अमेरिकी विश्वविद्यालयों से सीखकर मजबूत हुआ चीनः रिपोर्ट
२४ सितम्बर २०२४पिछले एक दशक में अमेरिकी विश्वविद्यालयों और चीन के बीच की साझेदारियों में अमेरिका ने करोड़ों डॉलर खर्चे, जिससे चीन को महत्वपूर्ण तकनीकें विकसित करने में मदद मिली है. अब अमेरिका को डर है कि इस तकनीक का इस्तेमाल चीन में सैन्य उद्देश्यों के लिए हो सकता है. यह दावा अमेरिकी कांग्रेस के रिपब्लिकन सदस्यों द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी करदाताओं के पैसे ने चीन की तकनीकी प्रगति और सैन्य आधुनिकीकरण में योगदान दिया है. ऐसा तब हुआ जब अमेरिकी शोधकर्ताओं ने हाइपरसॉनिक हथियार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और परमाणु तकनीक जैसे क्षेत्रों में अपने चीनी समकक्षों के साथ काम किया.
यह रिपोर्ट सोमवार को ‘हाउस सिलेक्ट कमेटी ऑन द चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी' और ‘हाउस एजुकेशन एंड वर्कफोर्स कमेटी' के रिपब्लिकन सदस्यों द्वारा जारी की गई. इसमें अमेरिका के वैज्ञानिक सहयोग के बारे में राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों पर चर्चा की गई है. रिपोर्ट में सुरक्षा उपायों को और मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया गया है.
समितियों ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा की सालभर की जांच की. इस जांच में टेक्नॉलोजी पर खास ध्यान दिया गया. रिपोर्ट कहती है कि जबकि अमेरिकी विश्वविद्यालय गुप्त अनुसंधान परियोजनाओं में शामिल नहीं होते हैं, दुनिया में सबसे अच्छा माना जाने वाला उनका काम सैन्य क्षमताओं में इस्तेमाल होने की संभावना रखता है.
इस महीने अमेरिकी संसद के निचले सदन ने लगभग दो दर्जन चीन-संबंधी विधेयकों को मंजूरी दी, जिनका मकसद तकनीकी क्षेत्र में चीन से प्रतिस्पर्धा करना है. हालांकि इन विधेयकों को सीनेट की मंजूरी मिलनी बाकी है लेकिन इनमें चीन में बने ड्रोन पर प्रतिबंध, अमेरिकी बाजार में चीन से जुड़ी बायोटेक कंपनियों को सीमित करना और चीन की अत्याधुनिक अमेरिकी कंप्यूटर चिप्स तक पहुंच को कम करना शामिल है. चीनी और अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं में होड़ पिछले सालों में तेज हुई है.
चीन को रोकने के उपाय
चीन को रोकने के लिए अमेरिका में कई अन्य उपाय सुझाए गए हैं. जैसे अमेरिकी कॉलेजों पर चीन के प्रभाव को कम करने और चीन की जासूसी और अमेरिकी विश्वविद्यालयों व रिसर्च इंस्टिट्यूट में बौद्धिक संपदा की चोरी को रोकने के लिए ट्रंप-युग के कार्यक्रम को फिर से शुरू करने की योजनाएं शामिल हैं. हालांकि, ऐसी कोशिशों ने नस्ली भेदभाव और दोनों देशों के बीच सहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को बनाए रखने की चिंता भी बढ़ाई है.
ट्रंप प्रशासन ने चीन की जासूसी रोकने के नाम पर एक योजना शुरू की थी, जिसे 2022 में बंद कर दिया गया था. रिपोर्ट कहती है कि इस योजना के कारण अमेरिका और चीन के बीच सहयोग में भी गिरावट आई है.
इस साल की शुरुआत में ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस' द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने कहा था कि वह अमेरिकी स्कूलों में चीनी छात्रों के आर्ट्स और सोशल स्ट्डीज जैसे विषयों की पढ़ाई का स्वागत करेंगे, लेकिन "पार्टिकल फिजिक्स" की नहीं.
