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राज्य चाहें तो दे सकते हैं समलैंगिक शादी की इजाजत

१८ अक्टूबर २०२३

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय कानून के अभाव में राज्य विधान सभाएं चाहें तो समलैंगिक शादियों को मान्यता दे सकती हैं. लेकिन कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके जैसी पार्टियों ने अभी तक चुप्पी बनाई हुई है.

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भारत में एक प्राइड मार्च में दिखाया गया एक पोस्टरतस्वीर: Debsuddha Banerjee/ZUMAPRESS/picture alliance

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से समलैंगिक विवाहों की इजाजत ना देते हुए विषय को सिर्फ संसद के ही नहीं बल्कि राज्यों की विधान सभाओं के पाले में भी डाल दिया है. अदालत ने कहा है कि जब तक संसद इस विषय पर कोई कानून नहीं बना लेती तब तक विधान सभाएं अपने कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं.

पांच जजों की पीठ ने समलैंगिक जोड़ों के शादी करने के अधिकार को मान्यता देने से इनकार तो कर दिया लेकिन पीठ के बहुमत और अल्पमत दोनों ही फैसलों में यह कहा गया है कि संविधान शादी से संबंधित कानून बनाने की इजाजत संसद के साथ साथ राज्यों की विधान सभाओं को भी देता है.

राज्यों के पास कई विकल्प

न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति हीमा कोहली ने अपने बहुमत के फैसले के अंत में कहा कि राज्य चाहें तो शादी और पारिवारिक मामलों से संबंधित सभी कानून को जेंडर न्यूट्रल बना सकते हैं या क्वीर समुदाय को शादी का अधिकार देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम जैसा कोई नया कानून जेंडर न्यूट्रल शब्दावली में बना सकते हैं.

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जजों ने यह भी कहा कि राज्य सिविल यूनियन की इजाजत देने के लिए एक कानून भी बना सकते हैं या डोमेस्टिक पार्टनरशिप के लिए भी कानून ला सकते हैं. कुल मिलाकर राज्यों को यह संदेश दिया गया है कि केंद्रीय कानून के अभाव में समलैंगिक शादी की अनुमति देने के लिए उनके पास भी कई विकल्प मौजूद हैं.

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कॉल ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई और अपना अल्पमत का फैसला भी दिया.

इस फैसले में भी स्पष्ट कहा गया है कि शादी से संबंधित कानून बनाने का अधिकार संविधान की कंकरेंट सूची के तहत दिया गया विषय है, इसलिए संसद और राज्य विधान सभा दोनों को इससे संबंधित कानून लाने का अधिकार है.

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यानी राज्य सरकारें चाहें तो अपने अपने क्षेत्राधिकार में समलैंगिक विवाह को अनुमति देने के लिए कानून ला सकती हैं. अब सवाल उठता है कि क्या कोई राज्य सरकार ऐसा करना चाहती है?

अभी तक किसी भी राज्य सरकार का इस सवाल पर बयान तो नहीं आया है, लेकिन कम से कम बीजेपी द्वारा शासित राज्यों के रुख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी केंद्रीय स्तर पर तो समलैंगिक विवाह के पक्ष में नहीं है. बीजेपी इस समय अपने दम पर या गठबंधन में कम से कम 16 राज्यों में सत्ता में है.

विपक्ष की 20 से भी ज्यादा पार्टियां 11 राज्यों में सत्ता में हैं, लेकिन इन पार्टियों ने अभी इस विषय पर चुप्पी बनाई हुई है. कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके आदि जैसी पार्टियों ने अभी तक इस विषय पर अपना पक्ष साफ नहीं किया है. ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि राज्य सरकारों की समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए कानून लाने में रूचि है या नहीं.