अदालतों के रंग-बिरंगे कमरे...
२१ फ़रवरी २०१७भारत के पश्चिमी राज्यों में सफल रहे बच्चों के लिए इस अनुकूल अदालत मॉडल से प्रभावित होकर अब देश की कई अदालतों ने ऐसे कमरों की शुरुआत की है. राजधानी दिल्ली और दक्षिणी राज्य तेलंगना भी इसमें शामिल हैं.
गोवा बाल न्यायालय की न्यायाधीश वंदना तेंदुलकर के मुताबिक बच्चों के बयान पर्याप्त समय और सही माहौल देकर दर्ज किए जा सकते हैं क्योंकि इनकी गवाही आरोपियों को सजा दिलाने में सबसे अहम होती है. उन्होंने बताया कि उनकी अदालत में किसी को भी काले कपड़े पहन कर आने की अनुमति नहीं है और न ही पुलिसकर्मी अपने यूनीफॉर्म में आ सकते है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में मानव तस्करी के 9127 पीड़ितों में से तकरीबन 43 फीसदी की उम्र 18 वर्ष से कम थी. कार्यकर्ताओं के मुताबिक अधिकतर मामलों में गवाहों के मुकरने और उनके अदालत तक न पहुंच पाने के चलते आरोपियों को सजा नहीं हो पाती. एक डाटा के मुताबिक 2014 में ऐसे 406 मामलों में सुनवाई पूरी हुई लेकिन महज 100 मामलों में ही दोषियों को सजा सुनाई गई.
बच्चों के लिए तैयार की गई इन विशेष अदालतों में न्यायधीशों की ओर से सुनिश्चित किया जाता है कि पीड़ित और आरोपी का किसी भी तरह से आमना-सामना न हो. साथ ही बचाव पक्ष कोई दबाव न बना सके. अगले दो सालों में कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ऐसी कई अदालतें खोलने की योजना है. कर्नाटक में इस साल के अंत तक ही बच्चों के अनुकूल अदालत खोली जा सकती हैं.
कानून की पढ़ाई कर रहे छात्र इन बच्चों को अदालत में गवाही देने के लिए तैयार करते हैं. प्रक्रिया और अधिकारों की जानकारी देते हैं. कई मामलों में परामर्शी सेवाओं की भी व्यवस्था की जाती है. एनजीओ चला रही एमिडो पिन्हो के मुताबिक, "सबसे बड़ी समस्या है कि ये लोग शिकायत दर्ज नहीं कराते या अदालत में पीड़ित अपना बयान बदल लेते हैं और इन दोनों ही वजहों से आरोपी बरी हो जाते हैं."
इन रंग-बिरंगी अदालतों पर न्यायाधीश तेंदुलकर कहती हैं, "ऐसे मामलों की तह तक जाने के लिए हम न्यायाधीशों को भी इन बच्चों की ही तरह सोचना होगा. उन्होंने कहा की कानून हमें शक्ति देता है कि हम ऐसे बच्चों को आरोपियों की धमकी से बचा सकें और ये विशेष अदालत भी बच्चों को ऐसा ही माहौल दे रही हैं जहां ये निडर होकर अपनी बात रख सकें."
एए/एमजे (रॉयटर्स)