अयोध्या विवाद पर फैसला: मंदिर भी बनेगा, मस्जिद भी बनेगी
९ नवम्बर २०१९सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ की पूरी जमीन राम लला को सौंप दी और उसके बदले में मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन देने के सरकार को निर्देश दिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या पर तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए जो मंदिर बनाने संबंधी कार्य योजना को तैयार करेगा.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सरकार से एक ट्रस्ट बनाने को कहा जिसकी देखरेख में मंदिर का निर्माण किया जाए.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सरकार चाहे तो इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी किसी तरह का प्रतिनिधित्व दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन का कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास बना रहेगा और मुसलमानों को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन मुहैया करानी होगी.
फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि "अयोध्या पर आए फैसले को पूरे देश ने मन से स्वीकार किया, विविधता में एकता की भावना दिखी."
दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस मौके पर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.
फैसले का आमतौर पर लोगों ने स्वागत किया है लेकिन इस विवाद में एक पक्ष रहे सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस पर निराशा जताई है. बोर्ड की ओर से वकील जफरयाब जिलानी ने कोर्ट के बाहर मीडिया से बातचीत में कहा कि वो फैसला पढ़ने के बाद आगे की रणनीति तय करेंगे.
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फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस बात को स्थापित किया है कि गिराए गए ढांचे के नीचे मंदिर था और एएसआई की स्थापना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि विवादित ढांचे के भीतर हिन्दू समुदाय पूजा-पाठ इसलिए नहीं करता था क्योंकि उसे वहां ऐसा करने नहीं दिया गया. इसी वजह से ढांचे के बाहर चबूतरा बनाकर उसे पूजा स्थल में तब्दील किया गया.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का कहना था, "राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं. विवादित ढांचा इस्लामिक मूल का ढांचा नहीं था. बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी. मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था. ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि एएसआई कर चुका है. पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार देना एएसआई का अपमान होगा. हालांकि, एएसआई ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई."
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साल 1949 में विवादित ढांचे के भीतर मूर्तियां रखने को गलत ढहराते हुए छह दिसंबर 1992 को ढांचा ढहाए जाने की भी आलोचना की.
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जमीन के मालिकाना हक को आस्था के आधार पर तय नहीं किया जा सकता लेकिन तमाम यात्रियों के विवरण बताते हैं कि विवादित जगह भगवान राम की जन्मस्थली रही है और ये हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा स्थान है. अदालत के ये भी कहना था कि विवादित ढांचे का भीतरी हिस्सा यानी गर्भ गृह इस्लामिक वास्तुशिल्प से मेल नहीं खाता है इसलिए ये कहना ठीक नहीं है कि मस्जिद का निर्माण किसी खाली जमीन पर किया गया है.
फैसला सुनाने वाली इस पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे. पिछले अगस्त महीने से लेकर 16 अक्टूबर तक चालीस दिनों तक इस मामले की इस पीठ ने लगातार सुनवाई की और फिर नवंबर की किसी तारीख को फैसला सुनाने की बात कही थी.
एक दिन पहले अचानक ये सूचना दी गई कि शनिवार को संवैधानिक पीठ इस मामले में फैसला सुनाने जा रही है. इससे पहले शुक्रवार सुबह मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को बुलाकर सुरक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी ली थी.
साल 2010 में इसी विवाद की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान रूप से बांट दिया जाए. कोर्ट ने इस विवादित जमीन का एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड को किसी वैकल्पिक जगह पांच एकड़ जमीन देने को कहा. यानी अब यह पूरी जमीन रामलला विराजमान को दी जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट के इस बहुप्रतीक्षित फैसले के बाद आमतौर पर लोगों ने संतोष जताया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर कई मुस्लिम धर्म गुरुओं और संगठनों ने भी इस विवाद के पटाक्षेप को संतोषजनक ठहराते हुए सभी लोगों से विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे मुद्दों पर बात करने की अपील की है.
फैसले की संभावना के चलते उत्तर प्रदेश में अयोध्या समेत सभी जगहों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. अयोध्या में कल से ही बाहरी वाहनों और बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था. जगह-जगह पुलिस बल तैनात कर दिए गए और धारा 144 को दिसंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया. कई अन्य शहरों में भी धारा 144 लगाई गई है और अलीगढ़ में शुक्रवार रात से ही इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं. राज्य के सभी स्कूल कॉलेज 11 दिसंबर तक के लिए बंद कर दिए गए हैं.
सुरक्षा व्यवस्था उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी कड़ी कर दी गई और संवेदनशील स्थानों पर खासतौर पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान तैनात किए गए हैं.
अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मौजूदा विवाद साल 1949 से चल रहा है जब विवादित परिसर में अचानक किसी ने रामलला की मूर्ति रख दी. दावा किया गया कि यह एक संत के सपने में भगवान राम आए और उन्होंने उसे ऐसा करने के लिए कहा. साल 1950 में हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की.
बाद में निर्मोही अखाड़ा ने इस जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया जिसका कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विरोध किया और देखते ही देखते यह एक बड़ा धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा बन गया.
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