तुर्की ने लटकाई स्वीडन और फिनलैंड की नाटो मेम्बरशिप
४ नवम्बर २०२२तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू ने नाटो में जल्द शामिल होने की उम्मीद कर रहे स्वीडन और फिनलैंड की इच्छा पर फिर से ठंडा पानी डाल दिया है. गुरुवार को तुर्क विदेश मंत्री ने कहा कि इन दोनों देशों ने नाटो में शामिल होने के लिए जरूरी सारी शर्तें पूरी करनी हैं. इस्तांबुल में नाटो महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कावुसोग्लू ने कहा, "दोनों देश मेमोरंडम के प्रति वचनबद्धता दिखा रहे हैं, लेकिन जरूरी है उसे अमल में लाना."
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फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद फिनलैंड और स्वीडन की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गईं. लंबे समय तक तटस्थता की नीति अपनाने वाले इन दोनों देशों ने मई में नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू की. तुर्की शुरुआत से ही दोनों की सदस्यता का विरोध कर रहा है. तुर्की का आरोप है कि स्वीडन और फिनलैंड वांटेड कुर्द उग्रवादियों को पनाह देकर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं.
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इन आरोपों के बाद तुर्की, स्वीडन और फिनलैंड के बीच जून में एक समझौता भी हुआ. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने तुर्की में वांटेड संदिग्ध आतंकवादियों को प्रत्यर्पित करने पर हामी भरी. साथ ही उन्होंने अंकारा पर लगाया गया अनाधिकारिक हथियार बिक्री बैन भी हटाने का वादा किया. इस समझौते के बाद स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने का रास्ता काफी हद तक साफ हो गया. नाटो की नियमावली के मुताबिक नया सदस्य बनाने के लिए सभी 30 सदस्यों की सहमति जरूरी है.
नाटो महासचिव का रुख
कावुसोग्लू के मुताबिक हथियार निर्यात के मामले में सकारात्मक कदम अब भी नहीं उठाए गए हैं. वहीं नाटो के महासचिव स्टॉल्टेनबर्ग ने हाल ही स्वीडन और फिनलैंड के नेताओं से मुलाकात की है. उनके मुताबिक, स्वीडन आतंकवादी संगठनों के कई संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने करने की तैयारी कर रहा है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तुर्क विदेश मंत्री के बगल मे खड़े स्टॉल्टेनबर्ग ने कहा, "स्वीडन और फिनलैंड वादा निभा चुके हैं. अब फिनलैंड और स्वीडन का नाटो के पूर्ण सदस्यों के रूप में स्वागत करने का वक्त आ गया है." नाटो महासचिव के मुताबिक दो नए साझेदारों के जुड़ने से मॉस्को को सीधा संकेत मिलेगा कि नाटो के दरवाजे अब भी खुले हैं.
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समयसीमा को लेकर असमंजस
दोनों देशों की नाटो मेम्बरशिप को लेकर कुछ महीने पहले स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हुए समझौते को ऐतिहासिक करार दिया गया. लेकिन उसके तुरंत बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने प्रत्यपर्ण के मामलों में हो रही देरी को लेकर इस प्रक्रिया को सीज करने की चेतावनी दे दी. तब से अब तक कई महीने गुजर चुके हैं. तुर्की और हंगरी ने अब भी नये अनुमोदन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
माना जा रहा है कि हंगरी जल्द ही फिनलैंड और स्वीडन की सदस्यता वाले दस्तावेज को मान्यता दे देगा. बुधवार को फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली नीनिस्टो ने एक ट्वीट किया, "फिनलैंड हंगरी के समर्थन को लेकर आश्वस्त है." यह ट्वीट हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टोर ओरबान से मुलाकात के बाद किया गया.
तुर्की को शरणार्थी कुर्दों की इतनी चिंता क्यों है
हालांकि तुर्की अब भी अड़ा है. कावुसोग्लू के मुताबिक उनकी शिकायतें स्वीडन को लेकर हैं. स्वीडन में बड़ी संख्या में कुर्द रहते हैं. कुर्दों के लिए अलग देश की मांग करने वाले कुर्द संगठन, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) को तुर्की, अमेरिका और यूरोपीय संघ आतंकवादी मानते हैं. तटस्थता की नीति और राजनीति निर्वासन के प्रति उदार रहने वाले स्वीडन में पीकेके के कई सदस्य शरणार्थी बनकर रह रहे हैं.
तुर्की में रहने वाले कुर्द 1980 के दशक से सामान अधिकार मांग रहे हैं. कुर्दों की बड़ी आबादी तुर्की, सीरिया, इराक और ईरान में रहती हैं. इराक के स्वायत्त कुर्द प्रांत को छोड़ बाकी सभी देशों में कुर्द भेदभाव का सामना करते हैं. तुर्की में कुर्दिस्तान से जुड़े विवाद में अब क 40,000 लोगों की मौत हो चुकी है.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार इस साल स्वीडन में दक्षिणपंथी सरकार बनी हैं. तुर्की को उम्मीद है कि दक्षिणपंथी सरकार अंकारा का रुख समझेगी. फिनलैंड और स्वीडन की सदस्यताओं को लेकर संयुक्त आवेदन प्रक्रिया अपनाई गई, इसीलिए स्वीडन की वजह से फिनलैंड का मामला भी लटका है. शुक्रवार को नाटो महासचिव तुर्क राष्ट्रपति एर्दोवान में मिलने वाले हैं.