असम में मुस्लिम म्युजियम पर राजनीतिक घमासान
३० अक्टूबर २०२०कांग्रेस के एक विधायक शरमन अली अहमद ने हाल में असम सरकार को राज्य के चर-चापोरी यानी नदी के द्वीपों और तटवर्ती इलाकों में रहने वाले बंगाली मुसलमानों के लिए गुवाहाटी में प्रसिद्ध श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में म्यूजियम स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन सरकार ने विधायक की मांग को खारिज कर दिया है. उसके बाद इस मुद्दे पर बहस तेज हो रही है. दरअसल यह विवाद राज्य के ताकतवर मंत्री और बीजेपी के शीर्ष नेता हिमंत बिस्वा सरमा के उस ट्वीट के बाद तेज हुआ जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य के चर यानी तटवर्ती इलाके में रहने वालों की कोई अलग पहचान और संस्कृति नहीं है.
राज्य में तटवर्ती इलाके में रहने वाले मुस्लिमों को मियां कहा जाता है. दिलचस्प बात यह है कि इस म्यूजियम की स्थापना का प्रस्ताव सबसे पहले बीजेपी सदस्यों वाली एक समिति ने ही दिया था. इससे पहले बीते साल भी बांग्ला मूल के कवियों की लिखी कविताओं को मियां कविता कहने पर विवाद हुआ था. असम में लगभग एक करोड़ की मुस्लिम आबादी में बंगाली मुस्लिमों की तादाद करीब 64 लाख है.
विवाद की शुरुआत
दरअसल, यह पूरा विवाद कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद के उस पत्र से शुरू हुआ जो उन्होंने म्यूजियम निदेशक को लिखा था. इसमें कहा गया था कि तटवर्ती इलाकों की विरासत व संस्कृति को दर्शाने वाले प्रस्तावित म्यूजियम की स्थापना शीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में की जानी चाहिए. लेकिन इसके जवाब में मंत्री हिमंत ने अपने ट्वीट में कहा, "हमारी सरकार राज्य में मुस्लिमों की विरासत पेश करने वाले मियां म्यूजियम बनाने की अनुमति नहीं देगी. मेरी समझ में असम के चार अंचल में कोई अलग पहचान और संस्कृति नहीं है, क्योंकि वहां के ज्यादातर लोग बांग्लादेश के प्रवासी हैं. श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र असमिया संस्कृति का प्रतीक है और हम इसमें कोई विकृति नहीं आने देंगे. माफ कीजिएगा विधायक साहब.”
सरमा के इस बयान के बाद विवाद बढ़ गया. इसका जवाब देते हुए असम से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक ने ट्वीट किया, "माफ कीजिएगा हेमंत जी, इन लोगों के पूर्वज तत्कालीन बंगाल से आए थे, जो कि अखंड भारत का अहम हिस्सा था. कृपया सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ मत कीजिए.” विवाद बढ़ने के बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पत्रकारों से कहा, "श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र की स्थापना संत विद्वान श्रीमंत शंकरदेव के आदर्शों के अनुरूप की गई है और राज्य सरकार उसे बरकरार रखने के लिए कृतसंकल्प है.”
दूसरी ओर, हेमंत बिस्वा सरमा ने अपने रुख में कोई भी नरमी नहीं दिखाई है. विधायी समिति की म्यूजियम बनाने की सिफारिशों के बारे में एक सवाल पर उनका कहना था, "जिस भी समिति ने जो भी रिपोर्ट दी है, वह सिर्फ फाइलों में ही रहेगी. असम सरकार का रुख साफ है, कलाक्षेत्र में कोई भी मियां म्यूजियम नहीं बनेगा.”
विधायी समिति की सिफारिश
दरअसल, मियां म्यूजियम बनाने का प्रस्ताव सबसे पहले इसी साल मार्च में एक विधायी समिति ने सरकार को दिया था. लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से तब वह मुद्दा दब गया था. अब कांग्रेस विधायक ने अपने पत्र में उस समिति की सिफारिशों का हवाला दिया है. असम गण परिषद के एक विधायक की अध्यक्षता वाली उक्त समिति में बीजेपी के भी छह विधायक शामिल थे. असम गण परिषद राज्य की साझा सरकार में बीजेपी की सहयोगी है.
