महामारी के बीच आत्महत्या के मामले भी बढ़े
२० अगस्त २०२१आंकड़ों से पता चला है कि मरने वालों में 3,928 पुरुष, 2,449 महिलाएं और बाकी बच्चे थे. काठमांडू में त्रिभुवन यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख सरोज प्रसाद ओझा ने देश में अधिक आत्महत्याओं के लिए महामारी के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जिम्मेदार ठहराया.
ओझा के मुताबिक लगभग 90 प्रतिशत आत्महत्याएं चिंता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जुड़ी हैं. उन्होंने कहा कि सामाजिक अलगाव ने लोगों के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दिया है.
ओझा के अनुसार, "जिन लोगों को कोविड-19 के दौरान घर के अंदर रहने के लिए कहा गया था, वे मनो-सामाजिक कारकों से संबंधित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जो आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण हैं."
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मनोरोग विशेष के मुताबिक बेरोजगारी, लंबे समय तक शैक्षणिक कार्यक्रम, पारिवारिक विवाद, वित्तीय समस्याएं, शराब का सेवन और मादक द्रव्यों के सेवन जैसे मनो-सामाजिक कारकों ने अधिकांश आत्महत्याओं में योगदान दिया है.
पिछले 12 सालों से मानसिक स्वास्थ्य की वकालत पर काम कर रहे जगन्नाथ लामिछाने का कहना है, "आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में देखने के बजाय, हमारा समाज आत्महत्या को एक आपराधिक दृष्टिकोण से देखता है जिससे लोगों के लिए आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना मुश्किल हो जाता है. इस झिझक के कारण आत्महत्या अधिक होती है."
वे कहते हैं, "इसलिए हमें स्कूली शिक्षा में आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक कल्याण के विषय को शामिल करके जमीनी स्तर से मानसिक स्वास्थ्य की वकालत करनी होगी."
कोरोना वायरस के कारण मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा भी तेजी से दुनिया भर में उभरकर आया है. लॉकडाउन ने लोगों की आदतें तो जरूर बदल दी हैं लेकिन एक बड़ा तबका तनाव के बीच जिंदगी जी रहा है. यह तनाव बीमारी और भविष्य की चिंता को लेकर है.