह है कि सचमुच कितने लोग वोट देने आएंगे.

https://p.dw.com/p/4cylG
Iran Tehran -  vor den Parlamentswahlen 2024
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY via REUTERS

अर्थव्यवस्था चलाने के तरीके, सालों से चले आ रहे प्रदर्शनों में उलझा देश, परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों से तनाव और यूक्रेन पर हमले में रूस को समर्थन की वजह से बहुत से लोगों का कहना है कि इस बार वो चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

अधिकारी, लोगों से वोट डालने के लिए अनुरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार के नियंत्रण वाले पोलिंग सेंटर आइसपीए की तरफ से इस बारे में कोई आंकड़ा जारी नहीं हुआ है कि कितने लोग वोट डालने आ सकते हैं. बीते कई दशकों में हुए चुनावों के दौरान यह आंकड़ा नियमित रूप से जारी होता रहा है.

क्या कहते हैं आम लोग?

हाल ही में समाचार एजेंसी एपी ने 21 लोगों का इंटरव्यू किया. इनमें सिर्फ पांच लोगों ने कहा कि वोट डालेंगे. 13 प्रतिभागियों ने कहा कि वोट नहीं डालेंगे और तीन ने कहा कि उन्होंने अभी तय नहीं किया है.

21 साल के छात्र अमीन ने कहा, "अगर मैं किसी कमी के बारे में विरोध करता हूं, तो कई पुलिस वाले और सुरक्षाबल मुझे रोकने की कोशिश करेंगे. लेकिन अगर मैं इस मुख्य सड़क के एक कोने में भूख से मर जाऊं, तो उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी." अमीन ने कार्रवाई के भय से अपना सिर्फ पहला नाम ही बताया.

तेहरान में दीवार पर बने चुनाव निशान के सामने से गुजरता एक शहरी
ईरान में शुक्रवार को चुनाव होना हैतस्वीर: Morteza Nikoubazl/NurPhoto/picture alliance

समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कुछ लोगों ने कहा कि ईरान की आर्थिक चिंताएं उन्हें चुनाव से दूर कर रही हैं. देश में महंगाई की दर 50 फीसदी है और युवा ईरानियों में बेरोजगारी की दर 20 फीसदी है. दक्षिणी तेहरान में 55 साल के फल व्यापारी हाशेम अमानी ने कहा, "मैं वोट नहीं दूंगा. 2021 में मैंने रईसी को वोट दिया था और वह राष्ट्रपति बने. मुझे उम्मीद थी कि एक तरह के लोग सरकार में साथ काम करेंगे और मेरी जिंदगी बेहतर होगी. बदले में मुझे मिली हर चीजों की तेजी से बढ़ती कीमतें."

इसी तरह 53 साल के टैक्सी ड्राइवर मोर्तेजा ने डर के मारे अपना सिर्फ पहला नाम ही बताया और कहा, "मैं वोट क्यों दूं? मैंने बीते सालों में कई बार वोट दिया है, लेकिन फिर भी मुझे अपनी तीन बेटियों के स्कूल की फीस देनी पड़ रही है, मैं अब भी किराये पर रहता हूं और लगातार पिछड़े और गरीब इलाकों में जाकर रहने के लिए मजबूर हूं."

औरतों को हिजाब पहनने को मजबूर करने के लिए क्या कर रहा ईरान

42 साल की मारजीये मोकादम ने जोर देकर कहा कि वोट देंगे. उन्होंने इसे धार्मिक कर्तव्य बताया और कहा कि देश के लिए "हिजाब जैसी इस्लामिक संस्कृति में सुधार करना" जरूरी है. हालांकि 32 साल के बैंक क्लर्क अब्बास काजमी ने वोट देने के लिए एक बिल्कुल अलग वजह बताई, "हमें चुनाव को बचाए रखना होगा, नहीं तो कट्टरपंथी इसे हमेशा के लिए बंद कर देंगे."

290 सीटों के लिए 15,000 उम्मीदवार

ईरान में संसद की 290 सीटों के लिए 15,000 से ज्यादा उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. पहले इसे इस्लामिक कंसल्टेटिव असेंबली कहा जाता था. यहां सदस्यों का कार्यकाल चार साल का है और संसद में पांच सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं.

कानून के मुताबिक संसद, कार्यपालिका पर नजर रखती है, समझौतों पर वोट देती है और कुछ दूसरे मामलों को संभालती है. वास्तविकता यह है कि ईरान में असल ताकत सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई के पास है.

ईरान की झंडों के बीच से गुजरती एक ईरानी महिला
ईरान में संसदीय चुनाव हो रहा है लेकिन वोटरों में कोई उत्साह नहीं हैतस्वीर: Morteza Nikoubazl/NurPhoto/picture alliance

संसदीय चुनाव से अलग ईरान के लोग 1 मार्च को ही 88 सीटों वाली असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स के लिए भी वोट डालेंगे. आठ साल के कार्यकाल वाला यह पैनल अगले सुप्रीम लीडर को नियुक्त करेगा जो खमेनेई के बाद इस पद को संभालेंगे.

