सीरिया के कुर्दों की जंग अब भी है जारी
९ मार्च २०२१सीरिया में एक दशक से चली आ रही जंग में अल्पसंख्यक कुर्दों ने जिहादियों के खिलाफ युद्ध में पश्चिमी ताकतों का भरपूर साथ दिया. उन्हें उम्मीद थी कि इसके बदले स्वायत्तता की उनकी मांग का रास्ता बनेगा. अब जब कि इस्लामिक स्टेट को सीरिया की जमीन से खदेड़ने के दो साल बीत चुके हैं, कुर्द किस हाल में हैं? सीरिया के कुर्द जंग शुरू होने के कई दशक पहले से ही हाशिए पर हैं. कुर्दों की अर्धस्वायत्तता के प्रमुख रणनीतिकारों में एक अलदाल जलील कहते हैं, "2011 से पहले हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं था जो उम्मीद जगाए. कुर्दों का पूरी तरह से दमन हो रहा था. उनसे उनकी भाषा और संस्कृति भी छीन ली गई. हमारे पास तो हमारी पहचान तक नहीं थी."
2012 में जब सीरिया की सरकार ने कुर्दों वाले उत्तरपूर्वी इलाके से सेना हटा कर जंग वाले इलाके में तैनात कर दिया तो तुर्की की सीमा से लगने वाले इलाके में कुर्दों ने अपनी संस्थाएं खड़ी करनी शुरू कर दी. उन्होंने टैक्स वसूलना और कुर्द भाषा की पढ़ाई के लिए स्कूल चलाने शुरू कर दिए. जलील कहते हैं, "आखिर कुर्दों को अपने अस्तित्व का अहसास हुआ." 2014 में जब इस्लामिक स्टेट पड़ोसी इराक से निकल कर सीरिया के बड़े हिस्से में फैल गया तो कुर्द टुकड़ियां अरब लड़ाकों के साथ मिलकर जिहादियों से हो रही जंग में शामिल हो गए. अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के समर्थन से कुर्द नेतृत्व वाले सीरियन डेमोक्रैटिक फोर्सेज यानी एसडीएफ ने अरब बहुल इलाकों पर भी नियंत्रण कर लिया और वो धीरे धीरे पूर्व की तरफ बढ़ गए जहां अब देश के तेल कुओं वाले एक बड़े इलाके का नियंत्रण उनके हाथ में है.
तुर्की से परेशान सीरिया के कुर्द
सीरिया की सरकार ने 2015 में रूस की मदद मिलने के बाद अब तक 60 फीसदी से ज्यादा इलाके को अपने कब्जे में ले लिया लेकिन एसडीएफ के नियंत्रण वाला उत्तर पूर्वी और पूर्वी इलाका मोटे तौर पर उनकी पहुंच से बाहर है. तुर्की अपनी सीमा पर कुर्द फौजों की बढ़ती मौजूदगी का विरोध करता रहा है. वह एसडीएफ को कुर्दिश वर्कर्स पार्टी यानी पीकेके का "आतंकवादी" धड़ा कहता है. पीकेके पर तुर्की में प्रतिबंध भी है. 2018 में तुर्की की सेना और उनके सीरियाई साथियों ने सीरिया में आफरीन के उत्तर पश्चिमी इलाके को कुर्दों से छीन लिया. कुर्द इलाकों में अमेरिकी सैनिकों की पूर्व की तरफ मौजूदगी ने कुर्दों की रक्षा की. हालांकि जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सीरिया से अपनी फौजों को वापस बुलाने का एलान किया तो तुर्की की सेना ने 2019 में फिर इस इलाके पर धावा बोला और सीरिया की तरफ के करीब 120 किलोमीटर चौड़े इलाके को कुर्द लड़ाकों के नियंत्रण से अपने हाथ में ले लिया.
