कौन हैं रामनामी, जो राम नाम का टैटू बनवाते आए हैं
भारत के छत्तीसगढ़ में रहने वाले रामनामी समाज के लोग 100 साल से भी लंबे समय से अपने शरीर के हर हिस्से में राम का नाम गुदवाते हैं. देखिए कौन सा अनोखा संदेश छुपा है इस टैटू परंपरा में.
विद्रोही सोच
टैटू गुदवाने की इस परंपरा के साथ समाज की वंचित जातियों के लोग 'अगड़ी जातियों' को खास अंदाज में एक संदेश देते आए हैं. संदेश यह कि भगवान केवल 'सवर्णों' के नहीं, बल्कि सबके होते हैं.
समर्पित
मंदिरों में प्रवेश करने से रोके जाने के कारण इन्होंने अपने पूजनीय भगवान राम के प्रति असीम श्रद्धा दिखाते हुए अपने शरीर पर ही उनके सैकड़ों प्रचलित नाम गुदवा लिए. जैसे - राम, राघव, कौशलेंद्र, रामभद्र, मर्यादापुरुषोत्तम वगैरह.
वर्जनाएं
रामनामी समाज ने तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के भेदभाव के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विद्रोह के रूप में इसकी शुरुआत की. हालांकि भारत में जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की सख्त मनाही है.
संस्कृत
ये लोग प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत में अपनी त्वचा पर राम के विभिन्न नाम गुदवाते हैं. संस्कृत को देवभाषा का दर्जा प्राप्त है. शरीर को मंदिर की तरह पवित्र मानते हुए ये लोग मांस और शराब का सेवन नहीं करते.
जीवनशैली
लगभग हर परिवार अपने घर में भगवान राम पर लिखा एक महाग्रंथ या महाकाव्य रखता है. यहां तक की घरों की सजावट में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों पर भी राम नाम अंकित होते हैं.
महिलाएं
इस समाज के करीब एक लाख लोगों में इस एक मामले में महिला-पुरुष का कोई अंतर नहीं है. रामनामी समाज की औरतें भी राम नाम के टैटू बनवाती हैं.
बदलती पीढ़ियां
इस समुदाय के सभी युवा अब अपने पूरे शरीर पर ऐसे टैटू नहीं गुदवाना चाहते. लेकिन नई पीढ़ी ने सदियों से चली आ रही अपनी इस परंपरा को पूरी तरह त्यागा भी नहीं है.