जिन लोगों को चुनाव की दौड़ से बाहर रखा गया है, उनमें पूर्व राष्ट्रपति हसन रोहानी भी हैं, जिन्हें उदार माना जाता है. उनके कार्यकाल के दौरान ही 2015 में ईरान और दुनिया के ताकतवर देशों के बीच परमाणु करार हुआ था.

कट्टरपंथियों का शासन

कट्टरपंथियों ने बीते दो दशकों से संसद का नियंत्रण अपने हाथ में ले रखा है. संसद के भीतर आए दिन "अमेरिका मुर्दाबाद" के नारे सुनाई देते हैं. संसद के स्पीकर मोहम्मद बगेर कालिबाफ, रिवॉल्यूशनरी गार्ड के पूर्व जनरल हैं. उन्होंने ईरानी छात्रों पर 1999 में हुई हिंसक कार्रवाई का समर्थन किया था.

तेहरान में चुनाव प्रचार के लिए लगे पोस्टरों को देखता एक आदमी
ईरान के शासन में कट्टरपंथियों का बोलबाला हैतस्वीर: WANA NEWS AGENCY via REUTERS

2020 में विधानमंडल ने एक बिल पेश किया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था 'इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी' (आईएईए) के साथ ईरान के सहयोग में भारी कटौती की गई. 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ पश्चिमी देशों के परमाणु करार से अमेरिका के बाहर निकलने की इकतरफा घोषणा कर दी. इसके बाद ही ईरान की संसद में यह बिल आया.

ईरान बनाता जा रहा है नए परमाणु संयंत्र

इसके बाद मध्यपूर्व में तनाव बढ़ गया और ईरान ने यूरेनियम का संवर्धन करने के मामले में सारी सीमाएं तोड़ दीं. माना जा रहा है कि अब ईरान अगर परमाणु हथियार बनाना चाहे, तो उसके पास पर्याप्त ईंधन मौजूद है.

हिजाब का मुद्दा

बीते कुछ समय से ईरान की संसद ने अपना ध्यान हिजाब पर लगाया है, जो ईरान में महिलाओं के लिए सार्वजनिक रूप से पहनना जरूरी है. 2022 में 22 साल की ईरानी युवती महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई, जिसके बाद पूरे देश में प्रदर्शन शुरू हो गए.

ईरान में सिर ना ढंकने वाली अभिनेत्रियों के काम पर पाबंदी

इन प्रदर्शनों के साथ देश में मौलवियों का शासन उखाड़ने की मांग उठने लगी. इसके बाद सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 22,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया.

महसा अमीनी की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी, उन्हें हिजाब नहीं पहनने के लिए पकड़ा गया था
महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में हिजाब को लेकर जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हुएतस्वीर: DW

चुनाव का बहिष्कार करने की मांग बीते कुछ हफ्तों में तेजी से फैल रही है. यह मांग करने वालों में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नार्गेस मोहम्मदी भी हैं, जो फिलहाल ईरान की जेल में बंद हैं.

महिला अधिकार कार्यकर्ता मोहम्मदी ने इन चुनावों को "फरेब" कहा है. मोहम्मदी ने अपने एक बयान में कहा है, "इस्लामिक रिपब्लिक अपने निर्मम और क्रूर दमन में सड़कों पर युवाओं को मार रही है, उन्हें फांसी और जेल दी जा रही है, महिलाओं और पुरुषों को प्रताड़ित किया जा रहा है. इन पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाना और वैश्विक रूप से निंदा की जानी चाहिए."

चुनाव के बहिष्कार की मांग

चुनाव के बहिष्कार की मांगों ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है. 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही यहां की धार्मिक शासन व्यवस्था को चुनावों में लोगों की भागीदारी से वैधता दी जाती रही है. रेवॉल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख जनरल होसैन सलामी ने हाल ही में लोगों से अनुरोध किया, "जन्नत की खातिर, इस्लाम, होमलैंड और सुप्रीम लीडर में भरोसा करने वालों को चुनाव में शामिल होना चाहिए." सलामी ने जोर देकर कहा कि ईरान के लोग, "दुश्मनों की इच्छा से उबर जाएंगे" और वोटों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच कर "एक और शानदार राजनीतिक ग्रंथ लिखेगी."

तेहरान की सड़कों पर लगे चुनावी पोस्टर
ईरान में चुनाव हो रहे हैंतस्वीर: Yuji Yoshikata/AP/picture alliance

पोलिंग एजेंसी आईएसपीए ने इस साल अक्टूबर में चुनावी सर्वेक्षण किया था. हालांकि, इसके नतीजे सार्वजनिक नहीं किए गए. नेताओं और दूसरे मीडिया संगठनों से मिले आंकड़े में 30 फीसदी तक वोटिंग होने की बात कही जा रही है.

2021 के राष्ट्रपति चुनाव में 49 फीसदी लोगों ने वोट डाला था. इन चुनावों में कट्टरपंथी इब्राहिम रईसी की जीत हुई थी. यह राष्ट्रपति चुनाव में अब तक की सबसे कम वोटिंग थी. लाखों की संख्या में वोट बेकार हुए. माना जाता है कि यह बैलेट उन लोगों के थे, जो वोट देने तो आए लेकिन वोट देना नहीं चाहते थे. 2019 के संसदीय चुनाव में 42 फीसदी वोटिंग हुई थी. 

एनआर/एसएम (एपी, एएफपी)