एशिया से लूटी कलाकृतियां यूरोप कभी लौटाएगा भी या नहीं?
२ फ़रवरी २०२४कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मनेट जनवरी में जब फ्रांस गए, तो राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने उनसे खमेर कलाकृतियां लौटाने और कंबोडिया के नेशनल म्यूजियम के विस्तार में तकनीकी मदद देने का वादा किया.
माक्रों अक्सर पहले यूरोपीय नेता बताए जाते हैं, जिन्होंने एशियाई देशों की प्राचीन कलाकृतियां लौटाने की लंबे समय से चली आ रही मांगों को आवाज दी. इसके पीछे 2017 में दिया उनका भाषण रेखांकित किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह औपनिवेशिक फ्रांस द्वारा लूटी गई सांस्कृतिक विरासत लौटाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे.
कुछ महीने पहले पेरिस स्थित फ्रांस का 'नेशनल म्यूजियम ऑफ एशियन आर्ट' सातवीं सदी की खमेर मूर्ति का सिर और शरीर लौटाने को राजी हुआ था. यह वापसी कंबोडिया के साथ पांच साल के कर्ज समझौते के तहत हुई थी. यह कलाकृति 1880 में कंबोडिया से ले जाई गई थी.
2017 में जर्मनी भी इस राह पर बढ़ा. जर्मनी ने 20वीं सदी की शुरुआत में नरसंहार के दौरान ली गई कलाकृतियां दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया को लौटाने पर सहमति जताई.
पिछले साल जुलाई में नीदरलैंड्स के रेग्जमुजेयम समेत दो संग्रहालयों ने डच उपनिवेश रहे इंडोनेशिया और श्रीलंका को सैकड़ों कलाकृतियां लौटाई थीं. डच सरकार ने अपने बयान में कहा था, "ये चीजें औपनिवेशिक काल में गलत तरीकों से नीदरलैंड्स लाई गई थीं, जो दबाव या लूटपाट से हासिल की गई थीं."
2022 में नीदरलैंड्स के लेइडेन शहर में प्राकृतिक इतिहास के संग्रहालय 'नटुरालिस' ने 19वीं सदी के अंत में मलेशिया के एक गांव के पुरातात्विक स्थल से लिए गए 41 प्रागैतिहासिक मनुष्यों के अवशेष लौटाए. ये अवशेष पांच से छह हजार साल पुराने हो सकते हैं.
चोरी की कलाकृतियां लौटाने पर विचार करते संग्रहालय
इस साल जनवरी में जर्मनी और फ्रांस की सरकारें अपने राष्ट्रीय संग्रहालयों के संग्रह में अफ्रीकी विरासत की चीजों की समीक्षा पर 21 लाख यूरो खर्च करने पर सहमत हुईं. सुगबुगाहट है कि एशियाई कलाकृतियों के लिए भी ऐसी योजना हो सकती है.
चुराई गई कलाकृतियां लौटाने की मांग की नई लहर बीते दिसंबर शुरू हुई, जब न्यूयॉर्क स्थित मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट ने कहा कि कंबोडियो को 14 और थाईलैंड को दो मूर्तियां लौटाएगा. संग्रहालय ने ये मूर्तियां ब्रितानी आर्ट डीलर डगलस लचफोर्ड से खरीदी थीं. लचफोर्ड पर 2019 में लूटी गईं कलाकृतियों की तस्करी का केस दर्ज किया गया था.
कंबोडिया के संस्कृति और कला मंत्रालय में कानूनी सलाहकार ब्रैड गॉर्डन ने पिछले साल कलाकृतियां लौटाए जाने में अहम भूमिका निभाई थी. गॉर्डन बताते हैं कि वह कंबोडियाई कलाकृतियों को लेकर ब्रिटेन और पेरिस के संग्रहालयों के संपर्क में हैं.
ऑस्ट्रिया के कई संग्रहालयों ने भी अपनी टीमों को संग्रह में मौजूद कलाकृतियों की समीक्षा करने के लिए कहा है. वहीं बर्लिन का एक बड़ा संग्रहालय भी संपर्क में रहा है. गॉर्डन कहते हैं, "हमें जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्कैंडिनेविया में कंबोडियाई कलाकृतियों की जानकारी है. इन्हें हमने अपने डेटाबेस में दर्ज कर लिया है. हम और जानकारी हासिल करने के इच्छुक हैं."
गॉर्डन कहते हैं, "इसके अलावा हम पूरे यूरोप में कई निजी संग्रहों की जानकारी भी जमा कर रहे हैं. अभी हम सर्वे मोड में हैं और संग्रहालयों और संग्रहकर्ताओं से किसी भी पूछताछ का स्वागत करते हैं." डीडब्ल्यू ने कई संग्रहालयों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया.
कलाकृतियां लौटाने का कानूनी आधार
जब कोई देश अपनी संपत्ति वापस पाने का दावा करता है, तो 1970 में 'सांस्कृतिक संपत्ति के स्वामित्व के अवैध आयात, निर्यात और हस्तांतरण पर प्रतिबंध और रोकने के साधनों' पर हुआ यूनेस्को कन्वेंशन इस मांग का प्रमुख कानूनी आधार होता है.
जर्मनी के एनजीओ 'जर्मन लॉस्ट आर्ट फाउंडेशन' के मुताबिक, यह कन्वेंशन अपने से पहले के वक्त पर लागू नहीं होता, इसलिए इसमें उपनिवेशवाद का चरम दौर शामिल नहीं है. एनजीओ के मुताबिक, "एक और अहम बात यह है कि ऐसे किसी समझौते में बहुत सारे देशों को शामिल करने की जरूरत होगी. 15वीं सदी के बाद से दुनिया का तकरीबन हर इलाका औपनिवेशिक संरचनाओं का हिस्सा रहा है. कम-से-कम एक निश्चित अवधि के लिए तो जरूर रहा है."