उसके बाद कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के समर्थन से राज्यसभा में पहुंचे पत्रकार अजीत कुमार भुइयां ने भी अपने एक ट्वीट में कहा है, "शिक्षा मंत्रालय से संबद्ध स्थायी समिति ने ही चर-चापोरी म्यूजियम की सिफारिश की थी. समिति के अधिकांश सदस्य बीजेपी और उसके सत्तारूढ़ गठबंधन से हैं. बहुमत से एक सिफारिश पारित करने के बाद बीजेपी पूरे मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए राजनीतिकरण कर रही है. यह बेहद शर्मनाक है.”
हालांकि अहमद के पत्र में भी उक्त समिति की सिफारिशों का जिक्र है. लेकिन भुइयां ने अपने ट्वीट में साफ किया कि जिस 15 सदस्यीय समिति ने उक्त सिफारिश की थी उसमें बीजेपी के छह सदस्यों के अलावा असम गण परिषद और बोडोलैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट के दो-दो विधायक भी शामिल थे. कांग्रेस के जिस शर्मन अली ने म्यूजियम के बारे में पत्र लिखा है वह भी उसी समिति के सदस्य हैं.
क्या है चर इलाका
राज्य में पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे मुस्लिम बहुल इलाकों को चर यानी तटवर्ती इलाका कहा जाता है. यह इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में रहता है. पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से लगी सीमाओं की वजह से यहां की संस्कृति और भाषा पर भी उसका असर नजर आता है. करीब 3.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले इस इलाके की आबादी 25 लाख है. यहां रहने वाले मुस्लिम तबके के लोगों को हेय निगाहों से देखा जाता है और उनके लिए मियां संबोधन का इस्तेमाल किया जाता है.
इस इलाके में असमिया से ज्यादा बांग्ला संस्कृति का असर है. इस इलाके में बांग्लादेश से घुसपैठ के आरोप लगते रहे हैं और यह मुद्दा असम की राजनीति में सबसे विवादास्पद रहा है. घुसपैठ के मुद्दे पर अस्सी के दशक की शुरुआत में छह साल लंबा असम आंदोलन भी हो चुका है. उसके बाद भी एनआरसी और नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे मुद्दे इसी विवाद पर केंद्रित रहे हैं. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रंजीत दास कहते हैं, "विधायी समिति की ओर से ऐसी सिफारिश के बावजूद सरकार उसे स्वीकार नहीं कर सकती. उक्त 15-सदस्यीय समिति में बीजेपी के दस सदस्य जरूर हैं. लेकिन जिस बैठक में उक्त प्रस्ताव पारित हुआ था उसमें कुल पांच सदस्य ही मौजूद थे. उनमें से तीन बीजेपी के थे.”
इतिहासकार अंकुर तामुलू फूकन कहते हैं, "इस समुदाय ने म्यूजियम के जरिए अपनी पहचान और विरासत को दर्शाने की मांग उठाई है. लेकिन असमिया मूल के लोग चाहते हैं कि ब्रह्मपुत्र घाटी में रहने वाले बंगाली मुस्लिम भी असमिया के तौर पर पहचाने जाएं और उनका कोई अलग सांस्कृतिक एजेंडा नहीं हो.” वह कहते हैं कि म्यूजियम की मांग में कोई बुराई नहीं है. लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं होगा. इससे विभिन्न तबकों के बीच दूरियां बढ़ने का अंदेशा है. इस समुदाय के सबसे बड़ी साहित्यिक संस्थान चर चापोरी साहित्य परिषद के अध्यक्ष हफीज अहमद कहते हैं, "अगर हमने भी असमिया संस्कृति अपना ली तो हमारी सांस्कृतिक विरासत का क्या होगा? हमारी भी संस्कृति व परंपराएं काफी समृद्ध हैं. ऐसे में म्यूजियम की स्थापना की मांग जायज है.”
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