इतने होशियार तोते, कुटाई-पिसाई से लेकर औजार भी बना लेते हैं
कभी कोई सर्वे हो तो पता चलेगा कि भारत में ज्यादातर पालतू तोते "मिट्ठू" पुकारे जाते हैं. शायद इंसानी बोली दोहराने की उनकी अदा लोगों को मीठी लगती होगी. लेकिन रटने की ये कला तोते की इकलौती खासियत नहीं है.
कितने ही तरह के तोते
इस प्रजाति को तोता नहीं, तोते कहिए. ये 300 से ज्यादा पक्षियों का एक विशाल परिवार है. पैरट्स फैमिली में बहुत विविधता है. खूबसूरत और चटख रंगों वाले मकॉ. सफेद रंगत और सिर पर पंखों के निराले मुकुट वाला कॉकटू. नारंगी और बैंगनी रंग वाला सुंदर लॉरिकीट. रंग और आवाज समेत तोतों में कई किस्म की विविधताएं हैं.
कई समानताएं भी हैं
इनमें कई बातें एक जैसी भी हैं. मसलन, इनकी थोड़ी मुड़ी हुई सी चोंच. ये फल, फूल, बीज खाते हैं. छोटे कीड़ों को भी खा लेते हैं. मध्य और दक्षिणी अमेरिका में इनकी बहुत विविधता पाई जाती है. तोते अपनी आवाज की मदद से झुंड के बाकी साथियों से संवाद करते हैं, एक-दूसरे को पहचान भी लेते हैं. ऐसा नहीं कि सभी तोते इंसानी बोली की नकल करते हों.
एलेक्स एंड मी
अमेरिका की वैज्ञानिक आइरीन पैपरबर्ग ने जानवरों, खासतौर पर तोतों की मानसिक क्षमताओं पर काफी काम किया है. उनकी एक किताब है, एलेक्स एंड मी. इसमें उन्होंने एलेक्स नाम के एक अफ्रीकन ग्रे पैरट के साथ अपने अनुभव बताए हैं. एलेक्स उनकी रिसर्च का विषय भी था और सहकर्मी भी. तस्वीर: अफ्रीकन ग्रे पैरट.
गजब का काबिल तोता था एलेक्स
एलेक्स कई रंग, आकार, संख्याएं और अक्षर पहचान सकता था. वो गिनती गिन सकता था. जोड़-घटाव कर सकता था. वो अपने मन की बात स्पष्ट तरीके से अंग्रेजी में बता सकता था. एलेक्स की लाजवाब अक्लमंदी के कारण उसके कई फैन थे. उसकी गिनती सबसे मशहूर रिसर्च जीवों में होती थी. 2007 में एलेक्स की मौत हो गई. "लाइफ विद एलेक्स" नाम की शॉर्ट फिल्म में आप उसकी अक्लमंदी देख सकते हैं.
कलाकार कॉकटू
इस प्रजाति के तोते बड़े हुनरमंद होते हैं. वो अपने हिसाब का औजार बना लेते हैं. विएना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग में दिखाया कि कॉकटू तार को मोड़कर हुक बना लेते हैं. फिर मुड़े हुए हुक को सीधा भी कर लेते हैं. इतना ही नहीं, उनके बनाए औजारों में वक्त के साथ और बेहतरी आती है. प्रॉब्लम सॉल्विंग में सक्षम होते हैं.
सीप के खोल की 'चटनी'
इंसान ने अपनी विकास यात्रा में पत्थरों को औजारों की तरह बखूबी इस्तेमाल किया. ग्रेटर वस्पा पैरट्स में भी ये हुनर है. यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क के शोधकर्ताओं ने अपने एक प्रयोग में पाया कि ग्रेटर वस्पा ने खजूर की गुठली और कंकड़ से सीप के खोल को पीस लिया. इसे खुद भी खाया और मादा को खिलाया. इस बुरादे से उन्हें कैल्शियम की खुराक मिलती है.