अयोध्या को ये बातें भी बनाती हैं खास
७ दिसम्बर २०१८अयोध्या में 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हिंदू-मुस्लिम विवाद बड़ा मुद्दा बन गया. कुछ हिंदू संगठन अयोध्या में राम मंदिर बनाने की पैरवी करते हैं. उनकी दलील है कि अयोध्या में हिंदुओं के भगवान राम का शासन था. रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है. इन सारी बातों के बावजूद ऐसा नहीं है कि इस शहर की महत्ता सिर्फ हिंदुओं और मुस्लिमों तक ही सीमित है. अन्य धर्मों का भी शहर से अपना जुड़ाव है. वहीं कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी अयोध्या की मजबूत विरासत रही है.
अन्य धर्मों के लिए क्या
जानकार कहते हैं कि बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के लिए अयोध्या की अपनी उपयोगिता है. जैन संप्रदाय मानता है कि जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के तहत आने वाले भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के मेंबर सेक्रेटरी प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला के मुताबिक "जैन समुदाय मानता है कि दुनिया के लिए आचरण और व्यवहार के नियम बनाने वाले ऋषभदेव अयोध्या के राजा थे." जैन संप्रदाय के कई धार्मिक स्थल आज भी अयोध्या में नजर आते हैं.
जैन धर्म के अलावा बौद्ध धर्म भी इसे अपने लिए काफी अहम मानता है. मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि जिस स्थल पर बाबरी मस्जिद थी वहां कभी बौद्ध धर्म से संबंधित एक ढांचा था. याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर की तरह बौद्ध विहार घोषित किया जाना चाहिए जिसे बाद में कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
शुक्ला कहते हैं, "बौद्ध समुदाय मानता है कि बुद्ध की 50 वर्षों की परिव्राजक के रूप में जो यात्रा थी उसका यह अहम प्रमाण है." परिव्राजक का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जो धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करने के लिए जीवन की सभी सुविधाओं को त्याग देता है. माना तो यह भी जाता है कि कोसल के राजा प्रसेनजित उन चंद राजाओं में से हैं जिन्होंने बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक शासन करना सीखा. शुक्ला बताते हैं कि राजा प्रसेनजित ने कृषि और व्यापार की नीतियों को बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप स्थापित किया. उन्होंने कहा कि सिखों के लिए यह जगह इसलिए महत्व रखती है क्योंकि गुरु नानक ने अयोध्या की यात्रा की थी.
कैसी है सांस्कृतिक विरासत
उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट के अनुसार अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत अतीत में सूर्यवंशी राजाओं से प्रारंभ होती है. अब तक अयोध्या, फैजाबाद जिले के तहत आता था. लेकिन 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या करने का फैसला किया. इतिहास कहता है कि फैजाबाद अवध की पहली ऐसी राजधानी था जिसकी नींव नवाबों ने रखी थी. नवाब सआदत खान बुरहान उल मुल्क ने 1722 में यहां नगर बसाया. सआदत खान के उत्तराधिकारियों ने फैजाबाद को इसका पूरा स्वरूप दिया. इसके चलते फैजाबाद को नवाबों का शहर कहा गया जबकि अयोध्या धार्मिक नगर के रूप में विकसित हुआ.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके अयोध्या राजपरिवार के सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र अयोध्या को गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण कहते हैं. मिश्र बताते हैं कि अयोध्या को बागों का शहर कहा गया और यहां स्थित गुलाबबाड़ी, मोतीबाड़ी, महलबाग नवाबों की संस्कृति को दिखाते थे. उन्होंने बताया, "यहां हस्तलेखन कला, जरदोजी, दस्तकारी, संगीत और कविता पाठ की संस्कृति शुरू हुई लेकिन जब नवाब फैजाबाद से अपनी राजधानी लखनऊ ले गए तो सब वहां चला गया." लखनऊ जाने के बाद 200-250 साल तक इसका प्रभाव फैजाबाद में बना रहा. इन सब के बीच अयोध्या धार्मिक बना रहा जिसका वैष्णव भक्ति शाखा की ओर झुकाव नजर आता है.
कुछ बड़े कलाकार
मिश्र डॉयचे वेले को फैजाबाद की जमीन से निकले शेख निसार के बारे में भी बताते हैं. उन्होंने बताया, "युसुफ-जुलेखा कृति की रचना करने शेख निसार भी फैजाबाद की भूमि से निकले. सूफी परंपरा में शेख निसार को काफी अहम माना जाता है. फैजाबाद फिल्म स्टार नाम से मशहूर बेगम अख्तर का जन्म 1914 में फैजाबाद में ही हुआ था. उन्होंने युवावस्था में कई फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा उन्होंने दादरा-ठुमरी, कजरियां और गजल गायन के क्षेत्र में भी सफलता की मिसाल कायम की. मिश्र बताते हैं, "जब मेगाफोन कंपनी उनके रिकॉर्ड बजाती थी तो उसे कंपनी फैजाबाद फिल्म स्टार के नाम से जारी करती थी."
माना जाता है कि मिर्जा हादी रुसवा ने अपने उपन्यास में जिस उमराव जान का जिक्र किया है उसका अंदाज बेगम अख्तरी बाई से प्रेरित रहा. इसके अलावा मशहूर उर्दू कवि मीर बाबर अली अनीस का जन्म भी फैजाबाद में हुआ था. पंडित ब्रजनारायण चकबस्त भी अयोध्या में पैदा हुए थे जिन्होंने रामायण का उर्दू में तर्जुमा किया.
कोरिया से संबंध
कोरिया और अयोध्या के रिश्तों के बारे में मिश्र कहते हैं, "एक पौराणिक कथा है कि अयोध्या से दो हजार साल पहले एक राजकुमारी कोरिया गई और वहां के एक राजकुमार से उसने शादी रचाई, जिसके बाद वहां किम राजवंश चला." यह संबंध आज के दक्षिण कोरिया से निकाला जाता है. आज भी दक्षिण कोरिया के लोग अपने ननिहाल वालों से मिलने आते हैं और अयोध्या में कार्यक्रम करते हैं. हालांकि इसका कोई लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है.
इस पर रजनीश शुक्ला कहते हैं कि भारत की परंपरा वाचन की रही है जिसके चलते कोई लिखित दस्तावेज नहीं मिलते. शुक्ला के मुताबिक, "दक्षिण कोरिया के राजवंश से जुड़े लोगों ने भी स्वयं को उसी राजवंश से जुड़ा माना है जिसका अयोध्या के साथ संबंध है. इसका असर दोनों देशों के बीच संबंधों पर भी पड़ा है."