रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में शादी की धूम..
रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों से आम तौर दर्द भरी कहानियां ही मिलती हैं. लेकिन दुख और तकलीफों के बीच खुशी के पल भी आते हैं. ऐसा ही मौका था सद्दाम हुसैन और शौफीका बेगम की शादी.
हम दोनों, दो प्रेमी..
सद्दाम की उम्र 23 साल है जबकि शौफीका बेगम 18 साल की है. दोनों इस समय बांग्लादेश के कोक्स बाजार में शरणार्थी शिविर में रहते हैं और हाल ही में शादी के बंधन में बंधे हैं.
पहले से थी जान पहचान
म्यांमार से भागने से पहले ही दोनों एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे से शादी करने चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना म्यांमार में तो नहीं, लेकिन कुतुपालोंग शरणार्थी शिविर में पूरा हुआ.
घर गृहस्थी
दोनों का संबंध म्यांमार में माउंगदाओ इलाके के फोरिया बाजार गांव से था, जिसे वहां की सेना ने जला दिया. अब शरणार्थी शिविर का यही कामचलाऊ सा तंबू उनकी घर गृहस्थी है.
सद्दाम की दुकान
सद्दाम शिविर में ही अपनी परिवार की एक छोटी सी दुकान पर बैठता है. सद्दाम का परिवार म्यांमार में भी दुकान चलाता था. उनके गांव में लगभग एक हजार दुकानें थी इसलिए उसके नाम में बाजार आता है.
शादी की तैयारी
शादी से पहले दुल्हे राजा को तैयार किया जा रहा है. म्यांमार से भागे तो कई हफ्तों तक सद्दाम को शौफीका का कुछ अता पता नहीं चला. लेकिन उनकी किस्मत में मिलना लिखा था और वे कुतुपालोंग के शिविर में एक दूसरे मिले.
सजना है मुझे..
शौफीका के हाथों पर सद्दाम के नाम की मेहंदी का सुर्ख रंग. शादी वाले दिन शौफीका को एक अलग टेंट में बिठाया गया, जहां उसकी कई महिला रिश्तेदार उसके साथ थीं.
कैंप की जिंदगी
कॉक्स बाजार के इस शरणार्थी शिविर में लगभग 6.6 लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें बहुत से अगस्त में म्यांमार में छिड़ी हिंसा के बाद भागकर यहां पहुंचे. सद्दाम और शौफीका के परिवार अक्टूबर में यहां पहुंचे.
मुझे भी चाहिए...
सद्दाम और शौफीका की शादी के मौके पर सबको को मुफ्त खाना बांटा गया जिसे लेने के लिए कैंप के बच्चों में होड़ मच गई. वैसे भी शरणार्थी शिविर में रहने वालों को कहां रोज रोज ऐसा खाना मिलता है.
दस्तरखान
मेहमानों के लिए बैठ कर खाने का अलग से इंतजाम किया गया था जहां पारंपरिक लजीज खाना परोसा गया. इसके लिए एक बड़ा सा टेंट तैयार किया गया जिसमें बैठकर एक साथ 20 लोग खाना खा सकते थे.
डांस वांस
नाच गाने के बिना कैसे शादी हो सकती है. इसके लिए एक प्रोफेशनल डांसर को बुलाया गया जिसने अपने दो साथियों के साथ रंग जमा दिया. वहां मौजूद लोगों की तालियां बता रही थीं कि उन्हें कितना मजा आ रहा है.
कबूल है
पांरपरिक तरीके से सद्दाम और शौफीका की शादी हुई. सभी ने हाथ उठा कर उनकी खुशहाल जिंदगी की कामना की. हालांकि दर दर भटकते रोहिंग्या लोगों के लिए खुशी एक मरीचिका है. ना उनके रहने का कोई ठिकाना है और न ही जिंदगी का.
लाडो चली..
फिर आ पहुंचा विदाई का समय. यूं तो शौफीका के टेंट से सद्दाम का टैंट बहुत दूर नहीं था, लेकिन वह माता पिता के घर से अपने पति के घर जा रही थी. भावनात्मक रूप से यह बहुत अहम सफर होता है.
भविष्य अनिश्चित
शरणार्थी शिविर में रहने वाला यह नया जोड़ा जानता है कि उनका भविष्य अनिश्चित है. इसीलिए उन्हें परिवार बढ़ाने की कोई जल्दबाजी नहीं है. सद्दाम कहते हैं कि यह तो तय हो जाए कि हम यहीं रहेंगे या फिर वापस म्यांमार में.
नागरिकता का सवाल
सद्दाम का कहना है कि वह तभी म्यांमार जाना चाहेगा जब वहां की सरकार नागरिकता दे. म्यांमार ने रोहिंग्या लोगों को आज तक अपना नागरिक नहीं माना है और इसीलिए उन्हें उन्हें अपनी नागरिकता नहीं दी है.
आम जिंदगी
यह तस्वीर शादी के कुछ दिन बात की है, जिसमें शौफीका अपने टेंट में खाना पका रही है. सफर मुश्किल हो सकता है लेकिन सद्दाम और शौफीका ने एक नई शुरुआत की तरफ कदम बढ़ा दिया है.