जर्मनी में भेदभाव झेलते रोमा और सिंती
२० सितम्बर २०२३एंटीजिग्निज्म रिपोर्टिंग एंड इंफॉर्मेशन सेंटर (एमआईए) जर्मनी में रोमा लोगों के साथ होने वाले भेदभाव की स्पष्ट तस्वीर चाहता है. रोमा जिप्सियों के साथ होने भेदभाव और उनके प्रति पूर्वाग्रह को एंटीजिग्निज्म कहा जाता है. जर्मन सरकार द्वारा वित्तपोषित पर्यवेक्षक संस्था, एमआईए ने अपनी 2022 की जानकारियां, सोमवार को पेश की. रिपोर्ट में संस्था ने इस मुद्दे पर सूचनाओं के "सिस्टमैटिक" संग्रह की मांग की है.
इस मुद्दे पर पहली बार आई इस तरह की रिपोर्ट की प्रस्तावना में सेंट्रल काउंसिल ऑफ जर्मन सिंती एंड रोमा के चेयरपर्सन रोमानी रोज लिखते हैं, "एमआईए, एंटीजिग्निज्म अपराधों और घटनाओं की बड़ी अनदेखी पर प्रकाश डाल रहा है."
रिपोर्ट में रोमा और सिंती समुदाय के खिलाफ हुई 621 घटनाओं का जिक्र किया गया है. इनमें से 119 में जर्मनी के सरकारी संस्थान भी शामिल थे. सरकारी संस्थानों का ऐसी वारदातों में शामिल होना, कितना व्यापक है, इसका पता हर साल होने वाले वार्षिक मूल्यांकन से ही लगाया जा सकता है.
जर्मनी में रोमा और सिंती समुदायों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक की मान्यता दी गई है. सिंती समुदाय के लोग करीब 600 साल से जर्मनी में रह रहे हैं. अनुमान है कि आज उनकी आबादी 70,000 से 1,50,000 के बीच है. 19वीं सदी के अंत से यूरोप के जर्मनभाषी इलाकों में करीब 30,000 रोमा बंजारे भी रह रहे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि रोमा और सिंती बंजारे सैकड़ों साल पहले भारत से यूरोप आए.
यूरोप में नाजी काल के दौरान सिंती और रोमा समुदाय को सुनियोजित तरीके से प्रताड़ित किया गया. इस समुदाय ने जनसंहार भी झेले. हिटलर की तानाशाही में रोमा और सिंती समुदाय को जड़ के खत्म करने की नीति लागू थी. उस दौरान हजारों लोगों को हत्या की गई. इन समुदायों को लेकर कुछ पूर्वाग्रह आज भी जिंदा हैं.
भेदभाव और अपराध के आंकड़े
रोमा और सिंती लोगों के खिलाफ होने वाले अपराधों की सटीक जानकारी अब भी नहीं हैं. अगर कोई पीड़ित खुद ही आपबीती बताए तो ही ऐसे मामले सामने आ पाते हैं. आधिकारिक दस्तावेजों में कुछ ही मामले दर्ज हैं. राजनीति से प्रेरित होकर किए गए अपराधों की जांच जर्मनी की संघीय अपराध पुलिस करती है.
एमआईए की रिपोर्ट बताती है कि अल्पसंख्यक समुदायों के लिए धुर दक्षिणपंथ का उभार और बढ़ता राष्ट्रवाद भी एक खतरा है. रिपोर्ट में रोज लिखते हैं कि ऐसा खतरा, सिंती, रोमा, यहूदियों और अन्य समुदायों पर भी है. रोज के मुताबिक रोजमर्रा की जिंदगी में एंटीजिग्निज्म के प्रति "गलत समझ" भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है.
निष्कर्ष में रिपोर्ट कहती है, "यह सिर्फ सड़कों पर ही नहीं है, बल्कि दुख तो ये है कि ऐसा नियमित रूप से सरकारी संस्थानों के द्वारा भी होता है." रिपोर्ट के मुताबिक एंटीजिग्निज्म के करीब 20 फीसदी मामलों में सरकारी संस्थान शामिल हैं.
उदाहरण के तौर पर सामाजिक कल्याण के फायदे पाने के लिए भी जॉब सेंटर जैसी संस्थाएं रोमा परिवारों के साथ भेदभाव करती हैं. अतिरिक्त दस्तावेज मुहैया नहीं कराने पर रोमा परिवारों को मिलने वाले लाभ निलंबित कर दिए जाते हैं. रिपोर्ट में एक मामले का जिक्र इस तरह किया गया है, "मां कहती हैं कि जॉब सेंटर का कर्मचारी जानता है कि वे रोमा हैं और इसीलिए उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है."
संस्थागत भेदभाव का स्रोत
एमआईए का कहना है कि जांच के लिए संबंधित विभागों और लोगों तक पहुंच नहीं होने की वजह से भी भेदभाव के मामलों को सूचीबद्ध करना मुश्किल है. लेकिन इसके बावजूद कुछ मामलों से नजर नहीं चुराई जा सकती. मसलन 2021 में दक्षिण जर्मनी में पुलिस ने 11 साल के एक सिंती बच्चे की तलाशी ली. बच्चे के पास एक छोटा सा चाकू मिला. उसे गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले जाया गया. इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे की उम्र को नजरअंदाज किया गया. उसे परिवार से संपर्क करने की अनुमति भी नहीं दी गई.
हालांकि कुछ देर की पूछताछ के बाद बच्चे को रिहा कर दिया गया. बच्चे के परिवार ने इस मामले की शिकायत की और 2022 में केस भी जीता. इस वाकये में शामिल पुलिस अधिकारियों पर बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन करने के दोष में 3,600 यूरो का जुर्माना लगाया गया.