पृथ्वी पर अथाह आंकड़े पहुंचाने वाले अंडरसी केबल का साम्राज्य
सारी दुनिया के आंकड़े और संचार महासागरों के रास्ते सब-सी या अंडरसी फाइबर ऑप्टिकल केबल के जरिए गुजरते हैं. रणनीतिक रूप से बेहद अहम होने के कारण इन पर हमलों का निशाना बनने का जोखिम भी बहुत ज्यादा है.
महाद्वीपों के बीच संचार
अंडरसी केबल के जरिए दुनिया के महाद्वीपों के बीच हर तरह के डाटा का संचार होता है. वीडियो स्ट्रीमिंग से लेकर आर्थिक लेनदेन, राजनयिक संचार और खुफिया जानकारियां भी इन्हीं के जरिए एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जाती हैं.
अथाह आंकड़े
ये अंडरसी केबल बड़ी भारी मात्रा में डेटा और सूचनाओं को यहां से वहां ले जाती हैं. फिलहाल दुनिया में जितने डेटा का लेनदेन होता है उसमें से 98 फीसदी इन्हीं सब-सी केबल के जरिए यात्रा करता है. जैसे जैसे डेटा की मात्रा बढ़ रही है, वैसे ही इन केबलों का महत्व भी बढ़ रहा है.
ऑप्टिक फाइबर केबल का जाल
फिलहाल दुनिया भर में 450 अंडरसी केबल काम कर रही हैं. इन केबलों का विस्तार करीब 12 लाख किलोमीटरों में फैला हुआ है.
सब-सी केबल से अछूते देश
समुद्र तट से लगने वाले इलाके के लगभग सभी देशों तक कम से कम एक सब-सी केबल जरूर पहुंचती है. पृथ्वी पर एरिट्रिया, उत्तर कोरिया और अंटार्कटिका जैसे चंद कोने ही ऐसे हैं जहां कोई अंडरसी केबल मौजूद नहीं है.
निजी कंपनियों के हाथ में है तंत्र
अंडरसी केबल का संचालन पूरी तरह से निजी हाथों में है. 2021 में अमेरिकी कंपनी सबकॉम, फ्रांस की एएसएन और जापान की एनईसी के पास पूरे बाजार में 87 फीसदी की हिस्सेदारी थी. चीन की एचएमएन चौथी बड़ी कंपनी है जिसकी हिस्सेदारी करीब 11 फीसदी थी.
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एमेजॉन ताक में
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने के साथ भविष्य में इन केबलों और बैंडविड्थ की डिमांड और ज्यादा बढ़ने वाली है. इसे देखते हुए गूगल, एमेजॉन और माइक्रोसॉफ्ट अपना खुद का केबल लगाने की तैयारी में हैं.
अंडरसी केबल पर आए दिन के खतरे
इन केबलों के लिए नियमित रूप से संकट उभरता रहता है. इसकी वजह से इनके ट्रैफिक पर असर होता है. इसके लिए सागर के नीचे होने वाले भूस्खलन से लेकर सूनामी या फिर कई बार तो नावों के एंकर भी जिम्मेदार होते हैं. 80 फीसदी मामले जान बूझ कर नुकसान पहुंचाने वाले नहीं होते.
जासूसी का जोखिम
तमाम सावधानियों के बावजूद ये केबल जान बूझ कर नुकसान पहुंचाए जाने या फिर जासूसी के डर से मुक्त नहीं हैं. डेनमार्क की प्रेस में आई खबरों में दावा किया गया कि डेनमार्क के अंडरसी नेटवर्क के जरिए अमेरिका ने जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे और फ्रांस के संचार में सेंध लगाई थी. 2012 से 2014 के दौरान इस सेंधमारी में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की बातचीत भी सुनी गई थी.