वॉशर कॉलेज में समाजशास्त्र की सहायक प्रोफेसर एबीगेल कॉपलिन ने कहती हैं कि दोनों देशों के बीच रिसर्च में सहयोग रोकने का काफी नुकसान होता है क्यों कि ये साझेदारियां समझ को बढ़ावा देती हैं और संबंधों को स्थिर करने में मदद करती हैं.
उन्होंने कहा, "जाहिर है, अमेरिकी फंडिंग का इस्तेमाल चीन की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन यह चर्चा भी होनी चाहिए कि कौन सी चीजें राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नहीं हैं और अत्यधिक सुरक्षा उपायों के नुकसान क्या हो सकते हैं."
कॉपलिन ने कहा कि "व्यक्तिगत साझेदारियों में कमी अमेरिका-चीन संबंधों को बिगाड़ने में योगदान दे रही है." सोमवार को जारी रिपोर्ट में रक्षा या खुफिया विभाग से फंडिंग पाने वाले लगभग 8,800 ऐसे शोधपत्रों की पहचान की गई जिनमें अमेरिकी और चीनी शोधकर्ताओं ने साथ मिल कर काम किया.
इनमें से कई चीन के रक्षा अनुसंधान और औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े थे. रिपोर्ट में कहा गया कि इस तरह का शोध "उस विदेशी प्रतिद्वंद्वी देश को पिछले दरवाजे से पहुंच दे रहा है जिसकी आक्रामकता से सुरक्षा के लिए ये क्षमताएं आवश्यक हैं."
चीन में तकनीकी विकास और खोजों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में चीन ने किसी भी देश से ज्यादा पेटेंट दाखिल किए हैं.
संसद की जांच ने उन संयुक्त संस्थानों की भी पहचान की है जो अमेरिकी और चीनी विश्वविद्यालयों के बीच बने हुए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये संस्थान "महत्वपूर्ण अमेरिकी तकनीकों और विशेषज्ञता के लेन-देन के लिए बने एक सिस्टम को छिपाते हैं."
संस्थानों की सफाई
इन संस्थानों के माध्यम से, अमेरिकी शोधकर्ता और वैज्ञानिक चीन में जाकर चीनी विद्वानों के साथ काम करते हैं और चीनी छात्रों को प्रशिक्षित करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि "यह उनके शोध विशेषज्ञता के फायदे हासिल करने के लिए एक सीधी पाइपलाइन बन जाते हैं."
रिपोर्ट में जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का उदाहरण दिया गया है जिसने अपने संयुक्त ‘जॉर्जिया टेक शेनजेन इंस्टिट्यूट' में काम किया है. चीन में अपने काम का बचाव करते हुए इंस्टिट्यूट ने कहा कि उनका काम शिक्षा पर केंद्रित था, न कि शोध पर.
हालांकि, जॉर्जिया टेक ने 6 सितंबर को घोषणा की कि वह तियानजिन विश्वविद्यालय और शेनजेन सरकार के साथ संयुक्त संस्थान में अपनी भागीदारी खत्म कर देगा. जॉर्जिया टेक ने कहा कि अमेरिकी वाणिज्य विभाग द्वारा 2020 में तियानजिन विश्वविद्यालय पर गोपनीय व्यापारिक जानकारियों की चोरी का आरोप लगाए जाने के बाद यह साझेदारी "अब व्यावहारिक नहीं" रही.
संसदीय रिपोर्ट में त्सिंगहुआ-बर्कले शेनजेन इंस्टिट्यूट का भी जिक्र है जिसे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले और चीन के त्सिंगहुआ विश्वविद्यालय ने 2015 में शेनजेन शहर में खोला था. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसके शोधकर्ता "सिर्फ ऐसे शोध में शामिल होते हैं जिनके परिणाम दुनिया भर में खुले तौर पर प्रसारित होते हैं" और स्कूल "त्सिंगहुआ-बर्कले इंस्टिट्यूट में बर्कले के कर्मचारियों द्वारा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किए गए किसी शोध से अनजान" है. यूनिवर्सिटी ने यह भी कहा कि वह चीन के साथ इस साझीदारी से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू कर रही है.
वीके/सीके (एपी)