एनजीओ कहता है, "इस तरह जो सांस्कृतिक चीजें और संग्रह यूरोप लाए गए, वे मूलत: अलग-अलग जगहों से आते हैं और उनके संदर्भ भी अलग-अलग हैं. इन सभी कलाकृतियों में संभावित रूप से देखभाल करने के खास तौर-तरीके शामिल होते हैं." नतीजतन कुछ यूरोपीय सरकारों ने अपने संग्रहालयों में मौजूद कलाकृतियों की तकदीर तय करने के लिए राष्ट्रीय कानूनों का प्रस्ताव रखा है.
पिछले साल ऑस्ट्रियाई सरकार ने कहा था कि मार्च 2024 तक वह राष्ट्रीय संग्रहालयों में मौजूद औपनिवेशिक काल में हासिल की गई कलाकृतियों की बहाली नियंत्रित करने वाला कानून पेश करेगी. उस समय विएना के वेल्टमूजियम ने माना था कि इसके पास मौजूद दो लाख कलाकृतियों में से बहुत सारे इस बिल के दायरे में आ सकती हैं. इनमें दक्षिण पूर्व एशिया की कलाकृतियां भी शामिल हैं.
हालांकि, अन्य देशों में इसी तरह के कानून राजनीतिक विरोध के कारण अटक गए हैं. इसी बीच यूरोप के संग्रहालय अपने कुछ बेशकीमती संग्रहों को लौटाने में अनिच्छुक रहे हैं. डच संग्रहालयों के पिछले साल इंडोनेशिया को सैकड़ों कलाकृतियां लौटाने के बावजूद उन्होंने 'जावा मैन' के अवशेष लौटाने से इनकार कर दिया था. यह होमो इरेक्टस प्रजाति का पहला ज्ञात जीवाश्म है, जो औपनिवेशिक काल में खोजा गया था.
हालांकि, जानकार कहते हैं कि औपनिवेशिक काल के दौरान ली गईं कलाकृतियां लौटाने से यूरोपीय देशों को सॉफ्ट-पावर के फायदे मिल सकते हैं, खासकर जब वे दक्षिण पूर्व एशिया जैसे इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाह रहे हैं.
विश्लेषक कैमरन चीम शपीरो ने पिछले साल कलाकृतियों के प्रत्यावर्तन और कंबोडिया में सॉफ्ट पावर के बीच संबंध पर एक अकादमिक पेपर प्रकाशित किया था. शपीरो अपने पेपर में लिखते हैं, "कलाकृतियों की वापसी पश्चिमी सरकारों के लिए अपनी री-ब्रैंडिंग करने का बहुत बड़ा अवसर प्रदान करती है."
शपीरो के मुताबिक, "ये प्रत्यावर्तन अच्छे विश्वास का संकेत है, अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति प्रतिबद्धता है, पिछली गलतियां पहचानने और सुधारने की इच्छा का प्रतीक है और विदेशी सरकारों और लोगों के साथ बेहतर संबंधों की दिशा में कदम है."
नीदरलैंड्स ने अपनी भूमिका के लिए माफी मांगी
बीते दिसंबर यूरोपीय संसद की डेवलपमेंट कमिटी के सामने एक ड्राफ्ट पेश किया गया था. इसमें दावा था कि यूरोपीय संघ ने 'सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय असमानताओं पर यूरोपीय उपनिवेशवाद के स्थायी प्रभावों को पहचानने, उसे संबोधित करने और सुधारने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया.' ड्राफ्ट में रेस्टोरेटिव जस्टिस पर यूरोपीय संघ की एक स्थायी संस्था बनाने की अपील भी की गई थी.
हालांकि, कुछ यूरोपीय सरकारों ने साफतौर पर चुराई गई कलाकृतियां लौटाने को ऐतिहासिक उपनिवेशीकरण के लिए अपने पश्चाताप से जोड़ने की मांग की है. पिछले साल जब दो डच संग्रहालयों ने लूटी गई कलाकृतियां जकार्ता को लौटाई थीं, उससे एक महीने पहले प्रधानमंत्री मार्क रुट ने इंडोनेशिया पर नीदरलैंड्स के कब्जे के लिए औपचारिक रूप से माफी मांगी थी.
तब नीदरलैंड्स की तत्कालीन संस्कृति मंत्री गुनाय उस्लू ने कहा था, "यह भविष्य की ओर देखने का वक्त है. यह वापसी शोध और शैक्षणिक आदान-प्रदान में इंडोनेशिया के साथ करीबी सहयोग के दौर को जन्म देगी".
शपीरो के मुताबिक अगर यूरोपीय संग्रहालय अपने और संग्रह लौटाते हैं, तो यह उस इलाके में बड़ी सॉफ्ट पावर बनने की दिशा में बहुत बड़े कदम का परिचायक होगा. खासकर उन इलाकों में, जहां उपनिवेश-विरोधी भावना अब भी बरकरार है.
हालांकि, शपीरो यह भी कहते हैं कि अगर यूरोपीय देश दक्षिण-पूर्व एशिया में कलाकृतियां लौटाने के बदले अमेरिका जैसी तारीफ चाहते हैं, तो उन्हें अपनी कोशिशों को और सार्वजनिक ढंग से पेश करना चाहिए और जांच में उस इलाके की सरकारों के साथ सहयोग के लिए तैयार रहना होगा.