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समाजभारत

भारत से सैकड़ों हिंदू शरणार्थी पाकिस्तान क्यों लौटे

९ मई २०२२

राजस्थान में पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए आठ सौ हिंदू शरणार्थी बीते साल कई कारणों से पाकिस्तान लौट गए. शरणार्थियों के लिए काम करने वाले संगठन ने कहा है कि उनके वापस लौटने का कारण सिर्फ नागरिकता नहीं मिल पाना नहीं है.

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फाइल तस्वीर
फाइल तस्वीरतस्वीर: DW/A. Ansari

राजस्थान में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन (एसएलएस) का कहना है कि साल 2021 में लगभग आठ सौ शरणार्थी वापस पाकिस्तान लौट गए. सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा ने उनके वापस लौटने के कई कारण डीडब्ल्यू को गिनाए. भारत में शरण के लिए आए ये लोग पाकिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के बाद आए थे. डीडब्ल्यू से सोढा कहते हैं पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है और उनके यहां की मुख्य वजहें वहां (पाकिस्तान में) उनके साथ भेदभाव और धार्मिक प्रताड़ना हैं. वे कहते हैं शरणार्थी भारत में एक उम्मीद भरी जिंदगी के साथ आते हैं लेकिन उन्हें यहां वह नहीं मिल पाती है.

भारतीय नागरिकता पाने की लंबी कोशिश

सोढा आरोप लगाते हैं कि भारत नागरिकता देने में कंजूसी बरत रहा है तो वहीं पाकिस्तान को पता है कि ऐसा नियम है कि भारत की नागरिकता लेते वक्त कोई पाकिस्तानी नागरिकता नहीं रख सकता. वे कहते हैं कि जो कोई भी रिफ्यूजी भारत आता है उसके पास वैध दस्तावेज होते हैं और उनके पास भारत का वीजा भी होता है. सोढा आगे कहते हैं, "जब शरणार्थी भारत आते हैं तो उन्हें रजिस्ट्रेशन के लिए जाना पड़ता है और एक बार जब पासपोर्ट की समय सीमा खत्म हो जाती है तो उन्हें पासपोर्ट रिन्यू कराने के लिए पाकिस्तानी उच्चायोग जाकर भारी फीस जमा करनी पड़ती है." सोढा बताते हैं इस प्रक्रिया में परिवार के हर एक सदस्य का खर्चा करीब 10 से लेकर 15 हजार रुपये के बीच होता है, जो कि बतौर रिफ्यूजी भारत में रहने वालों के लिए एक भारी रकम है.

गौरतलब है कि भारतीय गृह मंत्रालय ने 2018 में नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की प्रक्रिया शुरू की थी. मंत्रालय ने सात भारतीय राज्यों में 16 जिला कलेक्टरों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसी, जैन और बौद्धों की नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करने का काम सौंपा था. मई 2021 में भारतीय गृह मंत्रालय ने गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के 13 और जिलों के अधिकारियों को भारतीय नागरिकता अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मुसलमानों को छोड़कर इन छह धार्मिक समुदायों के प्रवासियों को नागरिकता कानून, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत नागरिकता प्रमाण पत्र देने की शक्ति दी थी. पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन करने के बावजूद वेब पोर्टल एक्सपायर हो चुके पाकिस्तानी पासपोर्ट की पहचान नहीं करता है और नागरिकता चाहने वालों को पाकिस्तानी उच्चायोग के चक्कर काटने पड़ते हैं.

सोढा कहते हैं कि भारत की सरकार को नोटिफाई करना चाहिए कि भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए पाकिस्तानी पासपोर्ट को रिन्यू करने की जरूरत नहीं रहेगी और पाकिस्तानी नागरिकता त्याग करने की प्रक्रिया हलफनामा के माध्यम से हो जाएगी. सोढा ने आगे कहा कि ऑनलाइन आवेदन करने के बावजूद आवेदकों को कलेक्टर के पास जाकर दस्तावेज जमा करने होते हैं, जो एक और बोझ है.

सोढा उनके लौट जाने का एक और अहम कारण बताते हैं कि परिवार विभाजित हो जाने से वह दुख और सुख में शामिल नहीं हो पाता है. थार एक्स्प्रेस के नहीं चल पाने से शरणार्थी अपने परिवार से गम के समय में मिल नहीं पाते हैं.

पाकिस्तानी हिंदुओं की पीड़ा

भारतीय गृह मंत्रालय ने 2015 में नागरिकता कानूनों में कई बदलाव किए. दिसंबर 2014 या इससे पहले धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आने वाले विदेशी प्रवासियों के प्रवास को वैध कर दिया गया था. इन लोगों को पासपोर्ट कानून और विदेशी कानून के नियमों से छूट दी गई थी क्योंकि उनके पासपोर्ट की समय सीमा समाप्त हो गई थी.

सरकार से सोढा मांग करते हैं कि नागरिकता देने की प्रक्रिया जो अभी जटिल बनी हुई है उसको सरल और पारदर्शिता प्रक्रिया बनाई जानी चाहिए. वह कहते हैं जब नागरिकता चाहने वाला सभी मानदंडों को पूरा कर रहा है तो उसे इतना लंबा इंतजार क्यों कराया जाता है. उनके मुताबिक कई शरणार्थी कई बार अपने नाते-रिश्तेदार की निराशा को देखकर भी वापस लौट जाने का फैसला कर लेते हैं.

करीब आठ सौ हिंदू पाकिस्तानी शरणार्थियों के वापस लौट जाने की मीडिया रिपोर्ट पर भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आई है.

दूसरी ओर एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के अहमदाबाद के कलेक्टर संदीप सागले ने पाकिस्तान से आए 17 हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है. आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों के तहत सात या उससे अधिक वर्षों से भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने के बाद नागरिकता दी गई है.

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