जैवविविधता क्या है और क्यों इतनी अहम है?
९ दिसम्बर २०२२जब हम बायोडाइवर्सिटी यानी जैवविविधता की बात करते हैं तो हमारा इशारा, धरती पर मौजूद तमाम जीवों और जैवप्रणालियों की जीवविज्ञानी (बायोलॉजिकल) और आनुवंशिक (जेनेटिक) विविधता से होता है.
जीवों में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों के अलावा फफूंद और मिट्टी में मिलने वाले सूक्ष्मजीवी भी शामिल हैं. वे पूरी दुनिया की उन तमाम व्यापक ईकोप्रणालियों का हिस्सा हैं जो बर्फीले अंटार्कटिक, ट्रॉपिकल वर्षावनों, सहारा रेगिस्तान, मैंग्रोव वेटलैंड, मध्य यूरोप के पुराने बीच वनों और समुद्री और तटीय इलाकों की विविधता से भरा है.
ये रिहाइशें इंसानों को जीने लायक दूसरी और भी चीजें मुहैया कराती हैं जैसे कि पानी, भोजन, साफ हवा और दवा, सामूहिक रूप से इन्हें ईकोसिस्टम सेवाएं कहा जाता है. और वे प्रजातियों की विविधता की पारस्परिकता पर भी निर्भर होती हैं. अगर कोई व्यक्तिगत तत्व गायब हो जाता है, यानी कोई प्रजाति खत्म हो जाती है तो प्रकृति-प्रदत्त ये सेवाएं भी हमेशा के लिए गायब हो सकती हैं.
हमारा जीवन प्रकृति पर कैसे निर्भर है?
एल्जी यानी काई या पेड़ों के बिना, ऑक्सीजन नहीं मिलेगी. और पौधों को परागित करने वाले कीटों के बिना हमारी फसलें चौपट हो जाएंगी. दो तिहाई से ज्यादा फसलें- जिनमें कई फल, सब्जियां, कॉफी और कोकोआ शामिल हैं, कीटपतंगों जैसे कुदरती पॉलिनेटरों पर निर्भर हैं. लेकिन आज एक तिहाई कीट प्रजातियों पर गायब होने का खतरा मंडरा रहा है.
अमेरिका स्थित कंजर्वेशन इंटरनेशनल में जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता वैज्ञानिक डेव होले कहते हैं कि कुदरत जो सेवाएं हमें मुहैया कराती है उन्हीं की बदौलत हमारा वजूद बना हुआ है लेकिन हम आमतौर पर उसकी परवाह नहीं करते. डेव होले पारिस्थितिकीय आनुवंशिकी के विशेषज्ञ हैं. ईकोसिस्टम सर्विसों की अहमियत पर प्रकाश डालने वाले एक नयी स्टडी के वो सह-लेखक हैं.
होले ने डीडब्ल्यू को बताया, "सुबह सुबह जब अन्न का कटोरा हमारे सामने होता है तो हम ये नहीं सोचते कि कुदरत ने इन फसलों को पॉलिनेट करने में कितनी मदद की है जिसकी बदौलत वो अन्न तैयार हुआ है. रोजमर्रा के स्तर पर कुदरत जो हमारे लिए कर रही है, वो हमें दिखता ही नहीं है."
अध्ययन के मुताबिक, दुनिया की 70 फीसदी फसलें कुछ हद तक, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नीची जमीनों और मैंग्रोव की दलदल पर निर्भर होती हैं क्योंकि वे खाद्य फसलों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन को बाढ़ से बचाते हैं.
दुनिया भर में जैवविविधता पर तेज होता खतरा
द इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडाइवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज- आईपीबीईएस का अनुमान है कि दुनिया भर में कम से कम 80 लाख प्रजातियां मौजूद हैं. लेकिन उसने आगाह किया है कि 2030 तक करीब 10 लाख प्रजातियां गायब हो सकती हैं. जैवविविधता क्षरण की दर खतरे के निशान पर पहुंच चुकी है- हर 10 मिनट में औसतन एक प्रजाति खत्म हो रही है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, हम लोग दुनिया की छठी सामूहिक विलुप्ति के बीचोबीच पहुंच गए हैं.
