पोलैंड में खुल सकती है नई सरकार की राह
११ दिसम्बर २०२३मातेयुस मोराविएस्की सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है. अगर वह विश्वास मत नहीं हासिल कर पाते हैं, तो पूर्व प्रधानमंत्री और यूरोपियन काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क के पीएम बनने की राह खुल जाएगी.
इससे पहले अक्टूबर में संसद के निचले सदन 'सेम' की 460 सीटों के लिए मतदान हुआ था. इसमें मोराविएत्स्की की लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) ने बहुमत खो दिया था. हालांकि इसके बावजूद 194 सीटें जीतकर पीआईएस सबसे बड़ी पार्टी बनी रही.
चुनाव के बाद पहले सरकार बनाने का मौका किसे दिया जाए, इसका फैसला राष्ट्रपति करते हैं. ऐसे में राष्ट्रति आंद्रे दूदा ने सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर पीआईएस को अल्पमत सरकार बनाने के लिए नामांकित किया. राष्ट्रपति दूदा पहले पीआईएस के सहयोगी रहे हैं.
27 नवंबर को कार्यकारी सरकार ने शपथ ली. लेकिन आगे बने रहने के लिए सरकार को दो हफ्तों में, यानी 11 दिसंबर तक, विश्वास मत जीतना था.
विपक्षी दलों में गठबंधन सरकार पर सहमति
मोराविएत्स्की सरकार के पास 194 का संख्याबल है, जो कि बहुमत से 37 कम है. बाकी राजनीतिक दल पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे पीआईएस के साथ हाथ नहीं मिलाएंगे. ऐसे में मोराविएत्स्की के विश्वास मत हारने की संभावना है.
नियम के मुताबिक, इसके बाद नया प्रधानमंत्री चुनने की जिम्मेदारी संसद की होगी. यहां डोनाल्ड टुस्क के पास जरूरी संख्याबल है. ऐसे में संभावना है कि संसद में उनका नाम प्रस्तावित किया जाएगा. सरकार बनाने पर टुस्क और मुख्य विपक्षी नेताओं के बीच पहले ही सहमति बन चुकी है.
10 नवंबर को पोलैंड के तीन बड़े विपक्षी दलों में गठबंधन बनाने पर सहमति बनी थी. इसके अंतर्गत टुस्क के नेतृत्व वाली सिविक कोलेशन, थर्ड वे और लेफ्ट के बीच समझौता हुआ. तीनों ने पीआईएस के संसद में विश्वास मत हारने के बाद बनने वाली साझा सरकार के बुनियादी लक्ष्यों से जुड़े एक गठबंधन करार पर दस्तखत किए. इनके पास संसद में 248 सीटें हैं.
उम्मीद है कि नामांकित किए जाने के बाद टुस्क, 12 दिसंबर को विश्वास मत हासिल कर लेंगे और अगले दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे.
विपक्षी गठबंधन में शामिल पोलैंड 2050 पार्टी के उपाध्यक्ष मिशाल कोबोस्को ने संसद के मौजूदा घटनाक्रम की अहमियत रेखांकित करते हुए समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, " सोमवार और मंगलवार (11-12 दिसंबर), 1989 के बाद से अब तक के पोलिश इतिहास में दो सबसे अहम दिन हैं." 1989 में पोलैंड में कम्युनिस्ट शासन खत्म हुआ था.
ईयू के साथ रिश्ते सुधरने की उम्मीद
टुस्क इससे पहले भी 2007 से 2014 तक पोलैंड के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. इसके बाद 2014-2019 तक वह यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष रहे. उनके कार्यकाल में पोलैंड और ईयू के बीच रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद है. टुस्क कह चुके हैं कि वह ईयू में पोलैंड की साख फिर से कायम करेंगे.
इससे पहले पीएसयू के शासनकाल में प्रधानमंत्री मोराविएत्स्की और उप-प्रधानमंत्री यारोस्लाव काचिंस्की की नीतियां ईयू विरोधी रही हैं. आप्रवासन नीति, जलवायु समझौता, न्यायिक सुधार जैसे मुद्दों पर पोलिश सरकार का ईयू के साथ टकराव बना रहा.
वहीं टुस्क चाहते हैं कि पोलैंड की सरकार, ईयू के साथ अच्छा तालमेल बिठाकर काम करे. नवंबर में टुस्क के नेतृत्व में विपक्षी दलों के बीच गठबंधन सरकार के मसौदे पर जो सहमति बनी थी, उसमें कहा गया था कि नई सरकार यूक्रेन के विरूद्ध रूसी आक्रामकता के मद्देनजर सुरक्षा को प्राथमिकता देगी.
साथ ही, जलवायु संकट के मुद्दे पर भी काम होगा. समझौते में महिलाअधिकारों पर स्थिति बेहतर करने और कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने पर भी लक्ष्य केंद्रित किया गया था. गठबंध ने सरकार के खर्चों में पारदर्शिता बरतने और मीडिया के गैर-राजनीतिकरण पर भी काम करने का संकल्प जताया था.
एसएम/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)