इंटरनेट पर नफरत और गलत सूचना पर लगेगी रोक
६ जुलाई २०२०जर्मनी सहित कई देश पिछले सालों में गलत सूचना फैलाने और लोगों के बीच नफरत के बीज बोने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल होते देख रहे हैं. कोरोना महामारी के समय में फेकन्यूज लोकतंत्र के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. दुनिया के सारे देश लॉकडाउन में थे और यह समय कोरोना के बारे में गलत सूचनाओं, साजिश की थ्योरी और खबरों को तोड़ने मरोड़ने का था. ये सब एक महामारी के समय में जानलेवा साबित हो सकता है और लोकतांत्रिक बहस को तो नुकसान पहुंचाता ही है. यही वजह है कि जर्मनी ने यूरोपीय संघ की अध्यक्षता संभालने के बाद मंत्रिपरिषद की पहली बैठक इसी मुद्दे पर की.
कम से कम फेसबुक नफरत और गलत सूचनाओं वाले पोस्ट के प्रसार को रोकने की जरूरत समझ रहा है और स्थिति को सुधारने की कोशिश भी कर रहा है. कुछ दिनों पहले मार्क जकरबर्ग ने यूरोपीय उद्योग कमिसार थियेरी ब्रेटों से वीडियो बातचीत में कहा था कि इंटरनेट प्लेटफॉर्मों को खुद को रेगुलेट करने के लिए नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्हें लोकतांत्रिक संस्थानों की मदद से रेगुलेट करने की जरूरत है जो नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं.
फेसबुक का समर्थन
अब महत्वपूर्ण इंटरनेट कंपनी ने सरकार के जरिए नियमन का खुलकर पक्ष लिया है. मार्क जकरबर्ग का कहना है कि एक नई डिजीटल डील जरूरी है और यूरोपीय संघ इसी की पहल कर रहा है. यूरोपीय संघ की योजना डिजीटल सर्विसेज एक्ट बनाने की है और उसने सभी पक्षों से सहयोग की अपील की है. सदस्य देशों के नागरिक, उद्यम और इंटरनेट प्लेटफॉर्मों से सितंबर के शुरू तक सुझाव देने की अपील की गई है. वेरा योरोवा का कहना है कि हम अपने नागरिकों को ऑनलाइन पर सुरक्षा देने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के कानून मंत्रियों की बैठक में जर्मनी की कानून मंत्री क्रिस्टीने लाम्ब्रेष्ट ने इंटरनेट पर फैलाए जाने वाले झूठ के खतरों की चेतावनी दी. उन्होंने कहा, "ऐसे साजिश वाले सिद्धांत जानलेवा हो सकते हैं, खासकर तब जब महामारी होने पर सवाल उठाया जाए या बेतुके इलाज का प्रचार किया जाए."
कोरोना पर बेतुकी दलीलों की भरमार है. कुछ लोग बार बार आरोप लगाते हैं कि कोरोना वायरस के पीछे माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का हाथ है. तो कुछ लोग कोविड-19 के इलाज के लिए ब्लीचिंग पावडर के इस्तेमाल का सुझाव देते हैं. जर्मन कानून मंत्री ने ये भी कहा कि कोरोना महामारी का इस्तेमाल एशियाई लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए भी किया जा रहा है. इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. जर्मनी ने कुछ समय पहले इंटरनेट पर कानून को संशोधित कर और नफरत फैलाने और ट्रोलिंग के खिलाफ नया कानून पास कर यूरोप में पहल की है जबकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की सरकार को देश की संवैधानिक परिषद के सामने ऐसे ही कानून पास कराने में कामयाबी नहीं मिली. परिषद को सरकार के इस कदम में इंटरनेट सेंसरशिप का खतरा दिखा रहा था. खासकर तब जब इंटरनेट कंपनियों को समय और सजा के भारी दबाव में कंटेंट को अवैध बताने और उसे वापस लेने का फैसला करना पड़े.
यूरोपीय संघ की आस
जो सरकारें अपने यहां संसदों से फैसला कराने की हालत में नहीं हैं, वे यूरोप की ओर देख रही हैं ताकि जिम्मेदारी खुद लेने के बदले यूरोप पर थोपी जा सके. दूसरी ओर यूरोपीय संघ के अधिकारी इस बात से खुश नहीं कि जर्मनी ने यह फैसला अकेले ले लिया है और यूरोपीय स्तर पर फैसले का इंतजार नहीं किया. वे बार बार इसकी आलोचना करते रहे हैं. हालांकि वेरा योरोवा का यह भी कहना है कि जर्मनी के अनुभवों से सीखना जरूरी है. वेरा योरोवा ने चार साल पहले कानून कमिसार के तौर पर इंटरनेट प्लेटफॉर्मों के लिए एक कोड ऑफ कंडक्ट की पहल की थी, जिसके जरिए फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, यूट्यूब और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म इंटरनेट प्लेटफॉर्म ने नेट पर नफरत और गलत सूचना फैलाने की कोशिशों के खिलाफ खुद कार्रवाई करने का वचन दिया था. इस बीच इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक ने भी इसे स्वीकार कर लिया है.
वेरा योरोवा का कहना है कि तीन साल पहले के 28 प्रतिशत के मुकाबले अब 70 प्रतिशत से ज्यादा नफरत और फेकन्यूज वाला कंटेंट नेट से हटाया जा रहा है. फेसबुक तो इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन सेंसरशिप के विरोधियों का मानना है कि इंटरनेट प्लेटफॉर्म ऐसे कंटेंट को भी हटा रहे हैं जिन्हें नहीं हटाया जाना चाहिए. जुर्माने के डर क्या जरूरत से ज्यादा कंटेंट को हटाया जा रहा है, ये अभी तक साफ नहीं है. यूरोपीय संघ इन आरोपों के जवाब में बस इतना कहता है कि नेट प्लेटफॉर्मों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पालन करने का वचन दिया है. वेरा योरोवा का कहना है कि जरूरत पड़ने पर पोस्ट या कंटेंट को हटाने के बदले उसकी पृष्ठभूमि को स्पष्ट किया जा सकता है. जैसा कि पिछले दिनों ट्विटर ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के एक ट्वीट के साथ किया था.
अब वेरा योरोवा यूरोपीय स्तर पर नया कानून लाने के लिए तैयार हैं. वे कहती हैं, "हम प्लेटफॉर्मों की जिम्मेदारी और सिस्टम में घटनेवाली बातों की पारदर्शिता बढ़ाएंगे." कानूनी सुरक्षा और ऐसे नियमों की जरूरत है जो सब पर लागू हों. यूरोपीय आयोग दिसंबर के अंत तक नए कानून डिजीटल सर्विसेस एक्ट का मसौदा पेश करेगा. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उसका महत्वपूर्ण हिस्सा होगा.
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