आर्थिक मंदी में चॉकलेट का खेल
१७ मार्च २०१०यूरोप में ईस्टर से पहले चॉकलेट की मांग अक़्सर बहुत ज़्यादा होती है. लेकिन आर्थिक मंदी और बढ़ते दामों की वजह से चॉकलेट की बिक्री में गिरावट आई है. यूरोप की मशहूर चॉकलेट कंपनी लिंड्ट एंड श्प्रुएंग्ली ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले दस सालों में पहली बार चॉकलेट की मांग में गिरावट आई है. इसका कारण है मुद्रा में उतार चढ़ाव. कोको की फलियां भी महंगी हो गई हैं.
ख़ास बात तो यह है कि हवाई यात्रा को भी महंगाई का असर झेलना पड़ा है. जिसका मतलब है कि हवाई अड्डों की ड्यूटी फ़्री दुकानों में जो चॉकलेट बिकती थी अब उसे ख़रीदने वाले लोग भी कम हो गए हैं. बेल्जियम के प्रीमियम चॉकलेट निर्माता गोदीवा ने इस महीने 25 प्रतिशत कर्मचारियों को कंपनी से निकालने का फ़ैसला किया है.
चॉकलेट के चाहने वालों के लिए अच्छी ख़बर यह है कि अटकलबाज़ कोको के बाज़ार से पीछे हट रहे हैं. इससे कोको के दामों में कमी आ सकती है. लेकिन कुछ विश्लेषक मानते हैं कि आर्थिक सुधार के बाद कोको की फलियों के दाम फिर बढ़ सकते हैं.
इसके अलावा चीन और भारत में चॉकलेट की मांग बढ़ी है. पिछले तीन वर्षों में कोको का दाम 150 प्रतिशत बढ़ा है और चीनी के दाम 120 प्रतिशत बढ़े हैं. कई देशों में इस साल ईस्टर के लिए ख़ास चॉकलेट अंडों और चॉकलेट के खरगोशों के दाम 20 प्रतिशत ज़्यादा हो गए हैं.
लेकिन मामला बस बाज़ार में मांग और आपूर्ति तक सीमित नहीं है. एक तरफ चॉकलेट की बढ़ती मांग की वजह से कई देशों में चॉकलेटों में कोको की मात्रा कम की गई है ताकि दामों पर असर न पड़े. वहीं बाज़ार को करीब से देख रहे लोगों का कहना है कि आने वाले विश्व कप फुटबॉल में चॉकलेट की मांग फिर बढ़ेगी जैसा कि आम तौर पर क्रिसमस और वैलेंटाइंस डे पर होता है.
कोको की फलियों पर अटकल लगाने वालों और बाज़ार में अस्थिरता से बचने के लिए चॉकलेट उत्पादक अब सीधे कोको पैदा करने वाले देश, जैसे आइवरी कोस्ट, घाना, इंडोनेशिया, कंबोडिया और ब्राज़ील का रुख कर रहे हैं. और इन देशों की सरकारों से भी खास तौर पर कह दिया गया है कि वे कोको पर अटकलों लगाने वाले लोगों पर निगरानी रखें.
चॉकलेट बेचने वाली कंपनियां बहुत हैं. अगर एक कंपनी अपनी चॉकलेट बेचना चाहती है तो उसे दूसरी कंपनी के चॉकलेट से दाम कम रखने होंगे. और चॉकलेट बेच रही कंपनियों में कमी नहीं है..मतलब चॉकलेट प्रेमी फिलहाल खुश रह सकते हैं.
रिपोर्टः डीपीए/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः एस गौड़