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दक्षिण एशिया के तीन-चौथाई बच्चे अत्यधिक गर्मी की चपेट में

१० अगस्त २०२३

संयुक्त राष्ट्र ने दक्षिण एशिया में तीन-चौथाई बच्चों को प्रभावित करने वाले खतरनाक उच्च तापमान के खतरों के बारे में चेतावनी दी है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा है कि इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है.

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कोलकाता
भीषण गर्मी का असर बच्चों पर भी तस्वीर: Satyajit Shaw/DW

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक चेतावनी बयान में कहा कि इस समय दुनिया में सबसे अधिक तापमान दक्षिण एशिया में है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तीव्र हो रहे हैं, असामान्य रूप से उच्च तापमान का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है.

यूनिसेफ का अनुमान है कि क्षेत्र में 18 साल से कम उम्र के 76 प्रतिशत यानी लगभग 46 करोड़ बच्चे अत्यधिक उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में रहते हैं. जबकि वैश्विक स्तर पर तीन में से एक बच्चा ही प्रभावित है.

दक्षिण एशिया के लिए यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक संजय विजेसेकेरा ने कहा, "वैश्विक तापमान उबाल पर है और आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखा रहे हैं कि दक्षिण एशिया में लाखों बच्चों का जीवन और कल्याण, ताप लहरों और उच्च तापमान के कारण जोखिम में है."

दक्षिण एशिया के बच्चे जोखिम पर

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव और पाकिस्तान में बच्चे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से "सबसे अधिक जोखिम" में हैं. एक अनुमान के मुताबिक इन देशों में साल के कम से कम 83 दिन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे अपने शरीर को इतने उच्च तापमान के अनुरूप ढालने में सक्षम नहीं होते हैं और उनमें जलवायु परिवर्तन के साथ अपने शरीर के तापमान को समायोजित करने की क्षमता नहीं होती है.

46 करोड़ बच्चे अत्यधिक उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में रहते हैं
46 करोड़ बच्चे अत्यधिक उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में रहते हैंतस्वीर: Ravi Batra/ZUMA Press Wire/picture alliance

विजेसेकेरा के मुताबिक, ''छोटे बच्चे गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकते. आने वाले वर्षों में ये बच्चे अधिक से अधिक बार और अधिक तीव्र गर्मी की लहरों के संपर्क में आएंगे."

जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्लोबल वार्मिंग ने हीटवेव को अधिक गर्म, लंबा और अधिक बार होने वाला बना दिया है, साथ ही तूफान और बाढ़ जैसी अन्य मौसम की चरम स्थितियों को भी तेज कर दिया है.

तपिश से कैसे लड़ रहे हैं कुछ शहर

वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया पहले से ही हानिकारक गैसों के उत्सर्जन के कारण कई समस्याओं का सामना कर रही है और इस दशक में कार्बन प्रदूषण को काफी हद तक कम करना होगा नहीं तो भविष्य में स्थिति और भी खराब हो जाएगी.

पिछले महीने ग्लोबल वार्मिंग के चलते भीषण गर्मी ने यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के कई हिस्सों को बुरी तरह प्रभावित किया. इसके अलावा, जंगल की आग ने पूरे कनाडा और दक्षिणी यूरोप के कुछ हिस्सों को झुलसा दिया. संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ मॉनिटर ने बताया कि जुलाई इतिहास में सबसे गर्म महीना था. उन्होंने चेतावनी दी कि यह दुनिया के जलवायु भविष्य की एक झलक है.

एए/वीके (एपी,रॉयटर्स)