न्यू कैलेडोनिया और फ्रांस का क्या मसला है
१९ मई २०२४कई दशकों से फ्रांस के नियंत्रण में रहे न्यू कैलेडोनिया में बीते कुछ दिनों से दंगे भड़के हुए हैं. पेरिस में फ्रेंच संसद ने एक संवैधानिक सुधार के जरिए न्यू कैलेडोनिया में आने वाले लोगों को प्रांतीय चुनावों में मतदान का अधिकार देने का बिल पास कर दिया है. इसके बाद से ही यहां हालात बिगड़ गए हैं. इस संवैधानिक बदलाव की वजह से कुछ स्थानीय नेताओं को मूल निवासी कनक लोगों के निर्वाचन अधिकारों के कमजोर पड़ने की आशंका सता रही है. द्वीप के मामलों में फ्रांस की भूमिका को लेकर विवादों में यह नई कड़ी है.
जली हुई दुकानें और कारें, दुकानों में लूटपाट, सड़कों पर बैरिकेड, दवा और खाने की मुश्किल और कम से कम छह लोगों की मौत बीते कुछ दिनों में यहां हुई अशांति की कहानी सुना रहे हैं. अधिकारियों ने अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और स्कूलों को बंद कर दिया और राजधानी नूमेया में कर्फ्यू लगा दिया.
फ्रेंच पुलिस व्यवस्था बहाल करने की कोशिश कर रही है और दर्जनों बैरिकेड हटाए गए हैं. ये बैरिकेड राजधानी नूमेया और एयरपोर्ट को जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर लगाए गए थे. प्रदर्शन कर रहे लोगों ने 60 किलोमीटर लंबी सड़क पर करीब 60 बैरीकेड लगाए थे. हालांकि सड़क अभी चालू नहीं हुई है क्योंकि सड़कों पर जमा कचरे को साफ करने का काम चल रहा है जिसमें कई दिन लगेंगे. स्थिति को संभालने के लिए फ्रांस ने न्यू कैलेडोनिया में आपातकाल की घोषणा की है.
फ्रांस लौटाएगा लूटी हुई कलाकृतियां
कहां है न्यू कैलेडोनिया
दक्षिण पश्चिमी प्रशांत के गर्म पानी में ऑस्ट्रेलिया के पूरब में करीब 1,500 किलोमीटर दूर न्यू कैलेडोनिया करीब 270,000 लोगों का घर है. इनमें 41 फीसदी मेलानेसियन कनक और करीब 24 फीसदी यूरोपीय मूल के लोग हैं. यूरोपीय लोगों में ज्यादातर फ्रेंच हैं.
इस जलडमरुमध्य को यह नाम ब्रिटिश खोजी यात्री कैप्टेन जेम्स कुक ने 1774 में दिया था. 1854 में इसे फ्रांस ने अपने नियंत्रण में ले लिया और इसका इस्तेमाल ऐसे उपनिवेश के रूप में किया जाने लगा जो 20वीं सदी की शुरुआत से ठीक पहले तक सजा देने वाली जगह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.
न्यू कैलेडोनिया का महत्व क्या है?
न्यू कैलेडोनिया उन पांच द्वीपीय इलाकों में से एक है जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में हैं, और जिनका नियंत्रण फ्रांस के हाथ में हैं. फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस का प्रभाव बढ़ाने की जो योजना बनाई है, यह द्वीप उसके केंद्र में हैं.
दुनिया में निकेल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश न्यू कैलेडोनिया भूराजनीति के लिहाज से प्रशांत महासागर के बेहद जटिल समुद्री क्षेत्र में मौजूद है. यहां चीन और अमेरिका के बीच पहले से ही सुरक्षा और कारोबार के मामले में ताकत और असर की होड़ मची है.
चीन का नाम लिए बगैर माक्रों पहले कह चुके हैं कि प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटा फ्रांस वहां "नियम आधारित विकास" सुनिश्चित करना चाहता है.
न्यू कैलेडोनिया में फ्रांस का इतिहास
19वीं सदी में फ्रांस का उपनिवेश बनने के बाद न्यू कैलेडोनिया 1946 में फ्रेंच ओवरसीज टेरिटरी बन गया. 1970 के दशक की शुरुआत में निकेल का पता चलने के बाद बाहरी लोग भी इसकी तरफ आकर्षित हुए जिसके बाद यहां तनाव बढ़ने लगा. पेरिस और कनक स्वतंत्रता आंदोलनों के बीच कई विवाद खड़े हो गए.
सुलु वंशजों के साथ जमीनी विवाद में उलझा मलेशिया
1998 में नूमेया अकॉर्ड के साथ इन विवादों को खत्म करने में मदद मिली. इसके जरिए अर्थव्यवस्था के सुधार का एक खाका तैयार हुआ. इसके साथ ही 1998 के पहले से यहां रहते आए कनक मूल निवासियों ओर प्रवासियों को वोटिंग का अधिकार मिला. इस अकॉर्ड ने लोगों को देश का भविष्य तय करने के लिए वहां तीन जनमत संग्रह कराने को भी मंजूरी दिलाई. इन तीनों जनमत संग्रहों में लोगों ने आजादी को नकार दिया.
आखिरी बार यहां चुनाव 2021 में हुए थे. उन चुनावों के नतीजे आने के तुरंत बाद राष्ट्रपति माक्रों ने कहा था, "आज फ्रांस ज्यादा खूबसूरत है क्योंकि न्यू कैलेडोनिया ने फैसला किया है कि वह उसका हिस्सा बना रहेगा." हालांकि 2021 के चुनाव का, आजादी समर्थक पार्टियों ने कोरोना वायरस की महामारी के चलते बहिष्कार किया था. इस चुनाव की वैधता को लेकर सवाल बना रहा था.
अब क्यों बढ़ गया है द्वीप पर तनाव
नूमेया अकॉर्ड की शर्तों के मुताबिक प्रांतीय चुनावों में मतदान का अधिकार सिर्फ उन लोगों और उनके वंशजों को दिया गया जो न्यू कैलेडोनिया में 1998 के पहले से रहते आए हैं. इसका मकसद मूल निवासी कनक लोगों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देना था जो आबादी के लिहाज से अल्पसंख्यक हो गए थे.
फ्रांस को अब लग रहा है कि यह व्यवस्था लोकतांत्रिक नहीं है. फ्रेंच सांसदों ने एक संवैधानिक सुधार कर निर्वाचकों में उन लोगों को भी शामिल करने का फैसला किया है जो न्यू कैलेडोनिया में कम से कम 10 साल से रह रहे हों. संसद का यही फैसला मूल निवासियों को नागवार गुजरा है.
माक्रों ने कहा है कि वह इस बिल को कानून बनाने के लिए मुहर लगाने में थोड़ा वक्त लेंगे. इसके पहले इलाके के प्रतिनिधियों को बातचीत के लिए बुलाया जाएगा और आपसी सहमति से एक समाधान पर पहुंच जाएगा. हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि यह सहमति जून तक हासिल कर लेनी होगी, नहीं तो वह इस बिल पर दस्तखत कर देंगे.
एनआर/एसबी (एपी, रॉयटर्स)