ज्ञानवापी मस्जिद में नहीं रुकेगी वीडियोग्राफी
१२ मई २०२२मामला कुछ हिंदुओं द्वारा बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने की अनुमति मांगने से जुड़ा हुआ है. इस याचिका पर फैसला देने के लिए अदालत ने मस्जिद में सर्वेक्षण कर यह मालूम करने का आदेश दिया था कि वहां हिंदू देवी-देवताओं के लिए पूजा का स्थल मौजूद है या नहीं.
कुछ लोग मानते हैं कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में यह मस्जिद 2,500 साल पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर को आंशिक रूप से तुड़वा कर बनवाई थी. मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पीछे आज भी साल में एक बार हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाती है.
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17 मई तक मांगी रिपोर्ट
ताजा मामले में याचिकाकर्ताओं की मांग है कि उन्हें पूरे साल बिना किसी अड़चन के मस्जिद के अंदर पूजा करने की अनुमति दी जाए. याचिका पर फैसला करने के लिए अदालत ने मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया था और इसकी निगरानी के लिए वकील अजय कुमार मिश्रा को कमिश्नर नियुक्त किया था.
लेकिन मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी पर आपत्ति व्यक्त की थी और मिश्रा को पक्षपातपूर्ण भी बताया था. अब अदालत ने अपने ताजा फैसले में वीडियोग्राफी पर की गई आपत्ति को खारिज कर दिया है. अदालत ने आदेश दिया है कि 17 मई तक पूरी मस्जिद का सर्वे पूरा कर लिया जाए और अदालत को रिपोर्ट दे दी जाए.
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कमिश्नर को बदलने की अपील को भी अदालत ने खारिज कर दिया, लेकिन दो और वकीलों को कमिश्नर नियुक्त कर दिया. वकील अजय सिंह और विशाल सिंह अजय कुमार मिश्रा के साथ मिल कर सर्वे का काम पूरा कराएंगे. अदालत ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी और मुख्य सचिव को आदेश भी दिया है कि वो पूरे सर्वेक्षण की देखरेख करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि काम में कोई बाधा ना आए.
जिला प्रशासन के अधिकारियों को कहा गया है कि अगर कोई भी सर्वेक्षण के काम में बाधा डालता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और कानूनी कार्रवाई की जाए. इससे पहले जब मस्जिद में वीडियोग्राफी की कोशिश की गई थी तब मस्जिद के बाहर काफी हंमागा हो गया था और मस्जिद समिति ने वीडियो बनाने की इजाजत नहीं दी थी.
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ताजमहल पर याचिका खारिज
इस बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ताज महल के बंद पड़े कमरे खुलवाने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने आदेश में यह भी कहा कि ताज महल के "असली इतिहास" पर शोध करने के लिए कोई समिति नियुक्त नहीं की जाएगी.
अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जिस पर अदालत कुछ कह सके. याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे शोध के लिए मांग करने का याचिकाकर्ता को कोई अधिकार नहीं है.