इंडोनेशिया में कैसे बचाए गए रोहिंग्या शरणार्थी
करीब 100 रोहिंग्या शरणार्थियों का एक समूह चार महीनों की समुद्री यात्रा कर जब इंडोनेशिया पहुंचा, तो प्रशासन ने उन्हें उतारने से इंकार कर दिया. लेकिन स्थानीय लोगों ने सरकार से लड़ कर शरणार्थियों को बचाया और वहां शरण दी.
जोखिम भरी यात्रा
करीब 100 लोगों के इस समूह को इंडोनेशिया के मछुआरों ने 24 जून को देखा और अधिकारियों को सूचित किया. लेकिन प्रशासन ने कोविड-19 की चिंताओं को लेकर इन्हें उतारने की अनुमति नहीं दी.
सरकार से लड़ कर बचाया
इंडोनेशिया के आचेह प्रांत के लोगों ने प्रशासन के आदेश का विरोध किया और इसके खिलाफ जाकर रोहिंग्याओं को खुद नाव से उतरा.
चार महीनों बाद जमीन पर
शरणार्थियों का कहना है कि इस यात्रा के दौरान तस्करों ने उन्हें बहुत मारा. अपना मूत्र पी कर वे जीवित रहे. रास्ते में कुछ की मृत्यु भी हो गई और उनके शव को मजबूरी में नाव से समुद्र में फेंकना पड़ा.
बांग्लादेश में भी रह ना सके
ये सभी म्यांमार से अपनी जान बचा कर बांग्लादेश पहुंचे थे, लेकिन वहां के शरणार्थी शिविरों के अमानवीय हालात से भी भागने पर मजबूर हो गए.
तस्करों की दया पर
इन रोहिंग्याओं का कहना है कि नाव पर खाना खत्म हो जाने के बाद तस्करों ने इन्हें एक दूसरी नाव में बिठा दिया और समुद्र में बहने के लिए छोड़ दिया. आचेह में आप्रवासियों के एक केंद्र पर इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) की देख-रेख में पहचान पत्र के लिए इंडोनेशिया की पुलिस द्वारा तस्वीर खिंचवाता एक रोहिंग्या शरणार्थी.
महिलाएं और बच्चे भी
समूह में 48 महिलाएं और 35 बच्चे भी हैं. एक महिला की रास्ते में मृत्यु हो गई और उसके बच्चे अकेले रह गए. तीन और बच्चे नाव पर बिना माता-पिता के आए थे. समूह में एक गर्भवती महिला भी है. तस्वीर में रोहिंग्या महिलाएं आप्रवासियों के केंद्र के बाहर पुलिस की पहचान प्रक्रिया से गुजरती हुईं.
हर साल वही कहानी
आप्रवासियों के केंद्र के बाहर बैठा हुआ एक रोहिंग्या शरणार्थी. हर साल हजारों सताए हुए रोहिंग्या तस्करों को पैसे देकर पनाह की तलाश में समुद्र के जोखिम भरे सफर पर निकल पड़ते हैं. आईओएम के अनुसार इस साल अभी तक कम से कम 1400 रोहिंग्या समुद्र में फंसे मिले हैं.
चैन की नींद, फिलहाल
म्यांमार में अपने घरों से और बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों से हजारों मील दूर जान की बाजी लगा कर पहुंचे आचेह के आप्रवासी केंद्र में चैन की नींद लेते रोहिंग्या शरणार्थी. जाने इनके भविष्य में आगे क्या है.