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अवसाद की मूल वजहों पर माथापच्ची

फ्रेड श्वालर
१२ अगस्त २०२२

मस्तिष्क में सेरोटोनिन हॉर्मोन के स्तर में कमी, आमतौर पर अवसाद की वजह मानी जाती है. लेकिन विज्ञान कहता है कि इस न्यूरोट्रांसमीटर हॉर्मोन का अवसाद से जरा भी लेनादेना नहीं. इसके क्या मायने हैं?

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तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopress/picture alliance

आपने शायद अवसाद की रासायनिक संतुलन वाली थ्योरी के बारे में सुना होगा. इसके मुताबिक दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटिर सेरोटोनिन यानी 5-एचटी के स्तरों में गिरावट की वजह से, अवसाद होता है. इस बारे में मीम्स भी बने हैं. ये सिद्धांत 1960 के दशक का है जब डॉक्टर मूड सुधारने के लिए इप्रोनियाजिड जैसी दवाएं लिखा करते थे, जो उन्हें लगता था मस्तिष्क में सेरोटोनिन की सांद्रता को बढ़ा देती थी.

तबसे यही विचार अवसाद की एक साधारण व्याख्या बन कर रह गया और उपचार भी आकर्षक रूप से साधारण ही थाः सेरोटोनिन लेवल बढ़ाने के लिए एसएसआरआई (सेलेक्टवि सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर्स) का सेवन. जानकार लंबे समय से ये जानते आए हैं कि ये सिद्धांत अतिसरलीकरण का शिकार है.

अवसाद से सेरोटोनिन का लेनादेनाः हां या ना

अब एक नयी प्रमुख समीक्षा ने आगे बढ़कर ये नतीजा निकाला है कि इस बारे में "कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है" कि सेरोटोनिन का कम स्तर, अवसाद का कारण बनता है.  इस अध्ययन के लिए पीयर रिव्यू वाले यानी समकक्ष विशेषज्ञों की समीक्षा से गुजरे, 361 वैज्ञानिक अध्ययनों से साक्ष्य जुटाए गए थे. जिनके आधार पर पाया गया कि खून में सेरोटोनिन के लेवल और अवसाद के बीच कोई संबंध नहीं है. इसी तरह, अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओ ने ये भी पाया कि अवसादग्रस्त लोगों के मस्तिष्क में सेरोटोनिन रिसेप्टरों में भी अवसाद रहित लोगों के मस्तिष्क की तुलना में कोई अंतर नहीं था.

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दिमाग के अगले हिस्से और पिछले हिस्से में छुपे हैं कई राजतस्वीर: BSIP/picture alliance

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में शोधकर्ता और परामर्शदाता मनोचिकित्सक मिखाइल ब्लूमफील्ड कहते हैं कि, "अवसाद के बहुत सारे अलग अलग लक्षण होते हैं और मैं नहीं समझता कि मैं ऐसे गंभीर वैज्ञानिकों या मनोचिकित्सकों से मिला हूं जो सोचते हों कि सेरोटोनिन में एक सामान्य सा रासायनिक असंतुलन ही अवसाद की सारी जड़ होता है." डॉ ब्लूमफील्ड इस अध्ययन में शामिल नहीं रहे हैं.

वैसे जानकार इस पर हैरान नहीं थे कि सिर्फ सेरोटोनिन के लेवल में गिरावट आ जाने से अवसाद नहीं होता है. लेकिन कई विशेषज्ञ इस नतीजे से सहमत नहीं थे सेरोटोनिन का अवसाद से बिल्कुल भी लेनादेना नहीं है. ब्लूमफील्ड कहते हैं, "इस बात की संभावना बनी हुई है कि खास किस्म के अवसाद से ग्रस्त कुछ लोगों में सेरोटोनिन में होने वाला बदलाव, उनके लक्षणों को योगदान दे रहा हो सकता है. इस रिव्यू की समस्या ये है कि इसमें अवसाद के विभिन्न प्रकारों को एक साथ एक ही जगह ठूंस दिया है यानी उसे एक ही निगाह से देखा गया है मानो वो कोई एक अकेला विकार हो, और इस तरीके का जीवविज्ञानी नजरिए से कोई मतलब नहीं है."

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अवसादनिरोधी दवाएं उपचार में उतनी असरदार नहीं?

अध्ययन ये भी बताता है कि मस्तिष्क में सेरोटोनिन के रीअपटेक को ब्लॉक कर काम करने वाली, एसएसआरआई की अवसादनिरोधी दवाएं, जैसे कि प्रोजाक, अवसाद के इलाज में इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए. अध्ययन में उस शोध की ओर इशारा किया गया है कि जिसमें पाया गया था कि अवसादनिरोधी दवाएं, अवसाद के इलाज में बहुत असरदार नहीं होती हैं, खासतौर पर उन लोगों मे जो औसत या हल्के अवसाद से जूझ रहे होते हैं. अध्ययन के लेखक कहते हैं कि रासायनिक असंतुलन वाले सिद्धांत में भरोसा लोगों को इलाज रोकने के लिए हतोत्साहित कर सकता है और इस चक्कर में पूरी जिंदगी इन दवाओं पर निर्भर बन जाने का खतरा भी रहता है.

ब्रिटेन में यूसीएल जेनेटिक्स इन्स्टीट्यूट में मानद् प्रोफेसर डेविड करटिस ने इस निष्कर्ष को चुनौती देते हुए कहा है कि ये महत्वपूर्ण है कि गंभीर अवसाद से जूझ रहे लोगों को समुचित उपचार हासिल करने से रोका न जाए. करटिस कहते हैं, "ये बिल्कुल साफ है कि अवसाद से ग्रस्त लोगों का मस्तिष्क कुछ असामान्य व्यवहार करता है, भले ही हम अभी तक ये नही जानते कि वो क्या है, औरे ये कि अवसादनिरोधी दवाएं गंभीर अवसाद के इलाज में असरदार होती हैं."

