वैज्ञानिकों को मिला रुई के फाहे जैसा गुदगुदा ग्रह
१५ मई २०२४वैज्ञानिकों को एक नया बाह्य ग्रह यानी एग्जोप्लेनेट मिला है, जो आकार में बृहस्पति से भी बड़ा है. बृहस्पति की तरह यह भी एक गैसीय ग्रह है. हमारे सौरमंडल में बृहस्पति के अलावा, शनि, यूरेनस और नेपच्यून भी गैसीय ग्रह हैं.
मंगलवार को वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने इस ग्रह की खोज की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह एग्जोप्लेनेट गैसीय ग्रह जरूर है लेकिन इतना घना नहीं है जितने कि हमारे सौर मंडल के गैसीय ग्रह हैं. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि यह रुई के फाहे जैसा है.
मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के खालिद बरकूई इस वैज्ञानिक दल के प्रमुख हैं. उन्होंने बताया, "मूल रूप से यह एक मुलायम ग्रह है क्योंकि ठोस पदार्थों के बजाय हल्की गैसों से बना है."
वास्प-193बी
इस ग्रह को वास्प-193-बी (WASP) नाम दिया गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रहों के गैर-पारंपरिक निर्माण और विकास के अध्ययन में वास्प जैसे ग्रह बहुत लाभदायक साबित हो सकते हैं. इस ग्रह की खोज की पुष्टि पिछले साल हो गई थी लेकिन पृथ्वी पर मौजूद शक्तिशाली टेलीस्कोप के जरिए इसकी दोबारा पुष्टि करने में वक्त लग गया.
इस बारे में एक शोध पत्र इसी हफ्ते "नेचर एस्ट्रोनॉमी" पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. शोध के मुताबिक यह ग्रह मुख्यतया हाइड्रोजन और हीलियम से बना है. यह पृथ्वी से 1,200 प्रकाश वर्ष दूर है. वैज्ञानिक कहते हैं कि भार और आकार के लिहाज से यह अब तक खोजा गया दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है.
यह बृहस्पति से लगभग डेढ़ गुना बड़ा है लेकिन इसका भार उसके मुकाबले 0.139 फीसदी ही है. यह 6.2 दिनों में अपनी कक्षा का चक्कर लगा लेता है. बरकूई कहते हैं कि केपलर-51डी के बाद यह दूसरा सबसे कम घनत्व वाला ग्रह है लेकिन केपलर इसके मुकाबले बहुत छोटा है.
कैसे चला पता?
एग्जॉटिक (EXOTIC) लैबोरेट्री में पोस्ट-डॉक्टरेट कर रहे बरकूई ने कहा, "अब तक 5,000 से ज्यादा बाह्य ग्रह खोजे जा चुके हैं लेकिन वास्प का घनत्व उसे बाकी सबसे अनूठा बनाता है. अगर हम यह भी मान लें कि इस ग्रह का केंद्रीय भाग खाली है, तो भी इतने कम घनत्व वाले ग्रह का होना अब तक उपलब्ध मानकों के आधार पर संभव नहीं है."
वास्प को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसे सबसे पहले वाइड एंगल सर्च फॉर प्लेनेट्स (WASP) नामक वैज्ञानिकों के एक संगठन द्वारा देखा गया था. यह संगठन दुनियाभर के अकादमिक संस्थानों ने मिलकर बनाया है, जो दो रोबोटिक ऑब्जरवेटरी चलाते हैं. इनमें से एक उत्तरी गोलार्ध में है और दूसरी दक्षिणी गोलार्ध में.
इन दोनों जगहों पर विशाल टेलीस्कोप लगे हैं जिनमें वाइड एंगल लेंस करोड़ों सितारों से आने वाली रोशनी का आकलन करते हैं. 2006 से 2008 और फिर 2011 से 2012 के बीच जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि वास्प-193बी से आने वाली रोशनी कम-ज्यादा हो रही थी.
जब रोशनी के कम होने की अवधि की गणना की गई तो पाया गया कि रोशनी कम होने की वजह यह थी कि यह ग्रह अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहा था. इसी वजह से हर 6.25 दिनों में इसकी रोशनी कम हो रही थी.
विवेक कुमार (एपी)