क्या अफगानिस्तान के ऊपर से फिर उड़ेंगे हवाई जहाज
१६ अगस्त २०२३दुनिया के पूर्वी कोनों से पश्चिमी कोनों तक जाने के लिए अफगानिस्तान के ऊपर से उड़ना विमान कंपनियों और यात्रियों के लिए लाभकारी होता है. इस रूट की वजह से यात्रा में समय भी कम लगता है और ईंधन भी कम खर्च होता है.
अमेरिका ने एक बार फिर उड़ानों को अफगानिस्तान रूट लेने की सुविधा देने के लिए नियमों को ढीला करना शुरू कर दिया है, लेकिन इस कदम से जुड़े कई सवाल हैं जिनके जवाब मिलने जरूरी हैं.
एटीसी नदारद, कई खतरे
सबसे पहला सवाल तो यही है कि महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूररखने वाले तालिबान से अगर दुनिया सरोकार रखने को तैयार हो भी गई है तो आखिर तालिबान के साथ किस तरह का व्यवहार रखा जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने तालिबान के बर्ताव को संभावित रूप से "लैंगिक अपार्थाइड" जैसा माना है. दूसरा सवाल उड़ान कंपनियों के लिए है कि क्या वो एक अनियंत्रित एयरस्पेस में एक ऐसे देश के ऊपर से विमान ले जाने के लिए तैयार हैं जहां अनुमानित रूप से 4,500 कंधे पर रख कर चलाने वाले एंटी-एयरक्राफ्ट हथियार मौजूद हैं.
फिर अगर कोई आपातकालीन स्थिति हो और विमान को अचानक उतारने की जरूरत पड़ जाए तो ऐसे में क्या होगा? आखिर ऐसे देश के ऊपर से कौन उड़ना चाहता है? विमानन उद्योग के संगठन ओपीएस ग्रुप ने इसका सरल जवाब दिया है: "कोई नहीं!"
एक एडवाइजरी में इस संगठन ने लिखा, "पूरे देश में कहीं भी एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) सेवा नहीं है, सतह-से-हवा-तक अंतहीन जैसी संख्या में हथियार मौजूद हैं जिनसे हो सकता है वो गोलियां चलाने लगेंअगर आप काफी नीचे उड़ रहे हों और अगर आपको डाइवर्ट करना हो तब तो हम आपके लिए अच्छी किस्मत की कामना करेंगे."
इसके बावजूद विमानों के अफगानिस्तान के ऊपर से फिर से गुजरने का कंपनियों पर बड़ा असर होगा. चारों तरफ से जमीन से ही घिरा होने के बावजूद केंद्रीय एशिया में अफगानिस्तान की स्थितिऐसी है जिसकी वजह से वह भारत से यूरोप और अमेरिका जाने वालों के लिए सबसे सीधे हवाई रास्तों पर स्थित है.
बढ़ जाता है खर्च, समय
15 अगस्त, 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया, उसके बाद से नागरिक विमानन रुक ही गया, क्योंकि एयरस्पेस के प्रबंधन के लिए ग्राउंड कंट्रोलर कहीं नहीं थे. एंटी एयरक्राफ्ट हथियारों के इस्तेमाल के डर की वजह से दुनिया भर में अधिकारियों ने अपनी अपनी व्यावसायिक विमानन कंपनियों को वहां से उड़ने से मना कर दिया.
इस डर के पीछे 2014 में यूक्रेन के ऊपर मलेशियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 17 के गिरा दिए जाने की वारदात की याद भी थी. बहरहाल, कंपनियों ने अफगानिस्तान की सीमाओं से परे से अपने विमानों को ले जाना शुरू कर दिया.
कम आबादी वाले वाखान गलियारे के ऊपर से गुजरती हुई उड़ानें अफगान एयरस्पेस के ऊपर बस कुछ ही मिनटों तक रहती हैं और उसके बाद आगे बढ़ जाती हैं. लेकिन इन डायवर्जनों की वजह से उड़ानों का समय और बढ़ जाता है.
इसकी वजह से ईंधन की खपत बढ़ जाती है, जो किसी भी विमान कंपनी के लिए एक बड़ा खर्चा होता है. इसी वजह से जुलाई में अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा लिए गए एक फैसले पर उद्योग की नजर तुरंत गई.
इस विभाग ने घोषणा की कि 32,000 फुट से ऊपर की उड़ानें "उस ऊंचाई पर अमेरिकी नागरिक विमानन ऑपरेशन्स को कम हो चुके जोखिम की वजह से फिर से शुरू की जा सकती हैं."
जब फैसले के पीछे के कारण को लेकर सवाल उठे तो कहा गया कि ये सवाल विदेश मंत्रालय से किये जाएं. लेकिन विदेश मंत्रालय ने सवालों के जवाब नहीं दिए.
हालांकि मंत्रालय का एक दूत अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो के निकल जाने के बाद तालिबान अधिकारियों से कई बार मिल चुका है. तालिबान के अधिकारियों ने भी बार बार निवेदन के बावजूद इस घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी.
सीके/एए (एपी)