अवसाद की वजह क्या है?

जैसा कि नये अध्ययन का दावा है, अगर सेरोटोनिन का अवसाद से कोई संबंध नहीं तो फिर वो किससे होता है? ये मेटा अध्ययन इस बारे में कोई वैकल्पिक स्पष्टीकरण मुहैया नहीं कराता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अवसाद, बहुत सारे कारणों से पैदा होने वाली एक पेचीदा स्थिति है. हैरानी की बात नहीं कि, जीवन की नकारात्मक घटनाएं और उनसे निपटने के तरीकों का अवसाद पर एक बड़ा असर पड़ता है. तनाव को एक प्रमुख ट्रिगर समझा जाता है. 

जर्मनी के म्युनिख में माक्स-प्लांक इन्स्टीट्यूट फॉर साइकेट्री में मनोचिकित्सक पैट्रिशिया फोनसेका ने डीडब्लू को बताया, "जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का अवसाद पर गहरा असर होता है. लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य, आनुवंशिक कारणों का प्रभाव भी है. किसी व्यक्ति में एक खास किस्म के आनुवंशिक झुकाव होने से, तनावपूर्ण घटनाएं अवसाद को भड़का सकती हैं."

मौजूदा सिद्धांत, सेरोटोनिन जैसे एकल न्यूरोट्रांसमीटरों के बारे में व्याख्याओं से आगे बढ़ चुके हैं. इसके उलट उनका ध्यान अब इस बात पर है कि भावनाओं और तनाव को समझने वाले मस्तिष्क में पेचीदा नेटवर्कों को, अवसाद आखिर कैसे बदल देता है.  ऐसे सिद्धांतों में मस्तिष्क के कुछ इलाकों की मुख्य भूमिकाओं को शामिल किया गया है जैसे कि ऐमिग्डाल यानी प्रमस्तिष्कखंड और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स यानी ललाट खंड का अग्र भाग. भावनाओं की प्रोसेसिंग ऐमिग्डाल में होती है, अर्थ निकालने के लिए उन भावनाओं का आकलन प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में होता है. शोध दिखाता है कि अवसाद से पीड़ित लोगों में ऐमिग्डाल का आकार घटा हुआ होता है और, ऐमिग्डाल और कॉर्टेक्स के बीच कनेक्टिविटी भी कमजोर रहती है.

जानकारों का मानना है कि अवसाद तब होता है जब कॉर्टेक्स भावनाओं का ज्यादा नकारात्मक ढंग से आकलन करता है, खासतौर पर उन भावनाओं का, जो बुरी स्मृतियों से जुड़ी घटनाओं से भड़कती हैं. तनावपूर्ण स्थितियों में खुद को ढालने की मस्तिष्क की क्षमता को प्रभावित कर, दीर्घ या स्थायी तनाव, इन नेटवर्को पर आगे भी असर डाल सकता है. बदले में, इस कारण पहले से मौजूद असहायताएं या कमजोरियां खुलने लगती हैं या जाहिर हो जाती हैं.

अवसाद के इलाज के नये तरीकों का असर

अवसादनिरोधी दवाओं के मिलेजुले प्रभाव को देखते हुए, वैज्ञानिक अवसाद के इलाज के नये तरीकों की पहचान के लिए उत्सुक रहे हैं. अवसाद के इलाज में केटामिन और साइलोसाइबिन मशरूमों जैसी मन-बदल दवाओं के फायदे दिखने लगे हैं. हाल के एक अध्ययन में साइलोसाइबिन, अवसादनिरोधी दवा एस्किटालोप्राम के मुकाबले ज्यादा असरदार पाई गई थी. 

ब्रेन इमेजिंग से जुड़े अध्ययनों में पाया गया है कि ये दवाएं, मस्तिष्क में कनेक्टिविटी यानी संयोजकता को बढ़ाने में मदद करती हैं. माना जाता है कि ये पदार्थ, पुरानी भावनाओं को नयी रोशनी में फिर से परखने के लिए लोगों की मदद करते हैं, साथ ही साथ अवसादी प्रवृत्तियों को कम करने के लिए मस्तिष्क के तार फिर से जोड़ते हैं.  

डिप्रेशन के इलाज में साइलोसाइबिन मशरूमों जैसी मन-बदल दवाओं के फायदे दिखने लगे हैं
डिप्रेशन के इलाज में साइलोसाइबिन मशरूमों जैसी मन-बदल दवाओं के फायदे दिखने लगे हैंतस्वीर: Martina Kovacova/PantherMedia/IMAGO

फोनसेका ने अवसाद के इलाज में गैरऔषधीय उपचारों के प्रभावों पर भी जोर दिया है. वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि दिमागी चौकन्नेपन, स्वीकार्यता और तनाव में कटौती जैसे कौशलों की मदद से, हमें अवसाद को रोकने पर काम करना होगा. इसमें साइकोथेरेपी भी शामिल की जा सकती है जिसमें लोगों के समक्ष तनाव और अवसाद से ज्यादा बेहतर ढंग से निपटने का लक्ष्य रहता है."

फोनसेका कहती हैं कि थेरेपी में लोगो के पास अवसाद भड़काने वाले तत्वों की पहचान करने का समय होता है. वे अपनी बीमारी के बारे में जान सकते हैं और असहाय स्थिति में फंसने के बजाय, जिंदगी के मुश्किल और पेचीदा हालातों से निपटने में सशक्त बन सकते हैं.