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कानून और न्यायभारत

कोर्ट: तीन महीने के भीतर केंद्रीय एजेंसियों में लगे सीसीटीवी

८ मई २०२३

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्रीय जांच एजेंसियों और पुलिस स्टेशनों द्वारा सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए जाने पर टिप्पणी की है.

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि यह कितना 'निराशाजनक' है कि कई एजेंसियों ने अदालत के आदेश का पालन करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस थानों और केंद्रीय एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने को लेकर 2020 में एक आदेश पारित कर केंद्र सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकारों को इस पर अमल करने को कहा था. लेकिन आदेश जारी होने के इतने समय बाद भी कैमरे नहीं लगाए जाने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की.

अब ताजा निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के अपने दिसंबर 2020 के फैसले के निर्देशों का पालन करने के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने की समय सीमा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों और विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ऐसा करने को कहा है.

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने निराशा व्यक्त की कि कई एजेंसियों ने अदालत के आदेश का पालन करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. अदालत ने कहा कि सात जांच एजेंसियों में से केवल तीन ने निर्देशों का पालन किया है.

कैमरे लगाने का आदेश दे चुका है कोर्ट

दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट के जज रोहिंटन फली नरीमन की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने विशेष रूप से केंद्र सरकार से सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), डायरेक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) और सीरियस फ्रॉड इनवेस्टीगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) के कार्यालयों समेत ऐसी जांच एजेंसियों के दफ्तर में सीसीटीवी और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने को कहा था जिनके पास पूछताछ और गिरफ्तारी की शक्ति है.

अदालत ने पाया कि केवल चार जांच एजेंसियों ने आदेश के अनुपालन की दिशा में गंभीर कदम उठाए हैं. अदालत ने यह भी कहा कि केवल चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बजटीय आवंटन करके और सीसीटीवी कैमरे लगाकर आदेश का पूरी तरह से पालन किया है. ये राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लद्दाख, मिजोरम और गोवा.

हिरासत में यातना के आरोपों की जांच में मदद

साल 2020 में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की एक बेंच ने थानों में सीसीटीवी लगाने का अपना फैसला परमवीर सिंह सैनी की याचिका पर दिया था. सैनी ने अपनी याचिका में गवाहों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा था कि थानों के बाहरी हिस्से में लगने वाले सीसीटीवी कैमरे नाइट विजन वाले होने चाहिए और साथ ही सरकार से कहा कि जिन थानों में बिजली और इंटरनेट नहीं वहां वे यह सुविधा उपलब्ध कराएं. कोर्ट ने कहा सौर/पवन ऊर्जा समेत बिजली मुहैया कराने के किसी भी तरीके का उपयोग करके जितनी जल्दी हो सके बिजली दी जाए.

बेंच ने अपने आदेश में कहा था, "हिरासत में पूछताछ के दौरान आरोपी के घायल होने या मौत होने पर पीड़ित पक्ष को शिकायत करने का अधिकार है. सीसीटीवी फुटेज से ऐसी शिकायतों की जांच में आसानी होगी."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालतें हिरासत में टॉर्चर के आरोप लगाए जाने पर सीसीटीवी फुटेज मंगाकर आरोपों की सच्चाई की जांच कर सकेंगी.