एंथ्रोपोसीन युग क्या है?
१४ मार्च २०२४कई वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर हो रहे मानव-जनित बदलावों के चलते एक नए भूवैज्ञानिक युग की शुरुआत हुई है, जिसे एंथ्रोपोसीन कहा जा रहा है. वहीं दूसरे जानकारों का कहना है कि नए युग के दावे समय से पहले किए जा रहे हैं.
करीब 12 हजार साल पहले हिमयुग यानी आइस एज खत्म हुई थी. इसके बाद एक नए भूवैज्ञानिक युग- होलोसीन की शुरुआत हुई. यह युग पहले से ज्यादा गर्म था और जलवायु स्थिर थी. इससे मानव जीवन का विकास हुआ.
होलोसीन युग में ही खेती की शुरुआत हुई. सभी प्रमुख सभ्यताओं, संस्कृति और तकनीकों का उत्थान और पतन हुआ. इसी दौरान, मनुष्य खेती जैसी गतिविधियों की मदद से आगे बढ़ा और पर्यावरण में किसी भी दूसरी प्रजाति से ज्यादा बदलाव किया.
लेकिन कई वैज्ञानिक मानते हैं कि पिछली सदी के खत्म होने तक होलोसीन युग के भी अंतिम पल आ गए थे. वे कहते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इंसानों ने धरती के भूविज्ञान, महासागरों और पारिस्थितिकी तंत्रों को इतनी तेजी और गहराई से बदला कि इससे एक नए भूवैज्ञानिक युग ‘द एंथ्रोपोसीन' की शुरुआत हो गई
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कितनी सच्चाई है एंथ्रोपोसीन में
कई दूसरे विशेषज्ञों ने एंथ्रोपोसीन के दावे पर सवाल भी उठाए. लेकिन इसका समर्थन करने वाले वैज्ञानिक एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप (एडब्ल्यूजी) के तहत इकट्ठे हुए. उन्होंने सालों तक कोशिश की कि अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिक विज्ञान संघ के विशेषज्ञों की स्वतंत्र समिति द्वारा नए युग को औपचारिक रूप दिया जाए.
लेकिन 24 सदस्यीय कमेटी ने पूर्ण बहुमत से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि एंथ्रोपोसीन की शुरुआत 1950 में हो गई थी. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने पांच मार्च को एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी. अब इस प्रस्ताव को दस साल बाद ही पेश किया जा सकता है.
नए युग के दावे का समर्थन करने वालों का कहना है कि औद्योगिक क्रांति के साथ एंथ्रोपोसीन की शुरुआत हुई. औद्योगिक क्रांति के दौरान ही इंंसानों ने ईंधन जलाना शुरू किया था और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन शुरू हुआ था.
वहीं, दूसरे मानते हैं कि इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई, जब धरती पर मानव जीवन का प्रभाव बढ़ने लगा. उदाहरण के लिए, 1950 और 1960 के दशक में वायुमंडल में हुए परमाणु परीक्षणों ने प्लूटोनियम आइसोटोप की परत फैला दी, जिससे सेडिमेंट्स में बढ़ोतरी हुई. यह इंसानों द्वारा छोड़ा गया एक अनोखा रेडियोलॉजिकल मार्कर था.
भूवैज्ञानिक युग का मतलब क्या है?
पृथ्वी के इतिहास को कई भागों में बांटा जाता है. इन्हें जियोलॉजिकल टाइम स्केल कहा जाता है और इनकी जानकारी धरती की ऊपरी सतह में दर्ज रहती है.
भूवैज्ञानिक युग जैसे- लेट क्रेटेशियस, मिडल जुरासिक और होलोसीन आमतौर पर लाखों सालों तक चलते हैं. ये युग चट्टानों की परतों में अपने महत्वपूर्ण निशान छोड़ जाते हैं. जैसे- खनिज संरचना और जीवाश्म, जो प्रमुख जलवायु परिवर्तनों के बारे में बताते हैं.
एंथ्रोपोसीन युग की घोषणा करने के समर्थक कहते हैं कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, परमाणु परीक्षण और औद्योगिक खेती भूवैज्ञानिक निशान छोड़ रहे हैं, जो लाखों सालों तक मौजूद रहेंगे.
एंथ्रोपोसीन शब्द ग्रीक भाषा से आया है. यह दो शब्दों से बना है. एंथ्रोपो यानी इंसान और सीन यानी हाल ही में हुआ. साल 2000 में नीदरलैंड्स के वायुमंडलीय विशेषज्ञ पॉल जे क्रुतसन और अमेरिका के जीवविज्ञानी यूजीन स्टोएर्मर ने इस विषय पर एक लेख लिखा था. इसके बाद ही एंथ्रोपोसीन शब्द लोकप्रिय हुआ.
इंसानों ने क्या निशान छोड़े हैं
पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया है. इससे पहले वायुमंडल में इतनी ज्यादा सीओटू तीस लाख साल पहले दर्ज की गई थी. सीओटू का स्तर बढ़ने के चलते धरती गर्म हो रही है और महासागर एसिडिक हो रहे हैं. पिछले लाखों सालों में महासागर कभी इतने एसिडिक नहीं थे. औद्योगिक खेती और शहरीकरण के चलते स्थिति बदल गई है. उर्वरकों की वजह से पानी और मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ गया है.
प्लास्टिक और कंक्रीट जैसी नई चीजों के फैलाव ने एक नई परत का निर्माण किया है. वैज्ञानिक इसे ‘टेक्नोफॉसिल्स' कहते हैं. ब्रॉयलर की मुर्गियों की हड्डियां भी एंथ्रोपोसीन का एक संकेत हो सकती हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भोजन के लिए इनका उत्पादन बेहद बढ़ गया था.
इस बीच, पृथ्वी संभवत: छठवें सामूहिक विनाश के दौर से गुजर रही है. इसकी वजह भूमि उपयोग और जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है. पिछली बार पृथ्वी पर सामूहिक विनाश साढ़े छह करोड़ साल पहले आया था.
इसका महत्व क्या है?
पिछले युग उल्कापात, महाद्वीपीय हलचल और ज्वालामुखीय गतिविधियों जैसी घटनाओं से शुरू हुए थे. इन घटनाओं के चलते भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में पहुंच गई थी. इन युगों ने धरती पर अपने अनोखे निशान छोड़े थे और जीवन की दिशा बदल दी थी. लेकिन अब ऐसा पहली बार होगा कि एक अकेली प्रजाति की वजह से नए युग की शुरुआत होगी.
भले ही एंथ्रोपोसीन को औपचारिक रूप देने का प्रस्ताव पास नहीं हुआ. लेकिन वैज्ञानिक पहले से ही इस शब्द का उपयोग कर रहे हैं. इसके जरिए वे मानवीय गतिविधियों की वजह से होने वाले पर्यावरणीय खतरों को समझ रहे हैं.
एंथ्रोपोसीन सिर्फ एक भूवैज्ञानिक शब्द नहीं है. बल्कि यह इंसानों के जरिये धरती, इसके ईकोसिस्टम और दूसरी प्रजातियों पर डाले जा रहे असर के बारे में भी बताता है. इंसानों इसमें अपने लिए कुछ अच्छा भी खोज सकते हैं.
15वीं शताब्दी से ही विज्ञान ने मानव जाति को ब्रह्मांड के केंद्र में रखना बंद कर दिया है. निकोलस कोपरनिकस की खोज कि धरती सूर्य का चक्कर काटती है और चार्ल्स डार्विन की इवोल्यूशन की थ्योरी, दोनों ही ये बताती हैं कि इंसानों का कोई विशेष स्थान नहीं है.