मध्यपू्र्व मामलों के विश्लेषक दारीन खलीफा का कहना है कि एसडीएफ का उत्तर पूर्वी सीरिया पर नियंत्रण सीधे तौर पर अमेरिकी समर्थन का नतीजा था, "इसकी वजह से जो स्थानीय और भूराजनीतिक परिस्थितियां पैदा हुईं वह अमेरिका के लिए समस्या बन गईं." खलीफा कहते हैं कि अब अमेरिका के व्हाइट हाउस में जो बाइडेन हैं और एसडीएफ के नियंत्रण वाले इलाके की किस्मत का फैसला सीरिया में अमेरिकी फौज की मौजूदगी रखने या फिर हटाने के मुद्दे पर अमेरिकी संसद में होने वाली बहस से तय होगा. खलीफा के मुताबिक, "एक बार अमेरिकी सेना हट गई तो कुर्द बाहरी हमले के लिहाज से बहुत जोखिम की स्थिति में आ जाएंगे. बाइडेन प्रशासन सीधे यहां से निकलने का फैसला करेगा इसकी उम्मीद कम है लेकिन वो लोग हमेशा के लिए यहां नहीं रहेंगे."
अमेरिका का क्या होगा रुख
गठबंधन सेना के राजदूत रहे ब्रेट मैकगुर्क को व्हाइट हाउस में मध्यपूर्व और अफ्रीका का संयोजक बनाने का कुर्दों ने स्वागत किया है. मैकगुर्क ने दिसंबर 2018 में ट्रंप के फौज वापसी का एलान करने के विरोध में इस्तीफा दे दिया था. कुर्द नेता जलील को उम्मीद है कि बाइडेन का रुख अलग होगा हालांकि वो यह भी कहते हैं, "हम उन पर भरोसा नहीं कर सकते." सीरिया की सरकार पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है. सीरिया की सरकार कुर्दों पर देश को तोड़ने का आरोप लगाती है हालांकि कुर्द इससे बार बार इंकार करते हैं. 2019 में तुर्की के हमले के बाद कुर्दो ने दमिश्क से सुरक्षा मांगी. दमिश्क ने उत्तर पूर्वी सीरिया के बफर जोन में थोड़ी सेना तैनात की हालांकि नियंत्रण मोटे तौर पर एसडीएफ के ही हाथ में रहा.
विश्लेषक मुटलू सिविरोग्लू का कहना है कि कुर्दों ने हमेशा से सीरिया की सरकार को तुर्की की तुलना में ज्यादा पसंद किया है. वह कहते हैं, "तुर्की एक कब्जा करने वाली शक्ति है और उन्होंने (कुर्दों ने) हमेशा खुद को सीरिया का हिस्सा माना है. वर्तमान में कुर्दों और सीरिया की सरकार के बीच इलाके के भविष्य पर बातचीत रुकी हुई है. सरकार चाहती है कि हालात 2011 से पहले की स्थिति में पहुंच जाएं जबकि जलील का कहना है कि चीजें बदल चुकी हैं. यह बात और है कि दोनों पक्षों के बीच संपर्क बना हुआ है. खलीफा का कहना है कि एक समाधान, "उत्तर पूर्वी सीरिया में विकेंद्रित सरकार के रूप में हो सकता है."
इस्लामिक स्टेट के बंदी लड़ाके
एसडीएफ ने इस्लामिक स्टेट को उसके आखिरी गढ़ से उखाड़ फेंका हालांकि छोटे मोटे हमले अब भी होते रहते हैं. अब कुर्दों के कब्जे में दसियों हजार इस्लामिक स्टेट के लड़ाके और उनके परिवार के लोग हैं. इनमें से ज्यादातर पश्चिमी या फिर एशियाई देशों के नागरिक हैं. ये लोग खचाखच भरी जेलों और कैंपों में रह रहे हैं. इनमें से कइयों ने यहां से भागने की भी कोशिश की है और बहुत से लोग इस कोशिश में मारे भी गए हैं. ज्यादातर देशों ने मोटे तौर पर अपने देश के नागरिकों को वापस बुलाने से इनकार कर दिया है.
इस्लामिक स्टेट के बंदी कुर्दों की बड़ी समस्या बने हुए हैं. कुर्द मांग कर रहे हैं कि जजों का एक ट्राइब्यूनल बनाया जाए जो संदिग्धों की पहचान करे लेकिन इस पर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है. जलील कहते हैं, "वो एक अदालत का गठन करने में हमारी मदद नहीं करेंगे और ना ही वो उन्हें अपने देश में वापस लेंगे. हम नहीं जानते कि इसका क्या समाधान है."
एनआर/एमजे (एएफपी)
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