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अकेले जर्मनी में 2008 से 2017 के दरमियान कीटपतंगों की संख्या में तीन चौथाई कमी आ गई है. आईपीबीईएस के मुताबिक दुनिया भर में जंगली स्तनपायी जीवों की संख्या 82 फीसदी गिर चुकी है. पर्यावरणीय संस्था डब्लूडब्लूएफ के मुताबिक जलीय पौधों और जंतुओं की स्थिति तो और भी खराब है. पिछले 50 साल में उनकी संख्या 83 फीसदी कम हो चुकी है. मध्य और दक्षिण अमेरिका में तो गिरावट 94 फीसदी की है.
होले के पर्यवेक्षणों के मुताबिक जैवविविधता के खत्म होने की दर बढ़ रही है.
प्रजातियों की विलुप्ति के जिम्मेदार इंसान
शोध भी यही कहता हैः खेती, मिट्टी की सीलिंग, और जंगलों की कटान, ओवरफिशिंग, विषैले पदार्थों के इस्तेमाल और आक्रामक प्रजातियों के विस्तार से विलुप्ति की जो दर इंसानी दखल के बिना रहनी थी, उससे 100 गुना बढ़ गई है.
संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी में कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ मरूमा म्रेमा स्पष्ट रूप से कहती हैं कि इंसान ही इसके लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इंसानी हरकतों की वजह से 97 फीसदी वैश्विक जैवविविधता नष्ट हो चुकी."
उनके आंकड़े डरावने हैं: धरती का 75% भूक्षेत्र और महासागरों का 66% क्षेत्र, 85% दलदली भूमि बर्बाद हो चुकी है या गायब हो चुकी है. और आधे कोरल रीफ खत्म हो चुके हैं. इन आंकड़ों की गिनती में वो प्लास्टिक तो शामिल ही नहीं जो धरती पर बड़े पैमाने पर बिखरा पड़ा है.
मनुष्यता का भविष्य खतरे में
जेंकेनबर्ग सोसायटी फॉर नेचर रिसर्च के महानिदेशक क्लेमेंट टोकनर कहते हैं, "हमारी कुदरती पूंजी का बढ़ता नुकसान तमाम मनुष्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है. एक बार ये पूंजी खत्म हो गई तो समझो हमेशा के लिए खत्म हो गई."
जब कोई प्रजाति ईकोसिस्टम से गायब हो जाती है तो प्रकृति का संतुलन रातोरात नहीं बिखरता है लेकिन वो बदलना शुरू हो जाता है. पूर्वी जर्मनी में हाले-येना-लाइपजिग में जर्मन सेंटर फॉर इंटिग्रेटिव बायोडाइवर्सिटी रिसर्च से जुड़े आंद्रिया पेरिनो कहते हैं, "जितना ज्यादा हम प्रजातियों की संख्या में कमी करते हैं, सिस्टम उतना ही अधिक अवरोधी होता जाता है."
कैंडी और जैम से वर्षावनों की रक्षा हो सकती है
होले कहते हैं कि जलवायु जैसे ईकोसिस्टम में ऐसे टिपिंग पॉइंट हैं जो हमारी दुनिया में तीव्र और निर्बाध बदलाव ला सकते हैं. एक मिसाल है अमेजन के वर्षावनों की. पूरी तरह साफ कर दिए जाने के बाद जंगल में जो हिस्से बचते हैं उनके लिए फिर से पनप पाना बहुत मुश्किल होता जाता है. इस तरह समूचे वर्षावन के ढहने का जोखिम भी बढ़ जाता है.
इसके बावजूद अमेजन जैसे गर्म सूखे इलाकों वाले वर्षावन दुनिया की दो तिहाई ज्ञात प्रजातियों का घर हैं. जलवायु परिवर्तन को काबू में रखने के लिहाज से तो वे बहुत ही ज्यादा जरूरी हैं.
हमारे अपने हित में है प्रकृति की सुरक्षा
मौजूदा जैवविविधता विनाश को रोकने के सामूहिक प्रयत्न के बगैर, मनुष्य जीवन की प्राकृतिक बुनियाद अप्रत्याशित दर से गायब होने लगेगी. धरती पर जीवन के सभी पहलुओं पर इसके दूरगामी नतीजे होंगे.
संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी में कार्यरत एलिजाबेथ म्रेमा का कहना है कि समस्त वैश्विक आर्थिक उत्पादन का आधा हिस्सा कुदरत पर सीधे तौर पर निर्भर है. वह कहते हैं, "हम लोग उस जैवविविधता को खत्म कर रहे हैं, जबकि हमारा जीवन, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारी सेहत सब कुछ उस पर निर्भर है."
रिपोर्टः जीनेटे स्विएंक